हम सब फेरी वाले !

- यशवंत कोठारी

ND
सच पूछो तो इस दुनिया में सब फेरी वाले हैं। कोई किसी के फेरे लगा रहा है ‍तो कोई किसी और के। कोई अपने निहित स्वार्थों के कारण फेरी लगा रहा है तो कोई रोजी-रोटी के लिए सुबह से शाम तक फेरी लगाता है। मंत्री- मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के फेरे लगाता है, उपनिदेशक निदेशक के फेरे लगाता है और गाहे-बगाहे अपना उल्लू सीधा ‍करता है।

सुबह उठते ही जो आवाज पहले कान में पड़ती है वो किसी फेरी वाले की ही होती है। झाडू वाला, रद्दी वाला, पालिश वाला, सब्जी वाला, हर माल वाला, पानी पतासे वाला, प्रेशर कुकर वाला- सब फेरी वाले एक के बाद एक आते हैं और चले जाते हैं। संसार एक रंगमंच है और हम सब कठपु‍तलियाँ है। फेरी लगाओ और जाओ।

झाडू वाले से मैंने एक दिन पूछा- भैया क्या कमा लेते हो? बोला- साहब पेट तक नहीं भरता, कभी-कभी भूखा रहना पड़ता है। यही हालत गुब्बारे बेचने वाले, नमकीन बेचने वाले, छोटे दुकानदार- सभी की है। हर फेरी वाले का बड़ा फेरी वाला शोषण करता है। और बड़े का उससे बड़ा फेरी वाला शोषण कर रहा है।
  सुबह उठते ही जो आवाज पहले कान में पड़ती है वो किसी फेरी वाले की ही होती है। झाडू वाला, रद्दी वाला, पालिश वाला, सब्जी वाला, हर माल वाला, पानी पतासे वाला, प्रेशर कुकर वाला- सब फेरी वाले एक के बाद एक आते हैं और चले जाते हैं।      


रद्दी वालों को देखता हूँ तो मन मसोस कर रह जाता हूँ। सा‍‍‍हित्य की इस अंतिम कड़ी की बड़ी दुर्दशा है। एक साथ माल खरीदने पर भी पेट नहीं भरता है। फेरी वालों में एक बहुत पुराना फेरी वाला मुझे अक्सर याद आता है जो बायोस्कोप दिखाता था। बारा मण की धोबन के साथ फिल्मी तारिकाओं के चित्र और उन पर उसका गाना, बाद में उसने ग्रामोफोन भी लगा दिया था। बंदर, रीछ और मदारी के खेल दिखाने वाले फेरी लगाने वाले पता नहीं कहाँ चले गए। शायद काल के गाल में समा गए।

साहित्य में रचना लिखकर संपादक के फेरे लगाने वाले लेखक हैं। अपना चि‍त्र छपवाने वाले कलाकार हैं और अपना वक्तव्य छपाने को आतुर नेता रूपी फेरी लगाने वाले बंदे हैं। फेरी लगाओ और अपना स्वार्थ सिद्ध करो।

ND
कला, संस्कृति व नाटक के क्षेत्र में फेरी लगाने वालों की क्या कमी। एक ढूँढो हजार मिलते हैं। असफल नाटककार, सफल व्यंग्यकार बनने के लिए सेठजी के फेरे लगाता है। संस्कृति के रक्षक चंदे के भक्षण हेतु फेरी लगाने के लिए कहाँ-कहाँ नहीं जाते। युवा लोग युवतियों के प‍ीछे और गर्लफ्रेंड के प‍ीछे फेरी लगाते हैं। हर चौराहे पर टाई, बेल्ट, चश्मा व मोबाइल लेकर खड़े युवा, उत्साही कहीं भी फेरी लगाने को आतुर हैं। बस एक मौका चाहिए।

कुल मिलाकर हम सब फेरी वाले हैं। रद्दी वाले, झाडू वाले, पानी पूरी वाले की तरह, बस लक्ष्य अलग हैं। सिद्धांत वही है- फेरी लगाओ कुछ न कुछ पाओगे। बैंकों में लोन के लिए फेरी लगाती रह‍ती है पब्लिक। शेयर बाजार में डिविडेंड के लिए फेरी लगाते हैं। बच्चे स्कूलों की फेरी लगाते हैं। बच्चे ट्‍यूटर के फेरे लगाते हैं।

एमपी मंत्री बनने के लिए फेरी लगाते हैं। काबीना मंत्री‍ मुख्यंमत्री बनने के लिए देश की राजधानी की फेरी लगाता है। हम सब फेरी वाले हैं, बस तरीका अलग है। अपराधी जेल के फेरे लगाता है। पुलिस अपराधी के फेरे लगाता है, जनता नेता की फेरी लगाती है।

पति पत्नी की फेरी लगाता है। प्रेमी प्रेमिका की फेरी लगाता है। सफलता के लिए सबकुछ जायज है। लगाओ फेरी लगाओ कहीं न कहीं तो पहुँच ही जाओगे। पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगा रही है, चंद्रमा पृथ्वी के चक्कर लगा रहा है। और सौरमंडल ब्रह्मांड की फेरी लगा रहा है। हम सब फेरी वाले जो हैं।

फेरी लगाने का इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र विचित्र नहीं है। जाना-पहचाना है, मोहल्ले, शहर-प्रदेश और राष्‍ट्र में सब मिलकर फेरी लगाते हैं। दुनिया अमेरिका के फेरे लगा रह‍ी है। इराक ने नहीं लगाई तो नतीजा भुगता। आतंकवादी अपने आकाओं के फेरे लगाते हैं। माफिया, डॉन, डाकू, चोर-उचक्के, बदमाश, चेन खींचने वाले सबके सब फेरी लगा रहे हैं। मौका देखा और माल उड़ाने को आतुर।

फेरीवालों में मुझे अखबार का हॉकर बहुत पसंद है, क्योंकि वो मुझे अखबार समय पर देता है और अखबार में मेरी रचना होती है। वो मेरा पहला समीक्षक होता है।

कभी-कभी मैं अखबार के हॉकर से ऐसी खबरें सुनता हूँ जो छपनीय नहीं होतीं, ऐसे समाचारों में बड़ा आनंद आता है। बतरस का मजा तो फेरी वालों के साथ ही आता है। बाहर फेरी वाला आवाज लगा रहा है, चलता हूँ।