होली और बुरा ना मानो महोत्सव

होली भारत का प्रमुख त्योहार है, क्योंकि इस दिन पूरे भारत में 'बैंक होली-डे' रहता है अर्थात अवकाश रहता है जिसकी वजह से बैंक में घोटाले होने की आशंका नहीं रहती है। मतलब होली के दिन केवल आप रंग लगा सकते हैं, चूना लगाना मुश्किल होता है। इसी कारण से होली देश की समरसता के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए भी पतंजलि के उत्पादों की तरह लाभदायक है।
 
होली के दिन केवल लोग ही नहीं, बल्कि ठंडाई और भांग भी सारे गिले-शिकवे भुलाकर आपस में गहराई से मिलकर 'महागठबंधन' कर लेते हैं और होली के दिन झूमने वालों को बाहर से अपना समर्थन दे देते हैं।
 
होली पर जबरन बुरा ना मनवाने की प्रथा 'बुरा ना मानो होली है' की कथा के रूप में चली आ रही है। बुरा ना मानने का होली से वही संबंध है, जो फेसबुक और वॉट्सएप पर पोस्ट होने वाली हर प्रोफाइल पिक्चर का 'नाइस डीपी' वाले कमेंट से होता है।
 
'बुरा ना मानो होली है!' यह सूत्रवाक्य हमारी समृद्ध ऐतिहासिक धरोहर है जिसे आज तक हमसे कोई हर नहीं पाया है। यह सूत्रवाक्य इतना प्रभावी है कि कई लोग तो होली आने के महीनेभर पहले से बुरा मानना छोड़ देते हैं और होली जाने के कई दिनों बाद तक वापस बुरा नहीं मानते हैं। ऐसे लोगो को अक्सर निजी रूप से फोन करके बतलाना पड़ता है कि अब आप बुरा मानना शुरू कर दीजिए वरना देश की मुख्य धारा से बाहर होकर समाज में रहने योग्य नहीं रह जाएंगे।
 
'बुरा ना मानो होली है!' इस सूत्रवाक्य को गढ़ने वाले धर्मप्रेमी व्यक्ति का कोई भी तत्व, पुरातत्व विभाग की दीमक से सुरक्षित फाइल्स में नहीं मिलता है। लेकिन इस सूत्रवाक्य की रचना करने वाले व्यक्ति का जरूर दूसरे त्योहारों से 36 का आंकड़ा रहा होगा, वरना वो जरूर होली के साथ दीपावली, राखी और अन्य त्योहारो पर भी बुरा ना मानने का अंतरराष्ट्रीयव्यापी आह्वान करते हैं।
 
ज्यादातर त्योहार विशेषज्ञ और चिंतक टाइप लोग मानते हैं कि सभी त्योहारो पर बुरा ना मानने की अपील स्वाभाविक भारतीय मानसिकता का अपमान हो सकती है और बुरा मानने पर रोक लगने से समाज में अराजकता फैल सकती है इसलिए केवल एक त्योहार पर अंकुश लगाया गया है ताकि अन्य त्योहार, लोग बिना किसी अर्जी के अपनी मर्जी से मना सकें।
 
यह देश का दुर्भाग्य ही है कि 'बुरा ना मानो होली है' जैसे कल्याणकारी और मानवमात्र के परम हितैषी सूत्रवाक्य को 'आज तक' किसी भी सरकार ने 'आगे नहीं रखा' मतलब इसे सरकारी संरक्षण प्रदान नहीं किया। अगर बैंकों के साथ-साथ इस सूत्रवाक्य का भी राष्ट्रीयकरण कर दिया जाता, तो आज देश और देशवासियों को इस सूत्रवाक्य का केवल निजी रूप से उच्चारण करने से निजात मिल सकती थी।
 
अब समय आ गया है कि सरकार हर वर्ष होली के महीने में पूरे माह 'बुरा ना मानो महोत्सव' मनाकर इस दिशा में कदम और नखरे दोनों उठाए। इस महोत्सव में सरकार को घोषणा करनी चाहिए कि वो इस अवधि के दौरान हुए किसी भी घोटाले का बुरा नहीं मानेगी और घोटाले करके विदेश भाग जाने वाले की कड़ी निंदा करके उसकी बददुआ और मुसीबत मोल नहीं लेगी।
 
अगर इस महोत्सव के दौरान कोई सार्वजनिक रूप से बुरा मानता हुआ जब्त किया जाए तो तुरंत उसका चालान और चिकोटी काटी जानी चाहिए। बुरा मानने की रोकथाम के लिए पल्स पोलियो की तर्ज पर टीकाकरण अभियान चलाया जाना चाहिए। समाज के 'गणअमान्य' व्यक्तियों को भी सरकार की इस पहल का स्वागत करते हुए आमजन को इस अवधि में बुरा ना मानने के लिए उकसाना चाहिए।
 
'बुरा ना मानो महोत्सव' के दौरान सरकार चाहे तो नोटबंदी और जीएसटी जैसी योजनाएं ला सकती है और इस दौरान जनता भी टैक्स चोरी करके सरकार के साथ-साथ कंधे से कंधा मिलाकर इस महोत्सव को सफल बना सकती है। अगर सरकारें नीति आयोग के वार्षिक कार्यक्रमों में अकर्मण्यता और अकुशलता की तरह 'बुरा ना मानो महोत्सव' को भी शामिल कर ले तो जनता अपना आधार कार्ड, सरकारी योजनाओं के साथ-साथ असरकारी सुख-चैन से भी लिंक करने में सफल होगी।
 

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