देश और दुनिया के पढ़े-लिखे साक्षर लोगों में उपन्यासकार सलमान रश्दी का नाम 'अनजाना मुसाफिर' नहीं है। लंदन से प्रकाशित होने वाले अखबार 'द टेलीग्राफ' में आदरणीय सलमान साहब की बाबद एक ऐसी रिपोर्ट प्रकाशित हुई है, जिससे सलमान सर जी का ही नहीं, हम आपका भी सिर चकराता है।
'द टेलीग्राफ' में प्रकाशित रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सलमान रश्दी साहब निहायत कंजूस, निहायत दकियानूस, निहायत गुस्सैल और निहायत कड़वे स्वभाव वाला एक ऐसा आदमी है, जिसके साथ कोई भी साफ दिल इंसान, दिल खोलकर, दिल की दो-चार बातें कभी भी नहीं कर सकता है।
याद किया जा सकता है कि लंदन स्थित जिस मकान में सलमान रश्दी को नजरबंद किया गया था, उसकी सुरक्षा, निगरानी अथवा हिफाजत का जिम्मा विशेष गुप्तचर शाखा के जासूस रॉन इवांस को दिया गया था। रॉन इवांस पर हुआ ये कि तुख्त में तासीर, सोहबते असर हो गया। रॉन इवांस कालांतर में जासूस से लेखक हो जाने का मोक्ष पा गए। रॉन इवांस सन् 1989 में निरंतर तीन बरस के लिए सलमान साहेब की निगरानी को नियुक्त किए गए थे।
जनाब रॉन इवांस ने अब जो है सो 'ऑन हर मैजस्टीस सर्विस' नाम से एक आत्मकथा लिखकर सनसनी फैला दी है। अपनी आत्मकथा में वे लिखते हैं कि तब के सलमान रश्दी की सुरक्षा व्यवस्था कुछ इस हद तक चाक-चौबंद थी कि उनके पुत्र जाफ़र तक को उनसे मिलने की इजाजत नहीं थी।
यहाँ तक कि एशियाई समाचार-पत्र पहुँचाने वाला एक हॉकर, आतंकवादी होने की ग़लतफ़हमी में गोली खाते-खाते बमुश्किल बच पाया था।
रॉन इवांस कहते हैं कि हद तो तब हुई जाती थी, जबकि अपनी सुरक्षा में तैनात किए गए पुलिसकर्मियों से सलमान साहेब अपने घर में ठहरने की एवज में पैसा माँग लेते थे। रॉन इवांस ने दावा किया है कि उन्होंने सलमान रश्दी साहब को उनके घर में एकांत ठहरने का दस पाउंड चुकाया था।
बता दें कि सलमान रश्दी के जीवन का ये घटनाक्रम उस वक्त का है, जब वे 'सेटेनिक वर्सेज' नामक कृति लिख चुके थे और उनकी उक्त कृति पर दुनिया भर में विवाद प्रारंभ हो चुका था। इसी बीच ईरानी नेता अयातुल्लाह खुमेनी द्वारा सलमान रश्दी का सिर काटकर लाने वाले को पुरस्कृत किए जाने का फ़तवा भी जारी कर दिया गया था।
तब तक पद्मा लक्ष्मी का सलमान रश्दी के जीवन में पदार्पण नहीं हुआ था और रिया सेन का तो दूर-दूर तक कोई अता-पता नहीं था, न तो दिलजलों का दिल जलाने को और न ही सिगार सुलगाने को।
सिर्फ एक अँधेरी काल कोठरी हुआ करती थी तब सलमान साहब की जिंदगी। बतर्ज जावेद अख्तर 'मैं और मेरी तन्हाई', तन्हाई रही हो, चाहे अँगड़ाई, पैसों की जरूरत तो सभी को पेश आती है।
क्या सलमान, क्या मेहरबान, लेकिन प्रशंसा उस कुव्वत की अवश्य ही की जानी चाहिए जिसने सलमान रश्दी साहब के जेहन में जन्म लिया। जो पुलिस दुनिया भर से पैसे ऐंठती है अगर उसी पुलिस को सलमान साहब ने चूना लगा दिया, तो क्या बुरा किया? ये तो कमाल की कला हुई।
बता दें कि सलमान रश्दी के जीवन का ये घटनाक्रम उस वक्त का है, जब वे 'सेटेनिक वर्सेज' नामक कृति लिख चुके थे और उनकी उक्त कृति पर दुनिया भर में विवाद प्रारंभ हो चुका था...
