बिहार: स्कूली छात्रों के नाम काटे जाने से किसको होगा फायदा?

DW

गुरुवार, 2 नवंबर 2023 (09:11 IST)
-मनीष कुमार
 
बिहार के सरकारी स्कूल कभी टॉपर्स घोटाला तो कभी मिड-डे मील में छिपकली मिलने जैसी घटनाओं के लिए सुर्खियों में रहते हैं। लेकिन, इस बार चर्चा राज्य के सरकारी स्कूलों से 22 लाख से अधिक बच्चों के नाम काटे जाने को लेकर है। जांच में जो सबसे अहम चीज सामने आई, वह संसाधनों की कमी से इतर शिक्षकों व विद्यार्थियों के स्कूलों से गायब रहने की थी। जिन स्कूलों में 5 शिक्षक हैं, वहां 1-2 उपस्थित पाए गए तो जहां 200 बच्चे नामांकित हैं, उनकी जगह 25-50 बच्चे स्कूल में मिले।
 
दरअसल, राज्य का शिक्षा विभाग उस समय से सुर्खियों में है, जब से भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के.के. पाठक ने इसकी कमान संभाली है। पाठक विभाग में अपर मुख्य सचिव (एसीएस) के पद पर तैनात हैं। उन्होंने बिहार की स्कूली शिक्षा को पटरी पर लाने के लिए सबसे पहले सरकारी स्कूलों की जमीनी हकीकत की पड़ताल की। अधिकारियों को राज्यभर के स्कूलों के निरीक्षण का आदेश दिया गया। इस क्रम में जो सबसे अहम चीज सामने आई, वह संसाधनों की कमी से इतर शिक्षकों व विद्यार्थियों के स्कूलों से गायब रहने की थी। जिन स्कूलों में 5 शिक्षक हैं, वहां 1-2 उपस्थित पाए गए तो जहां 200 बच्चे नामांकित हैं, उनकी जगह 25-50 बच्चे स्कूल में मिले।
 
वास्तविक स्थिति से रूबरू होते ही एसीएस के निर्देश पर शिक्षा विभाग के निदेशक की ओर से जुलाई महीने में स्कूल से 30 दिनों तक अनुपस्थित रहने वाले बच्चों का नाम काटने का आदेश जारी किया गया। बाद में यह अवधि घटाकर 15 दिन कर दी गई और उसके बाद लगातार 3 दिन तक विद्यालय से गायब रहने वाले विद्यार्थियों के नाम काटे जाने का निर्देश दिया गया। नाम काटे जाने से पहले स्कूल के हेडमास्टर को बच्चों के नाम नोटिस जारी करना था।
 
बीते 4 महीने में राज्य के सरकारी स्कूलों से 22 लाख से अधिक छात्र-छात्राओं के नामकाटे जा चुके हैं। इनमें कक्षा 1 से लेकर 8 (प्रारंभिक) तक के बच्चों की संख्या 18 लाख 31 हजार है, जबकि शेष बच्चे कक्षा 9-10 (माध्यमिक) तथा 11वीं और 12वीं कक्षा (उच्चतर माध्यमिक) के हैं। राज्य के 38 जिलों में से 4 जिले यथा, पूर्वी व पश्चिमी चंपारण, वैशाली तथा मुजफ्फरपुर ऐसे हैं, जहां 1 लाख से अधिक बच्चों के नाम काटे गए हैं।
 
इस मुद्दे पर शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना था, 'एडमिशन डुप्लीकेसी के खेल के जरिए ऐसे बच्चे सरकारी योजनाओं का गलत लाभ उठाते हैं। ये बच्चे सरकारी के साथ-साथ निजी स्कूलों में दाखिला लिए हुए थे। विभाग इसी के खिलाफ गंभीर हुआ है।'
 
2.5 लाख बच्चे नहीं दे पाएंगे बोर्ड परीक्षा
 
नाम काटे जाने के कारण ढाई लाख से ज्यादा बच्चे बिहार विद्यालय परीक्षा बोर्ड की इंटर व मैट्रिक की परीक्षाओं में शामिल होने से वंचित रह जाएंगे। इन विद्यार्थियों का नामांकन बहाल नहीं हुआ तो वह बोर्ड परीक्षा से पहले होने वाली सेंट-अप परीक्षा नहीं दे सकेंगे। इस वजह से वे 2024 की मैट्रिक या इंटर की परीक्षा में शामिल नहीं हो पाएंगे। मुख्य परीक्षा में भाग लेने के लिए सेटअप होना अनिवार्य है। इन बच्चों में कई ऐसे हैं, जो राज्य से बाहर रहकर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं।
 
शिक्षा विभाग द्वारा बिहार विद्यालय परीक्षा समिति को ऐसे 2,66,564 विद्यार्थियों की सूची भेजी गई है। विद्यार्थियों के नाम काटे जाने पर प्रारंभिक प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ। शेखर गुप्ता ने कहा, 'एक ओर शिक्षा के अधिकार नियम के तहत 6 से 14 वर्ष के बच्चों के अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा की बात हो रही है, वहीं दूसरी तरफ स्कूल के स्तर पर मासिक परीक्षा नहीं देने, 3 दिनों से अधिक की अनुपस्थिति पर नाम काटे जा रहे हैं। यह तो परस्पर विरोधाभासी है।' 
 
