यूँ तो प्रत्येक परीक्षा केंद्र के बाहर बड़े-बड़े इश्तिहार लगाए जाते हैं, जिन पर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा होता है- 'परीक्षा में नकल करना पाप है/ सामाजिक बुराई है।' फिर भी 'रघुकुल रीत सदा चली आई' की तर्ज पर परीक्षाओं में नकल है कि चलती ही आ रही है। यदि किसी रोज इस अपील का ऐसा असर हो जाए कि परीक्षाओं में नकल होना बिलकुल ही बंद हो जाए तो इसके कुछ गंभीर दुष्परिणाम भी हो सकते हैं।
मसलन ऐसे कई प्राइवेट स्कूलों को अपना बोरिया-बिस्तर गोल करना पड़ सकता है, जिनमें विद्यार्थी दाखिला ही इस आश्वासन के बाद लेते हैं कि उन्हें 'शर्तिया पास' करवाया जाएगा और इस गारंटी को पूरा करने के लिए 'परीक्षा केंद्र अधीक्षक' नामक प्राणी की 'पेड' सेवाएँ ली जाती हैं। दूसरी तरफ नकल बंद होने के कारण आए खराब परीक्षा परिणामों के मद्देनजर गुस्साए अभिभावकों द्वारा सरकारी स्कूलों पर, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, ताले जड़े जा सकते हैं।
सरकारी और गैर-सरकारी स्कूलों के इस प्रकार धड़ाधड़ बंद होने से पूरी शिक्षा व्यवस्था ही चरमरा सकती है और विद्या के इन मंदिरों में तैयार होने वाले समाज के भावी नागरिकों का प्रोडक्शन यकायक बंद हो सकता है।
यही नहीं, प्राइवेट स्कूलों में अपना शोषण करवाकर भी जैसे-तैसे अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ कर रहे शिक्षक सड़कों पर आ जाएँगे, जिससे कि बेरोजगारी के सेंसेक्स में अभूतपूर्व उछाल आ सकता है। सरकारी स्कूलों के अध्यापकों को खराब परीक्षा परिणाम के कारण खराब हुई अपनी एसीआर को सुधरवाने के लिए शिक्षा विभाग के अधिकारियों की जेबें गर्म करनी पड़ सकती हैं, जिससे कि भ्रष्टाचार का ग्राफ तेजी से ऊपर की ओर जाने लगेगा।
विभिन्न परीक्षा केंद्रों के आसपास 'फोटोस्टेट' की दुकान वालों, जो कि मात्र परीक्षाओं के दिनों में ही अपनी-अपनी जीरोक्सिंग मशीन की पूरी लागत से भी कहीं अधिक रकम वसूल कर लेते हैं, को नकल न होने की स्थिति में अभूतपूर्व गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है। नकल करवाने वाले परीक्षा केंद्र अधीक्षकों एवं इस सुकृत्य में उनके सहयोगी चपरासियों, क्लर्कों, सुपरवाइजरी स्टाफ आदि को मिलने वाले सुविधा शुल्क एवं उपहारों का सिलसिला बंद होने की स्थिति में अपना सोशल स्टेटस बनाए रखने में काफी दिक्कतें पेश आ सकती हैं।
इतना ही नहीं, नकल न होने की स्थिति में पर्चियाँ बनाने जैसी उच्चकोटि की प्राचीनकाल से चली आ रही कला का दम घुट जाएगा। नकल बंद होने के फलस्वरूप विभिन्न राज्यों के अथवा केंद्रीय शिक्षा बोर्ड, विश्वविद्यालयों आदि के परीक्षा परिणामों में भारी गिरावट आने पर, शिक्षा के गिरते स्तर को लेकर विधानसभा, लोकसभा अथवा राज्यसभा में धरना, विरोध, प्रदर्शन, हंगामा जैसी अप्रिय स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं और मीडिया कवरेज के चलते, देश की साख को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बट्टा लग सकता है।
कहीं भी नकल न होने की स्थिति में परीक्षाओं में फेल होने वाले छात्रों की बढ़ती संख्या के चलते युवा वर्ग में बेचैनी, निराशा एवं कुंठा जैसे नकारात्मक भाव जागृत हो सकते हैं जिसके परिणामस्वरूप आत्महत्या जैसी घटनाओं में बढ़ोतरी हो सकती है और अंततोगत्वा संपूर्ण सामाजिक वातावरण तनावग्रस्त हो सकता है।
परीक्षाओं में नकल न होने के फलस्वरूप उपरोक्त दुष्परिणामों को ध्यान में रखते हुए सरकार को चाहिए कि वह इस मामले में यथास्थिति बनाए रखे और परीक्षाओं में नकल रोकने जैसे अभियान को, जैसा कि अब तक होता आया है, 'औपचारिकता मात्र' बनाकर सिर्फ कागजों तक ही सीमित रखा जाए।