आपातकाल की वजह से इंदिरा गांधी की लोकप्रियता कम हुईं और चुनावों में उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ी। 23 जनवरी को गांधी ने मार्च में चुनाव कराने की घोषणा की और सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा कर दिया। चार विपक्षी दलों- कांग्रेस (ओ), जनसंघ, भारतीय लोकदल और समाजवादी पार्टी ने जनता पार्टी के रूप में मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया।
आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों और मानव अधिकारों के उल्लंघन की जनता पार्टी ने मतदाताओं को याद दिलाई और कहा कि इस दौरान अनिवार्य बंध्याकरण और राजनेताओं को जेल में डालने जैसा काम भी किया गया था। इस चुनाव पूर्व अभियान में कहा गया कि चुनाव तय करेगा कि भारत में 'लोकतंत्र होगा या तानाशाही।' इससे कांग्रेस आशंकित दिख रही थी। कृषि और सिंचाई मंत्री बाबू जगजीवनराम ने पार्टी छोड़ दी और ऐसा करने वाले कई लोगों में से वे एक थे।