पिछले पाँच वर्ष से केन्द्र की राजनीति में छाए रहे वाम दल पश्चिम बंगाल का किला टूटने के साथ ही अचानक नाटकीय रूप से राष्ट्रीय राजनीति के हाशिए पर पहुँच गए हैं।
पश्चिम बंगाल और केरल में वाम दलों का पत्ता साफ हो गया है और कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठजोड़ ने उन्हें करारी शिकस्त दी है। तीसरे मोर्चे के गठन के साथ ही केन्द्र में गैर कांग्रेस सरकार बनाने का सपना देख रहे वाम की किरकिरी हो गई है।
केरल में माकपा नीत वाम मोर्चा को 2004 में 20 में से 19 सीटें मिली थीं लेकिन इस बार केवल चार सीटों पर ही उसकी पकड़ बन पाई है। विश्लेषक माकपा नेताओं केरल के मुख्यमंत्री वी एस अच्युतानंदन और राज्य सचिव पिनाराई विजयन के बीच हुए विवाद को हार की वजह बता रहे हैं।
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के गठबंधन ने वाम दलों की सीटों की संख्या अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुँचा दी है।
वाम दलों ने भारत अमेरिकी परमाणु करार के मुद्दे पर संप्रग सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। वाम दलों ने गैर कांग्रेस और गैर भाजपा वैकल्पिक सरकार बनाने के इरादे से तीसरा मोर्चा बनाया।
माकपा, भाकपा, फॉरवर्ड ब्लाक, आरएसपी के अलावा तीसरे मोर्चे में मायावती की बसपा, एच डी देवगौड़ा की जद एस, एन चंद्रबाबू नायडू की तेदेपा और अन्नाद्रमुक की जे जयललिता शामिल हुईं। मोर्चे में शामिल टीआरएस पिछले सप्ताह की राजग में शामिल हो गया था।
बीजद के भाजपा से संबंध तोड़ने के बाद वाम मोर्चा काफी उत्साहित था। वाम दलों के नेताओं ने चुनाव बाद के परिदृश्य में स्पष्ट कर दिया है कि वे कांग्रेस नीत सरकार का समर्थन करने की बजाय विपक्ष में बैठना पसंद करेंगे।