प्रिय पाठक, जिंदगी झाँसी-इटारसी पैसेंजर में अपडाउन करते गुजर रही है या हारून मियाँ की बस में बोनट पर किसी तरह टिक-टिका कर यात्रा करते। यदि आपने हवाई यात्रा की हो तो हमारी कुछ जिज्ञासाएँ हैं। पहली तो यह कि हवाई जहाज में सीट रोकते कैसे हैं? मायापुरी, फिल्मी कलियाँ रखकर या टॉवेल-रूमाल जैसा कुछ बिछाकर कि भैया हमने पहले जे रूमाल धरो है, सो जे सीट हमारी भई। कभी यान में सीट को लेकर माँ-बहनों को उच्चारते गिरेबान पकड़ता है कोई?
झाँसी-इटारसी पैसेंजर में ऐसा दंगल तो रोज एकाध बार होई जावे है। और जब जाते होंगे टाइलेट तो बोलना पड़ता होगा, 'हम आ रहे हैं अभी, जरा हमारी अटैची देखते रहना।' या टाइलेट तब भी जा सकते हैं जब यान खड़ा हो एअरपोर्ट पर? रेल में तो मना लिखी रहती है मगर मानता कौन है? और भैया ये बताना कि क्या कभी यान के टाइलेट का पानी खत्म हो जाता है? झाँसी-इटारसी में तो अक्सर हो जाता है। चेक करके घुसना पड़ता है वरना न तो अंदर बैठने के न बाहर आने के। कैसी होती है हवाई जहाज के टाइलेट की दीवारें?
मेरा मतलब है क्या उन पर भी बने होते हैं मानव जननांगों के रेखा चित्र? या लिखा रहता होगा - 'मीना आई लव यू' या बेगम हसीना कानपुरी का कोई रोमांटिक शेर। बिना इनके टाइलेट सूना-सूना-सा लगता है। किसी एयरलाइंस कंपनी को करवानी हो ऐसी चित्रकारी तो बताना भैया। अपने जे मदन और कैलास हैं न बरसों से अप-डाउन में ऐसे ही तो टाइम पास करते रहे हैं। और एक बात बताना भैया कि हवाई जहाज के खड़े रहने की जगह बार-बार बदला तो नहीं करती न? रेलवे वाले तो स्साले - बोर्ड पर लिखते हैं ट्रेन चार नंबर प्लेटफॉर्म पर आएगी, अनाउंसमेंट करते हैं दो नंबर का और आती है छह नंबर पे। बच्चे घसीटते, सामान पटकते, उठाते, परेशान, हलकान भागते फिरो इधर से उधर। और ये दूधवाले मोहन भैया पूछ रहे हैं कि हवाई जहाज की खिड़कियों के बाहर भी सरिये-फरिये लगे होते हैं क्या? दूध की टंकी, साइकिलें, सब्जियों की गठरियाँ, लकड़ी के गट्ठे बाहर ही लटके रहें तो अंदर साँस लेने लायक जगह बन आती है।
हवाई यात्रा का मंथली पास बनता है क्या? हम जैसे आमजन तो क्या बनवा पाएँगे पर जानकारी के लिए पूछ रहे हैं भैया। ये बताना भैया कि हवाई जहाज के मवेशी दर्जे (कैटल क्लास) में क्या सचमुच मवेशी ले जाए जा सकते हैं? हवाई जहाज में ऐसा तो क्या होता होगा? आदमी का टिकट ही इतना महँगा - गाय बकरी की कौन कहे। और भैया ये बताना कि हवाई जहाज में बारह साल के बच्चे का आधा टिकट लगे है कि पूरा। एक बार मन है घूमने का। सोचते हैं कुछ जुगाड़-सुगाड़ करके घर-भर को घुमा ही लाएँ।
मुन्नी को तो गोद में उठा लेंगे। पप्पू का आधा टिकट ले लेंगे। बोल देंगे कि छठवीं में पढ़ रिया है। सीट न मिले न सही, पैसे बचेंगे। हारून मियाँ की बस में तो साफ-साफ लिखा है - 'आधी सवारी को सीट नहीं दी जाएगी।' हवाई जहाज में क्या कुछ लिखा होवे है - 'ईश्वर आपकी यात्रा सफल करे', 'टिकट लेना यात्री की जिम्मेदारी।' कोई शेर-वेर भी लिखा होवे क्या अंदर - 'अमीर की जिंदगी बिस्कुट और केक पर, पायलेट की जिंदगी स्टेयरिंग और ब्रेक पर।'
पूछना तो हम बहुत कुछ चाहते हैं भैया पर क्या है कि हमारी दृष्टि रेल-बस तक सीमित रह गई है। फिर हम हवाई जहाज में तो क्या उड़ पाएँगे - हाँ अपना जन्नल नॉलेज जरूर बढ़ा लेंगे। हमारी तो अपनी पैसेंजर ट्रेन भली - इसमें गुस्सा है, क्रोध है, दुख है, निराशा है, प्रेम है, करुणा है, सुख है, सहायता है, सहानुभूति है और मनमोहन सिंह से लेकर बराक ओबामा तक को मुफ्त में देने के लिए सलाहें हैं। जीवन है। तंगहाल पर मस्तमौला। झाँसी-इटारसी पैसेंजर की तरह रुकता-चलता।