2020 में जब कोविड महामारी के कारण दुनियाभर में लॉकडाउन लगे और सारे कामकाज रुक गए तो प्रदूषण भी घट गया। कार्बन उत्सर्जन कम हो गया और हवा साफ हो गई। लेकिन एक हैरतअंगेज चीज भी हुई। 14 दिसंबर को वैज्ञानिकों ने बताया कि 2020 में जब तमाम उत्सर्जन कम हए, मीथेन का स्तर क्यों बढ़ गया था?
कार्बन डाई ऑक्साइड के मुकाबले मीथेन बहुत कम समय तक वातावरण में रहती है लेकिन उसमें ऊष्मा को सोखने की क्षमता बहुत ज्यादा है और इसलिए वह ग्लोबल वॉर्मिंग के लिहाज से बेहद खतरनाक है। वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती के तापमान में 30 फीसदी वृद्धि के लिए मीथेन ही जिम्मेदार है। वह तेल और गैसों से तो निकलती ही है, वेटलैंड्स और कृषि गतिविधियों में भी मीथेन उत्सर्जन होता है इसीलिए इसका स्तर कम करने के लिए वैश्विक स्तर पर कोशिशें की जा रही हैं।
'नेचर' पत्रिका में प्रकाशित एक नया अध्ययन बताता है कि मीथेन के उत्सर्जन को कम करने को लेकर अब तक जो गंभीरता अपनाई गई है, जरूरत उससे कहीं ज्यादा की है। चीन, फ्रांस, अमेरिका और नॉर्वे के शोधकर्ताओं ने अपने शोध के बाद कहा है कि कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं, संभवतया वे मीथेन का उत्सर्जन बढ़ा रहे हैं। इसका अर्थ है कि धरती को गर्म करने वाली मीथेन गैस ज्यादा समय तक वातावरण में बनती रहेगी और तेजी से जमा होगी।
जलवायु परिवर्तन के लिए बुरी खबर
फ्रांस की लैबोरेटरी फॉर साइंसेज ऑफ क्लाइमेट एंड एनवायरमेंट (LSCE) में काम करने वाले फेलिपे सिए इस शोध में शामिल रहे हैं। वे बताते हैं कि अगर धरती के तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस औसतन से नीचे रखना है तो हमें मीथेन को कम करने के लिए और ज्यादा तेजी से काम करना होगा।
शोध में मीथेन के स्तर में 2020 में हुई वृद्धि को समझने की कोशिश थी। 2020 में मीथेन के स्तर में जितनी बढ़ोतरी हुई थी, उतनी पहले कभी नहीं देखी गई। शोध में शामिल रहीं एक और एलएससीई वैज्ञानिक मैरिएले सॉनो कहती हैं कि शोध में जो बात सामने आई, वह जलवायु परिवर्तन के लिए 'बुरी खबर' थी।
सबसे पहले तो वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया कि मानवीय गतिविधियों जैसे जीवाश्म ईंधनों के जलने और कृषि कार्यों से मीथेन के उत्सर्जन में मामूली कमी आई थी। उसके बाद शोधकर्ताओं ने इकोसिस्टम मॉडल का इस्तेमाल कर यह पता लगाया कि उत्तरी गोलार्द्ध में गर्म और शुष्क परिस्थितियों में वेटलैंड्स से मीथेन के उत्सर्जन में वृद्धि हुई। इस नतीजे की पुष्टि कई अन्य शोधों से भी हुई है और यह ज्यादा चिंता की बात है, क्योंकि मीथेन उत्सर्जन में जितना ज्यादा वृद्धि होगी, तापमान उतना तेजी से बढ़ेगा, जो एक दुष्चक्र है और इंसानी नियंत्रण से बाहर भी निकल सकता है।
डरावने नतीजे
हालांकि वैज्ञानिकों को जो नतीजे मिले हैं, वे इससे और ज्यादा खतरनाक हैं। जब कोविड लॉकडाउन हुआ तो कम तेल जला। इससे नाइट्रोजन ऑक्साइड के स्तर में कमी आई। सिए कहते हैं कि नाइट्रोजन ऑक्साइड में 20 फीसदी कमी मीथेन के उत्सर्जन को दोगुना कर देती है यानी कार्बन उत्सर्जन घटा तो मीथेन बढ़ गई।
सिए कहते हैं कि कोविड लॉकडाउन के दौरान मीथेन के उत्सर्जन की वृद्धि की गुत्थी का यही रहस्य था। हालांकि वैज्ञानिक मानते हैं कि अभी इस संबंध में और काम करने की जरूरत है, खासतौर पर इस गुत्थी कि अगली कड़ी सुलझाने के लिए कि 2021 में मीथेन का स्तर नए रिकॉर्ड पर क्यों पहुंच गया था।
सिए कहते हैं कि नाइट्रोजन ऑक्साइड के स्तर में कमी में बड़ा योगदान अमेरिका और भारत में परिवहन की गतिविधियों का रहा, जो लॉकडाउन के दौरान घट गई थीं। इसी तरह हवाई यात्राओं में कमी से भी नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन का स्तर कम हुआ।
युआन निस्बत रॉयल हॉलवे यूनिवर्सिटी में पृथ्वी विज्ञान पढ़ाते हैं। वे इस शोध का हिस्सा तो नहीं थे लेकिन वे कहते हैं कि 2020 में मीथेन के स्तर में वृद्धि बेहद हैरान करने वाली थी। उन्होंने कहा कि 2021 में मीथेन के स्तर में वृद्धि तो और ज्यादा चिंताजनक थी। यह तब हुआ जबकि लॉकडाउन के बाद आर्थिक गतिविधियां लौट रही थीं। अब भी हमारे पास विस्तृत अध्ययन नहीं हैं, जो इन नाटकीय बदलावों की पहेली सुलझा सकें।