जीत ने किया रमन का कद ऊँचा

रविवार, 17 मई 2009 (16:51 IST)
लोकसभा चुनाव में जहाँ पूरे देश में राजग को विफलता हाथ लगी है वहीं छत्तीसगढ़ में 11 में से 10 सीटों पर विजय हासिल कर भाजपा अपने मजबूत किले को बचाने में एक बार फिर कामयाब रही है।

राज्य में लगातार दो बार भाजपा की जीत ने संगठन में मुख्यमंत्री रमनसिंह के कद और ऊँचा कर दिया है वहीं मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को इस झटके से उबरने में समय लग सकता है।

छत्तीसगढ़ में छह महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव और अब लोकसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपने गढ़ में यहाँ के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को सेंध लगाने का मौका नहीं दिया।

राज्य में भारतीय जनता पार्टी ने वर्ष 2003 में हुए विधानसभा के चुनाव के नतीजों को वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में दोहराया और राज्य में दोबारा सरकार बनाई। इतिहास का दोहराव यहीं समाप्त नहीं हुआ और भाजपा वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव की तरह ही इस बार भी 11 में से दस सीटों पर कब्जा जमाने में कामयाब रही है।

भारतीय जनता पार्टी ने राज्य में वर्ष 2003 में यहाँ के तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के शासन के खिलाफ चुनाव लड़ा था वहीं वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में अटलबिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए पार्टी जनता के दरवाजे तक गई थी लेकिन छह महीने पहले हुए विधानसभा और अब लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री रमनसिंह का चेहरा सामने रहा और पार्टी को इसका फायदा भी मिला।

राज्य में पिछले 20 सालों के लोकसभा चुनाव के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि वर्ष 1991 में भाजपा इस क्षेत्र में अपना खाता ही नहीं खोल पाई थी। इस चुनाव में सभी सीटें कांग्रेस को गई थीं लेकिन इसके बाद के चुनाव में लगातार पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया और क्रमशः वर्ष 1996 में छह सीटें, वर्ष 1998 में सात सीटें, 1999 में आठ सीटें और वर्ष 2004 में 10 सीटों पर जीत हासिल की। यह सिलसिला इस बार के चुनाव में भी जारी रहा।

पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में राज्य में भले ही कांग्रेस की सरकार नहीं बन पाई लेकिन पार्टी के आला नेताओं को राज्य में कम से कम चार लोकसभा सीटों में जीत मिलने का पूरा भरोसा था।

कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक पार्टी को कोरबा, बिलासपुर, जाँजगीर, चांपा, काँकेर और दुर्ग में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी लेकिन पार्टी को केवल कोरबा में ही सफलता हाथ लगी। यहाँ से पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष चरणदास महंत विजयी रहे जिन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला को हराया।

कोरबा के अलावा कांग्रेस को सभी सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। सरगुजा, राजनाँदगाँव और बस्तर लोकसभा सीटों में उसके उम्मीदवार एक लाख से भी अधिक वोटों के अंतर से हारे।
यहाँ गौर करने लायक बात यह भी है कि सरगुजा, राजनाँदगाँव और बस्तर नक्सल प्रभावित क्षेत्र हैं और इस क्षेत्र में कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में भी करारी हार का सामना करना पड़ा था।

राज्य में लोकसभा चुनाव में वोटों के प्रतिशत की बात करें तो उसमें भी भाजपा कांग्रेस से कहीं आगे निकल गई है वहीं राज्य में उपस्थिति का अहसास कराने की कोशिश कर रही बहुजन समाज पार्टी को भी नुकसान ही हुआ है।

इन लोकसभा चुनाव में भाजपा को 45.16 प्रतिशत वोट मिले हैं जबकि कांग्रेस को लगभग आठ फीसदी कम 37.4 फीसदी मत प्राप्त हुए हैं। इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को केवल 4.56 फीसदी मतों से ही संतोष करना पड़ा है। विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच केवल डेढ़ फीसदी वोट का ही अंतर था। कुल मिलाकर देखा जाए तो पता चलता है कि पिछले छह महीने के दौरान कांग्रेस लगातार यहाँ से पिछड़ती चली गई है।

राज्य की बिलासपुर लोकसभा सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी के चुनाव लड़ने के कारण पार्टी को इस सीट से काफी उम्मीद थी लेकिन पार्टी का प्रदर्शन यहाँ भी ठीक नहीं रहा। इस सीट पर जोगी के घोर विरोधी दिलीपसिंह जूदेव 20 हजार से अधिक मतों से चुनाव जीते हैं।

कांग्रेस के कुछ नेताओं के मुताबिक बिलासपुर की हार से कांग्रेस को तो नुकसान हुआ ही है साथ ही इससे जोगी के राजनीतिक कद पर भी इसका असर पड़ सकता है।

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