अँधेर-नगरी चौपट राजा

- भारतेंदु हरिश्चंद्र
भारतेंदु हरिश्चंद्र नव्‍यंग्‍य, नाटक, कविता और यहाँ तक कि उर्दू शायरी को भी अपनी लेखनी से समृद्ध किया है। उनकी रचनाएँ आज भी हिंदी साहित्‍य की थाती मानी जाती हैं। प्रस्‍तुत है, उनका नाटक, अँधेर नगरी, चौपट राजा, जो आज अपनी रचना के वर्षों बाद भी उतना ही प्रासंगिक है।


Devendra SharmaND
प्रथम दृश्य (बाह्य प्रांत) (महंत जी दो चेलों के साथ गाते हुए आते हैं) सब- राम भजो राम भजो राम भजो भाई। राम के भजो से गनिका तर गई, राम के भजे से गीध गति पाई।राम के नाम से काम बनै सबराम के भजन बिनु सबहि नसाई।राम के नाम से दोनों नयन बिनुसूरदास भए कबिकुलराई। राम के नाम से घास जंगल की, तुलसीदास भए भजि रघुराई।

महंत- बच्चा नारायणदास! यह नगर तो दूर से बड़ा सुंदर दिखलाई पड़ता है! देख, कुछ भिच्छा-उच्छा मिलै तो ठाकुर जी को भोग लगै। और क्या।ना.दा.- गुरुजी महाराज! नगर तो नारायण के आसरे से बहुत ही सुंदर है जो है सो, पर भिक्षा सुंदर मिलै तो काड़ा आनंद होय।महंत- बच्चा गोवरधनदास! तू पश्चिम की ओर से जा और नारायणदास पूरब की ओर जाएगा। देख, जो कुछ सीधा सामग्री मिलै तो श्री शालग्राम जी का बालभोग सिद्ध हो।गो.दा.- गुरुजी! मैं बहुत सी भिच्छा लाता हूं। यहाँ लोग तो बड़े मालवर दिखलाई पड़ते हैं। आप कुछ चिंता मत कीजिए। महंत- बच्चा बहुत लोभ मत करना। देखना, हाँ-लोभ पाप का मूल है, लोभ मिटावत मानलोभ कभी नहीं कीजिए, यामैं नरक निदान। (गाते हुए सब जाते हैं)

दूसरा दृश्य (बाहर) कबाबवाला- कबाब गरमागरम मसालेदार- चौरासी मसाला बहत्तर आंच का- कबाब गरमागरम मसालेदार- खाए सो होंठ चाटै, न खाए सो जीभ काटै। कबाब लो, कबाब का ढेर- बेच टके सेर।घासीराम- चने जोर गरम-चने बनावैं घासीराम। निज की झोली में दुकान।चना चुरमुर चुरमुर बोले। बाबू खाने को मुंह खोले।चना खावै तौकी मैना। बोलै अच्छा बना चबैना।चना खाए गफूरन मुन्ना। बोलै और नहीं कुछ सुन्ना। चना खाते सब बंगाली। जिन धोती ढीली ढाली। चना खाते मियां जुलाहे। डाढ़ी हिलती गाह बगाहे।चना हाकिम सब जो खाते। सब पर दूना टिकस लगाते। चने जोर गरम- टके सेर। नरंगीवाला- नरंगी ले नरंगी- सिलहट की नरंगी, बुटवल की नरंगी, रामबाण की नरंगी, आनंदबाग की नरंगी। भई नींबू से नरंगी। मैं तो पिया के रंग न रंगी। मैं तो भूली लेकर संगी। नरंगी ले नरंगी। कंवला नींबू, मीठा नींबू, रंगतरा, संगतरा। दोनों हाथों लो- नहीं पीछे हाथ ही मलते रहोगे। नरंगी ले नरंगी। टके सेर नरंगी

हलवाई- जलेबियाँ गरमा गरम। ले सेव इमरतीस लड्डू गुलाब जामुन खुरमा बुंदिया बऱफी समोसा पेड़ा कचौड़ी दालमोट पकौड़ी घेवर गुपचुप। हलुआ हलुआ ले हलुआ मोहनभोग। मोयनदार कचौड़ी कचाका हलुआ नरम चभाका। घी में नरम चीनी में तरातर चासनी में चमाचम। ले भूरे का लड्डू। जो खाए सो भी पछताय जो न खाए सो भी पछताय। रेवड़ी कड़ाका। पापड़ पड़ाका। ऐसी जात हलवाई जिसके छत्तिस कौम हैं भाई। जैसे कलकत्ते के विलसन मंदिर के भितरिए, वैसे अँधेर नगर के हम। सब सामान ताजा। खाजा ले खाजा। टके सेर खाजा।

