वहीं धार्मिक मान्यता के अनुसार, ग्रहण लगने का कारण छाया ग्रह राहु-केतु हैं, इस संबंध में शास्त्रों में एक पौराणिक कथा का वर्णन मिलता है। जो इस प्रकार है-
पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवासुर संग्राम में जब समुद्र मंथन हुआ तो उस मंथन से 14 रत्न निकले थे उनमें अमृत का कलश भी एक था। अब देवताओं और दानवों के बीच अमृत पान के लिए विवाद पैदा शुरू होने लगा, तो इसको सुलझाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया।
वह असुर छल से देवताओं की पंक्ति में आकर बैठ गए और अमृत पान करने लगा।
देवताओं की पंक्ति में बैठे चंद्रमा और सूर्य ने इस दानव को पहचान लिया। इस बात की जानकारी दोनों ने भगवान विष्णु को दी, जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से दानव का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन उस दानव ने अमृत को गले तक उतार लिया था, जिसके कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई और उसके सिर वाला भाग राहू और धड़ वाला भाग केतू के नाम से जाना गया।