इंदौर के 5 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा के टिकट के लिए भारी उठापटक

Indore Election News: भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भले ही मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव के लिए पार्टी उम्मीदवारों की दूसरी सूची को अंतिम रूप देने में लगा है, लेकिन इंदौर के 5 विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी के टिकट के लिए भारी उठापटक मची हुई है। दावेदार अपने को दूसरे से बेहतर साबित करने में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं और भोपाल व दिल्ली तक शक्ति प्रदर्शन कर चुके हैं। 
 
सबसे मजबूत दावा सुदर्शन का, जैन और मौर्य भी दौड़ में : यहां सबसे मजबूत दावा दो बार विधायक रह चुके सुदर्शन गुप्ता का है। पार्टी के केंद्रीय एवं प्रदेश नेतृत्व को सर्वे में जो फीडबैक मिला है, वह भी गुप्ता के पक्ष में ही है। 2018 का चुनाव हारने के बाद भी गुप्ता यहां लगातार सक्रिय रहे और सालभर पहले संपन्न हुए नगर निगम चुनाव में भी यहां से भाजपा को अच्छी खासी बढ़त मिली, बावजूद इसके कि यह कांग्रेस प्रत्याशी और 2018 में गुप्ता को चुनाव हराने वाले वर्तमान विधायक संजय शुक्ला का गृह क्षेत्र था।
 
नए चेहरों को मौका देने की जो कवायद भाजपा में चल रही है, उसके चलते यहीं से दो नए नाम सामने आए हैं। पहला है भाजपा के प्रदेश सह-मीडिया प्रभारी और पार्षद रह चुके टीनू जैन का और दूसरा युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहे खांटी संघी अमरदीप मौर्य का। मौर्य संघ और नरेंद्र सिंह तोमर के भरोसे हैं तो जैन को उनके सामाजिक नेटवर्क के साथ ही भोपाल और दिल्ली के बड़े नेताओं से मदद मिल रही है। दोनों यहां गाहे-बगाहे अपनी ताकत दिखाने में पीछे नहीं रहते हैं। 
एक संभावना यह भी जताई जा रही है कि यदि पार्टी इस बार उषा ठाकुर को महू से मौका नहीं देती है तो ऐसी स्थिति में वे इंदौर एक से टिकट के लिए दावा कर सकती हैं। 2003 में वे यहीं से पहली बार विधायक चुनी गईं थी और 2008 में पार्टी ने उन्हें मौका न देते हुए सुदर्शन गुप्ता को टिकट दिया था। 
 
आखिरी दौर में गौड़ का भारी विरोध, विरोधियों ने भोपाल में भी दिखाई ताकत : यह सीट 1990 से भाजपा जीत रही है। कांग्रेस यहां से कई दिग्गजों को दांव पर लगा चुकी है, लेकिन सारे प्रयोग विफल रहे और 2018 तक भगवा ही लहराया। 6 महीने पहले तक यहां से इंदौर की मेयर रह चुकीं वर्तमान विधायक मालिनी गौड़ का टिकट पक्का था, पर जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, विरोध के स्वर बढ़ते जा रहे हैं। विरोध करने वाले नेताओं ने भोपाल में भी दमदारी से अपनी बात रखी और साफ कह दिया कि गौड़ के अलावा उन्हें कोई भी मंजूर है। इस सबके बावजूद गौड़ अपनी उम्मीदवारी को लेकर आश्वस्त हैं। यदि उनके नाम पर सहमति नहीं बनी तो वे अपने बेटे एकलव्य का नाम भी आगे बढ़ा सकती हैं। हालांकि एकलव्य यह स्पष्ट कर चुके हैं कि चुनाव श्रीमती गौड़ ही लड़ेंगी। 
यदि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने कुछ सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ाने का निर्णय लिया तो फिर यहां से सांसद शंकर लालवानी भी एक दावेदार रहेंगे। इस विधानसभा क्षेत्र में सिंधी मतदाताओं की अच्छी-खासी संख्या है और लालवानी को मौका देकर पार्टी इसे भुनाना चाहेगी। महापौर पुष्यमित्र भार्गव की निगाहें भी काफी समय से इस क्षेत्र पर है। उन्हें पार्टी के इशारे का इंतजार है। महापौर बनने के बाद धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियों के माध्यम से उन्‍होंने इस क्षेत्र में अपना नेटवर्क मजबूत किया है। यहां पार्टी किसी नए चेहरे को भी मौका दे सकती है। 
 
बाबा का मजबूत विकल्प ढूंढना टेढ़ी खीर : 2003 से महेंद्र हार्डिया इस क्षेत्र से विधायक हैं। बढ़ती उम्र तथा पार्टी में ही विरोध के चलते यह अंदेशा जताया जा रहा है कि बाबा को संभवत: इस बार उम्मीदवारी से वंचित कर दिया जाए। हालांकि हार्डिया अभी भी उम्मीदवारी को लेकर आश्वस्त हैं और मुख्यमंत्री तथा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के सामने अपनी स्थिति स्पष्ट कर यह भी कह चुके हैं कि यदि पार्टी उनके बजाय किसी और को भी मौका देगी तो वे उसकी पूरी मदद करेंगे। 
 
