तुम्हारे देखते ही नदी में हलचल हुई पाँव-पाँव चलने लगा पानी तुम्हारे मुस्कुराते खिल गया स्त्री-मन छूत...
स्त्री हूँ मैं पुरुष-मन का अनुराग बनकर पल-पल फैलना चाहती हूँ मैं आक्षितिज ओ मेरी पृथ्वी! तुममें समा ...
भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद द्वारा वरिष्ठ साहित्यकार स्व. कन्हैयालाल नंदन की स्मृति में एक आत्मीय ...
वो सुर्ख फूलों से शबनम चुरा कर,एक लिफाफे में बंद करके रखे,अपने बचपन पर फिर खुद ही, शर्म से खिलखिला क...
इसने मस्जिद तोड़ी, उसने मंदिर तोड़े,सबने खाए, इतिहासों में सौ-सौ कोड़े। घृणा, शत्रुता, हिंसा, पागलपन की...
मन आज फिर कंपकंपाया है,खौफ की फाँस चुभती है,कल क्या होगा मेरा,क्या फिर से अमन की साँस ले पाऊँगा,एक व...
तुम, एक हवा जो चंपा से बहकर आई, तुम, एक धूप जो गुलमोहर से छनकर आई, तुम, एक नदी जो मेरी आँखों से छलछल...
मेरा मन चाहता है बस, तुम्हारा होना और एक तुम हो कि बस, मन से ही मेरे नहीं हुए। यही तो अंतर है तुममें...