जवाहर चौधरी शाम को अच्छेलालजी अपने घर में बैठे शराब का शौक फरमा रहे थे कि लल्लनप्रसाद पहुँच गए। अच्छेजी ने उन्हें आदर से बैठाया, बोले-'आप भी शौक फरमाएँगे? जाम तैयार करूँ आपका?'
'अच्छेजी, मस्ती के लिए हम सराब नहीं दूध पीता हूँ।'
'एँ!! अरे मियाँ, दूध में नशा होता है क्या?'
'मजाक करते हैं आप भी! हमने तो नहीं पूछा कि सराब में मलाई पड़ती है क्या? वैसे भी सराब में मिलता क्या है?'
'अरे मियाँ, शराब में हर चीज एक की दो-दो दिखाई देती है। दो बंगले, दो कारें, दो लल्लनप्रसाद, दो जाम, दो जन्नत...'
'ऐसा है तो फिर हम इसे जिंदगी में कभी नहीं छुएँगे अच्छेजी। हम दो-दो बीवी, अठारह बच्चे और आठ साले एक साथ देख लूँ तो समझ लीजिए कि जान ही निकल जाएगी हमारी।'