छात्र-छात्राओं को ट्रैक करने का निर्देश
 
स्कूलों में उपस्थितिबढ़ाने के उद्देश्य से विभाग ने राज्य के सभी क्षेत्रीय शिक्षा उपनिदेशकों (आरडीडी), सभी जिला शिक्षा पदाधिकारियों (डीईओ) तथा जिला कार्यक्रम पदाधिकारियों (डीपीओ) को उस जिले के 5-5 विद्यालयों को गोद लेकर उन स्कूलों में 50 प्रतिशत विद्यार्थियों की उपस्थिति सुनिश्चित कराने को कहा गया।
 
इन अधिकारियों को नियमित निरीक्षण के दौरान उन स्कूलों के छात्र-छात्राओं तथा अभिभावकों से बात कर उनकी समस्या को भी जानना था। उन्हें बच्चों की ट्रैकिंग भी करनी थी ताकि यह पता चल सके कि कहीं एकसाथ वे 2 स्कूलों में तो नहीं पढ़ रहे या फिर नाम कटने के डर से बीच-बीच में स्कूल आ रहे। स्कूलों में 75 प्रतिशत की उपस्थिति को अनिवार्य कर दिया गया है। 9वीं से लेकर 12वीं तक के बच्चों को इससे कम उपस्थिति पर परीक्षा में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
 
शिक्षकों पर भी कार्रवाई
 
ऐसा नहीं है कि कार्रवाई की जद में केवल स्कूली बच्चे ही हैं। शिक्षकों पर भी विभाग ने कड़ी कार्रवाई की है। सरकार ने बीते एक जुलाई से स्कूलों के चल रहे निरीक्षण के क्रम में अनुपस्थित पाए गए करीब 10 हजार शिक्षकों के वेतन काटने का निर्देश दिया है। इसके अलावा 39 शिक्षकों को निलंबित किया गया है तथा करीब 100 अन्य के खिलाफ निलंबन की अनुशंसा की गई है। राज्य के 75 हजार स्कूलों के निरीक्षण के लिए प्रखंड स्तर पर 14 सदस्यीय प्रबंधन इकाई को सक्रिय किया गया था।
 
इसके साथ ही विभाग ने शिक्षा के अधिकार कानून, 2009 के तहत साल में प्राथमिक विद्यालयों में 200 तथा मध्य विद्यालयों में 220 दिन कक्षा संचालन तय किया है। इसके लिए शिक्षकों के घोषित व अघोषित अवकाश पर भी पुनर्विचार किया जा रहा है। हालांकि, सरकार शिक्षकों की उपस्थिति बढ़ाने के उद्देश्य से उन्हें स्कूल के समीप ही आवास मुहैया कराने की योजना पर भी काम कर रही है।
 
शिक्षा पर खर्च
 
वित्तीय वर्ष 2023-24 के बजट में बिहार सरकार ने शिक्षा विभाग के लिए 40,450 करोड़की भारी-भरकम राशि का प्रावधान किया है। 2022-23 में यह राशि 39,191 करोड़ थी। आंकड़ों के मुताबिक विभिन्न योजनाओं के तहत राज्य सरकार हर साल डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) के जरिए 3000 करोड़ की राशि छात्र-छात्राओं को देती है। इसके अनुसार अगर 10 प्रतिशत बच्चों का भी नामांकन रद्द होता है तो सरकार को करीब 300 करोड़ रुपए की बचत होगी।
 
पोशाक योजना के तहत राज्य सरकार कक्षा 4 तक के विद्यार्थियों को 700, कक्षा 5 से 8 तक के बच्चों को 800 तथा कक्षा 9 से 12 तक के छात्र-छात्राओं को 1,500 रुपए देती है। इसके अलावा मिड-डे मील के तहत राज्य सरकार क्लास एक से 5वी तक प्रति छात्र 5.45 रुपए तथा कक्षा 6 से 8 तक प्रति छात्र 8.17 रुपए प्रतिदिन खर्च करती है। मिड-डे मील से जुड़े विश्लेषकों के अनुसार राज्यभर में इस मद में औसतन 8 से 10 करोड़ की राशि प्रतिदिन खर्च होती है।
 
सरकारी संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग हो तथा सुविधाओं का लाभ योग्य व जरूरतमंद छात्र-छात्राओंको ही मिले, इसे ध्यान में रखकर भले ही नाम काटे गए हों। किंतु राज्य की खस्ताहाल शिक्षा व्यवस्था के लिए कहीं से ये 'घोस्ट स्टूडेंट' जिम्मेदार नहीं हैं। शिक्षा की गुणवत्ता में तब तक सुधार नहीं होगा जब तक विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार नहीं थमेगा, योग्य शिक्षकों की नियुक्ति नहीं होगी और स्कूलों में बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध नहीं कराया जाएगा।(सांकेतिक चित्र)

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