कुंजड़िन- ले धनिया मेथी सोआ पालक चौराई बथुआ करेमुं नोनियाँ कुलफा कसारी चना सरसों का साग। मरसा ले मरसा। ले बैंगन लौआ कोहड़ा आलू अरुई बंडा नेनुआं सूरन रामतरोई तोरई मुरई ले आदी मिरचा लहसुन पियाज टिकोरा। ले फालसा खिरनी आम अमरूद निबुआ मटर होरहा। जैसे काजी वैसे पाजी रैयत राजी टके सेर भाजी। ले हिंदुस्तान का मेवा फूट और बैर

मुगल- बादाम पिस्ते अखरोट अनार बिहीदाना मुनक्का किशमिश अंजीर आबजोश आलूबोखरा चिलगोजा सेव नाशपाती बिही सरदा अंगूर का पिटारी। आमारा ऐसा मुलक जिसमें अँग्रेज का भी दाँत खट्टा ओ गया। नाहक को रुपया खराब किया। हिंदोस्तान का आदमी लक लक हमारे यहाँ का आदमी बुंबक-बुंबक लो सब मेवा टके सेर

पाचक वाला चूरन अमल बेद का भारी। जिसको खाते कृष्ण मुरारी। मेरा पाचक है पचलोना। जिसको खाता श्याम सलोना। चूरन बना मसालेदार। जिसमें खट्टे की बहार। मेरा चूरन जो कोई खाए। मुझको छोड़ कहीं नहिं जाए। हिंदू चूरन इसका नाम। विलायत पूरन इसका काम। चूरन जब से हिंद में आया। इसका धन बल सभी घटाया। चूरन ऐसा हट्टा कट्टा। कीना दांत सभी का खट्टा।चूरन चला डाल की मंडी। इसको खाएँगी सब रंडी। चूरन अमले सब जो खावैं। दूनी रिश्वत तुरंत पचावैं। चूरन नाटकवाले खाते। इसकी नकल पचाकर लाते।चूरन सभी महाजन खाते। जिससे जमा हजम कर जाते। चूरन खाते लाला लोग। जिनको अकिल अजीरन रोग। चूरन खावै एडिटर जात। जिन के पेट पचै नहिं बात।चूरन साहेब लोग जो खाता। सारा हिंद हजम कर जाता।चूरन पुलिसवाले खाते। सब कानून हजम कर जाते। ले चूरन का ढेर, बेचा टके सेर

मछलीवाली- मछरी ले मछरी। मछरिया एक टके कै बिकाय।लाख टका के वाला जोबन, गाहक सब ललचाय। नैन मछरिया रूप जाल में, देखतही फंसि जाय। बिनु पानी मछरी सो बिरहिया, मिले बिना अकुलाय

जातवाला (ब्राम्‍हण)- जात ले जात, टके सेर जात। एक टका दो, हम अभी अपनी जात बेचते हैं। टके के वास्ते ब्राम्‍हण से धोबी हो जाएँ और धोबी को ब्राम्‍हण कर दें, टके के वास्ते जैसी कहो वैसी व्यवस्था दें। टके के वास्ते झूठ को सच करें। टके के वास्ते ब्राम्‍हण से मुसलमान, टके के वास्ते हिंदू से क्रिस्तान। टके के वास्ते धर्म और प्रतिष्ठा दोनों बेचें। टके के वास्ते झूठी गवाही दें। टके के वास्ते पाप को पुण्य मानें, टके के वास्ते नीच को भी पितामह बनावें। वेद धर्म कुल मरजादा सच्चाई बड़ाई सब टके सेर। लुटाय दिया अनमोल माल ले टके सेर।

बनिया- आटा दाल लकड़ी नमक घी चीनी मसाला चावल ले टके सेर। (बाबाजी का चेला गोवर्धनदास आता है और सब बेचने वालों की आवाज सुन सुनकर खाने के आनंद में बड़ा प्रसन्न होता है।) गो.दा.- क्यों भाई बणिये, आटा कितणो सेर बनियाँ- टके सेर। गो.दा.- औ चावल? बनियाँ- टके सेर। गो.दा.- औ चीनी बनियाँ- टके सेर। गो.दा.- औ घी? बनियाँ- टके सेर। गो.दा.- सब टके सेर। सचमुच। बनियाँ- हाँ महाराज, क्या झूठ बोलूँगा। गो.दा.- (कुँजड़िन के पास जाकर) क्यों माई, भाजी क्या भाव? कुँजड़िन- बाबाजी, टके सेर। निबुआ मुरई धनिया मिरचा साग सब टके सेर। गो.दा.- सब भाजी टके सेर। वाह-वाह! बड़ा आनंद है। यहाँ सभी चीज टके सेर। (हलवाई के पास जाकर) क्यों भाई हलवाई? मिठाई कितणो सेर?

