लोकसभा चुनाव में मिली आशातीत सफलता से उत्साहित कांग्रेस चौथे मोर्चे से कन्नी काट कर निर्दलियों तथा छोटे दलों की मदद से अगली सरकार बनाने के विकल्प पर विचार कर रही है।
लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) को ढाई सौ से अधिक सीटें मिलने की प्रबल संभावना के बाद कांग्रेस ने अगली सरकार बनाने के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार करना शुरू कर दिया है।
पार्टी सूत्रों का मानना है कि निर्दलीय और छोटे दलों का मिलाकर वह सरकार बनाने के 272 के जादुई आँकड़े तक पहुँच जाएगी।
ऐसे में उसे चौथे मोर्चे को साथ लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी, जिसमें संप्रग सरकार में शामिल राष्ट्रीय जनतादल और लोक जनशक्ति पार्टी तथा सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी शामिल है।
पार्टी की पहली नजर निर्दलियों पर है। सूत्रों का कहना है कि चुनाव जीत रहे चार-पाँच निर्दलीय उम्मीदवार समान विचारों वाले हैं और उन्हें साथ लाने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। पार्टी को उम्मीद है कि निर्दलीय सांसदों के साथ आने के बाद उसे करीब दस सांसदों की मदद की जरूरत पड़ेगी।
ऐसे में उसके सामने दो विकल्प होंगे। पहला कि सरकार बनाने से पहले ही इन सांसदों का जुगाड़ किया जाए या अल्पमत वाली पीवी नरसिंहराव की तरह सीधे ही विश्वास मत हासिल कर लिया जाए।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि सरकार बना लेने की स्थिति में दो-चार सीट जीतने वाले छोटे दल उसके साथ आ सकते हैं तथा कुछ सरकार को बाहर से समर्थन दे सकते हैं। इन दलों में जनता दल(एस) असम की यूडीएफ और राष्ट्रीय लोकदल शामिल हैं।
चौथे मोर्चे में शामिल राजद, लोजपा और सपा ने इस चुनाव में कांग्रेस के साथ चुनावी तालमेल नहीं कर उसके विरुद्ध चुनाव लड़ा था और कल तक उन्हें अपना सहयोगी बता रही थी, लेकिन नतीजों के पक्ष में जाने के बाद कांग्रेस ने नई रणनीति पर विचार करना शुरू कर दिया है।
चौथे मोर्चे के दलों को सरकार में नहीं लेने से उत्तरप्रदेश और बिहार में पार्टी को अपने पैरों पर खड़ा करने की इन चुनाव में शुरू की गई उसकी मुहिम को आगे बढ़ाने में भी मदद मिल सकती है।