यहां से भाजपा के नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे भी टिकट की दौड़ में हैं। वे ये मानकर चल रहे हैं कि इस बार हार्डिया के बजाय पार्टी उन्हें मौका देगी। उनकी टीम क्षेत्र में सक्रिय हो गई है और सोशल मीडिया पर जिस अंदाज में वे अपनी बात रख रहे हैं, उससे यह स्पष्ट है कि टिकट को लेकर वे बहुत आश्वस्त हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में करीब सवा लाख अल्पसंख्यक मतदाता हैं और जिस अंदाज में हार्डिया ने इन्हें साधा था, वह रणदिवे के बूते की बात नहीं है। पार्टी के एक बड़े वर्ग में उनका विरोध भी है। 
यहां से भाजपा के टिकट के लिए युवा आयोग के अध्यक्ष डॉ. निशांत खरे, भाजपा पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष और संघ में महत्वपूर्ण दायित्व में रहे नानूराम कुमावत के साथ ही इंदौर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष जयपालसिंह चावड़ा भी दावेदारों की कतार में हैं। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि जो फीडबैक पार्टी के प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंचा है, उसके बाद हार्डिया को लेकर नए सिरे से विचार विमर्श शुरू हुआ है। 
 
उषा ठाकुर की परेशानी बढ़ी, स्थानीय बनाम बाहरी बड़ा मुद्दा : महू में इस बार स्थानीय बनाम बाहरी बड़ा मुद्दा है और इस मुद्दे ने यहां की विधायक और कैबिनेट मंत्री उषा ठाकुर की नींद उड़ा रखी है। इस विधानसभा क्षेत्र के सारे बड़े नेता एकमत से यह बात पार्टी नेतृत्व के सामने रख चुके हैं कि इस बार हमें बाहरी नेता उम्मीदवार के रूप में मंजूर नहीं होगा। इन लोगों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यहां से किसी को भी मौका दे दें, लेकिन कोई बाहरी स्वीकार्य नहीं। कुछ दिनों पहले जब केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल विधानसभा सम्मेलन में शामिल होने आए थे, तब तो स्थानीय बनाम बाहरी के मुद्दे पर बैनर-पोस्टर तक लगा दिए गए थे। 
 
ठाकुर ने 2018 में इंदौर-3 से आकर महू में चुनाव लड़ा था और तमाम अनुमानों को झुठलाते हुए अंतरसिंह दरबार जैसे मजबूत उम्मीदवार को शिकस्त दी थी। तब कैलाश विजयवर्गीय उनके मुख्य चुनावी रणनीतिकार की भूमिका में थे और संघ के कई दिग्गजों ने उन्हें जिताने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। भाजपा के स्थानीय नेता भी उनके पक्ष में एकजुट हुए थे।
 
अब स्थिति बदली हुई है और ऐसे में दो विकल्प चर्चा में हैं। पहला यह है कि इस बार पार्टी ठाकुर को मौका न दे और दूसरा यह कि उन्हें इंदौर-1 या राजपूत बाहुल्य देपालपुर विधानसभा क्षेत्र से मौका दिया जाए। केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और संघ के दिग्गज भैया जी जोशी के वरदहस्त के चलते ठाकुर आश्वस्त हैं कि उन्हें एक फिर हर हालत में मौका मिलेगा। राऊ के पूर्व विधायक जीतू जिराती की निगाहें भी इस विधानसभा क्षेत्र पर हैं और विजयवर्गीय, मैंदोला भी इन्हें यहां से चुनाव लड़वाने के लिए जमकर लॉबिंग कर रहे हैं। भाजयुमो के जिला अध्यक्ष मनोज ठाकुर भी यहां से टिकट के लिए अपनी ताकत दिखा रहे हैं। 
 
पटेल का टिकट खतरे में, चौधरी का दावा सबसे मजबूत : यहां पहली बार मनोज पटेल की उम्मीदवारी खतरे में दिख रही है। वे यहां से अब तक चार चुनाव लड़ चुके हैं। इनमें से दो में वे विजयी रहे और दो में शिकस्त खानी पड़ी। इस बार यहां मनोज का भयंकर विरोध है और पार्टी के भीतर ही किसी नए चेहरे को आगे लाने की बात चल रही है। मनोज मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कट्टर समर्थक माने जाते हैं और उनकी उम्मीदवारी बहुत कुछ मुख्यमंत्री के रुख पर ही निर्भर करेगी।
 
स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा यहां भी जोर पकड़े हुए है और इसी के चलते सामाजिक क्षेत्र में मजबूत तानाबाना बुन चुके जबरेश्वर सेना के राजेंद्र चौधरी का नाम भी तेजी से आगे आया है। इंदौर दुग्ध संघ के पूर्व अध्यक्ष उमराव सिंह मौर्य, भाजयुमो के नेता चिंटू वर्मा भी टिकट की दौड़ में हैं। वे विजयवर्गीय के कट्टर समर्थक माने जाते हैं। यह विधानसभा क्षेत्र मिलेजुले नतीजे देने के लिए ख्यात है। इस विधानसभा क्षेत्र में राजपूत वोटों के समीकरण के चलते आईडीए के अध्यक्ष जयपाल सिंह चावड़ा का रुख भी इस सीट पर है। कुछ ऐसी ही स्थिति उषा ठाकुर के साथ बन रही है। वे भी यहां से दावेदार मानी जा रही हैं।
 

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