इस कला को अंजाम देने के लिए सलमान साहब को एक-दो अतिरिक्त बुकर सम्मान दे दिए जाने चाहिए और जब वे किसी देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री अथवा विदेशमंत्री आदि को ठग लेने में सफलता पा लें तो उनके लिए नोबेल पुरस्कार का प्रस्ताव सहर्ष ही प्रस्तुत किया जा सकता है। क्यों भाई मुंगेरी, कैसा रहेगा? हाँ भाई मुरारी, ठीक है ठीक।
मैं इससे पहले सलमान रश्दी साहब का चश्मा उतार लूँगा और उनकी आँखों से सुरमा चुरा लूँगा। भारतीय मूल का ब्रिटिश पुलिसकर्मी छेदीलाल बुदबुदाया। भारतीय मूल के ब्रिटिश लेखक सलमान रश्दी अपनी किसी क़िताब में, किसी पिन्नक में, किसी जगह लिख चुके हैं कि ब्रिटिश पुलिसकर्मी अपनी परंपरागत आदत अनुसार सिर्फ बुदबुदाते हैं।
वे कभी दहाड़ते नहीं हैं। ब्रितानी संस्कृति कहती है कि बुदबुदाना सभ्यता है, जबकि दहाड़ना असभ्यता। ब्रितानी-संस्कृति का सामान्य-सांस्कृतिक व्यवहार सचमुच संसार भर में सर्वश्रेष्ठ है, वे अवयस्क कन्याओं से यौन संबंध स्थापित कर लेते हैं।
गर्भपात करा देते हैं। भ्रूण-हत्याएँ करवा लेते हैं। शादी करने के सात सेकंड बाद ही तलाक भी ले लेते हैं और अपने बाप का जूता अपने बाप को ही गिफ्ट भी कर देते हैं। संस्कार की ये सीखें इतनी महान हैं कि जिससे तलाक लिया, उसी से फिर शादी। कल हुए छत्तीस तो परसों हुए उनसत्तर। क़िस्सा-ए-सलमान रश्दी गुपगुप-गुपगुप...
राम-राम, लाल-सलाम। राम का सलाम, लाल को सलाम। लाल का राम को सलाम। बीच में दलाल-सलाम का चुटकुला सुनिए। चोरों ने चारों
वे कभी दहाड़ते नहीं हैं। ब्रितानी संस्कृति कहती है कि बुदबुदाना सभ्यता है, जबकि दहाड़ना असभ्यता। ब्रितानी-संस्कृति का सामान्य-सांस्कृतिक व्यवहार सचमुच संसार भर में सर्वश्रेष्ठ है...
को दावत दी। चोरों ने चारों को चोरी का हलवा खिलाया। चोरों ने चोरों का हलवा खाया। चोर हुए तृप्त। चोरों ने की माँग। जितने भी दिन बचे हैं सरकार के, सरकार हमारी माने और सीबीआई हमारा हुक्का भरे।
सलमान रश्दी साहब का हुक्का-पानी आजकल ब्रिटिश सरकार ने बंद कर रखा है।
ईरान से अमेरिका की पटरी नहीं बैठ रही है। अमेरिका से ब्रिटेन की पटरी समानांतर चल रही है। लिहाजा, होगा वही जो चिकना चाहेगा। बहुत संभव है कि रॉन इवांस 'नोट के बदले वोट' माँग लेने जैसी किसी गैरजरूरी जुर्रत पर उतर आएँ और सलमान रश्दी साहब से कह बैठें कि चलो, भारत चलो... चुनाव लड़ लो... तसलीमा नसरीन तो एक बार फिर आ ही गई हैं। आप भी आ जाइए। शायद यही होता है क़िस्सा-ए-सलमान रश्दी गुपगुप...