हलवाई- बाबाजी ! लडुआ हलुआ जलेबी गुलाब जामुन खाजा सब टके सेर। गो.दा.- वाह! वाह!! बड़ा आनंद है! क्यों बच्चा, मुझसे मस़खरी तो नहीं करता? शचमुच सब टके सेर? हलवाई- हाँ बाबाजी, शचमुच सब टके सेर। इस नगरी की चाल ही यही है। यहाँ सब चीज टके सेर बिकती है। गो.दा.- क्यों बच्चा! इस नगरी का नाम क्या है?

हलवाई- अँधेर नगरी। गो.दा.- और राजा का नाम क्या है? हलवाई- चौपट्ट राजा। गो.दा.- वाह ! वाह! अँधेर नगरी चौपट्ट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा (यही गाता है और आनंद से ब़गल बजाता है)। हलवाई- तो बाबाजी कुछ लेना देना हो तो लो दो। गो.दा.- बच्चा, भिक्षा माँग कर सात पैसे लाया हूँ। साढ़े तीन सेर मिठाई दे दे। गुरु-चेले सब आनंदपूर्वक इतने में छक जाएँगे। (हलवाई मिठाई तौलता है। बाबाजी मिठाई लेकर खाते हुए और अँधेर नगरी गाते हुए जाते हैं।) (पटाक्षेप)

तीसरा दृश्य (स्थान जंगल)(महंतजी और नारायणदास एक ओर से राम भजो इत्यादि गीत गाते हुए आते हैं और एक ओर से गोवर्धनदास अँधेर नगरी गाते हुए आते हैं।) महंत- बच्चा गोवर्धनदास ! कह, क्या भिक्षा लाया? गठरी तो भारी मालूम पड़ती है। गो.दा.- बाबा जी महाराज! बड़े माल लाया हूँ। साढ़े तीन सेर मिठाई है। महंत- देखूँ बच्चा! (मिठाई की झोली अपने सामने रखकर खोलकर देखता है) वाह ! वाह ! बच्चा ! इतनी मिठाई कहाँ से लाया? किस धर्मात्मा से भेंट हुई? गो.दा.- गुरुजी महाराज ! सात पैसे भीख में मिले थे, उसी से इतनी मिठाई मोल ली है। महंत- बच्चा ! नारायणदास ने मुझसे कहा था कि यहाँ सब चीज टके सेर मिलती है, तो मैंने इसकी बात का विश्वास नहीं किया। बच्चा, यह कौन-सी नगरी है और इसका कौन-सा राजा है, जहाँ टके सेर भाजी और टके ही सेर खाजा है? गो.दा.- अँधेर नगरी चौपट्ट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा। महंत- तो बच्चा! ऐसी नगरी में रहना उचित नहीं है, जहाँ टके सेर भाजी और टके ही सेर खाजा हो

दोहा सेत सेत सब एक से,
जहाँ कपूर कपास
ऐसे देस कुदेस में,
कबहुँ न कीजे बास

कोकिल बायस एक सम,
पंडित मूरख ए
इंद्रायदाड़िम विषय,
जहाँ न नेकु विवेक

बसिए ऐसे देन नहिं,
कनक वृष्टि जो हो
रहिए तो दुख पाइए,
प्रान दीजिए रोय

सो बच्चा चलो यहाँ से। ऐसी अँधेर नगरी में मन भर मिठाई मु़फ्त की मिले तो किस काम की? यहाँ एक छन नहीं रहना। गो.दा.- गुरुजी, ऐसा तो संसार भर में कोई देस ही नहीं है। दो पैसा पास रहने ही से मजे में पेट भरता है। मैं तो इस नगर को छोड़कर नहीं जाऊँगा। और जगह दिन भर माँगो तो भी पेट नहीं भरता। वरंच बाजे बाजे दिन उपास करना पड़ता है। सो मैं तो यहीं रहूँगा। महंत- देख बच्चा, पीछे पछताएगा। गो.दा.- आपकी कृपा से कोई दुख न होगा, मैं तो यही कहता हूँ कि आप भी यहीं रहिए। महंत- मैं तो इस नगर में अब एक क्षण भर नहीं रहूँगा। देख मेरी बात मान नहीं पीछे पछताएगा। मैं तो जाता हूँ, पर इतना कहे जाता हूँ कि कभी संकट पड़े तो हमारा स्मरण करना। गो.दा.- प्रणाम गुरुजी, मैं आपका नित्य ही स्मरण करूँगा। मैं तो फिर भी कहता हूँ कि आप भी यहीं रहिए।(महंत जी नारायणदास के साथ जाते हैं। गोवर्धनदास बैठकर मिठाई खाता है। (पटाक्षेप)