बाघ विहीन होने पर पन्ना टाइगर रिजर्व तीन साल पूर्व जिस तरह से सुर्खियों में आया था, अब वह बाघों की तेजी से वंशवृद्धि को लेकर चर्चा में है। सबसे ज्यादा खुशी की बात यह है कि टाइगर रिजर्व से बाघों का पूरी तरह से सफाया हो जाने के बावजूद भी यहां के बाघों की नस्ल खत्म नहीं हुई।
जिला मुख्यालय से 10 किमी दूर लखनपुर सेहा के जंगल में एक नर बाघ के पदचिह्न मिले हैं, जिसकी वन अधिकारियों व विशेषज्ञों की टीम द्वारा तलाश की जा रही है।
बाघों का सफाया हो जाने की घोषणा के बाद टाइगर रिजर्व में बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू की गई। योजना के तहत कान्हा और बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान से चार बाघिन तथा पेंच टाइगर रिजर्व से एक बाघ पन्ना लाया गया।
दो वर्ष की अल्प अवधि में ही यहां तीन बाघिनों का सफल प्रजनन हुआ। इन बाघिनों के आठ से भी अधिक शावक पन्ना टाइगर रिजर्व की शान बढ़ा रहे हैं, जिनमें 6 शावक डेढ़ वर्ष की उम्र को पार कर चुके हैं तथा अपनी मां से अलग होकर टेरीटोरी की खोज करने लगे हैं।
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पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति ने बताया कि पन्ना के माथे पर बदनामी का जो दाग लगा था कि यहां के बाघों की नस्ल खत्म हो गई है। वह दाग भी अब मिट जाएगा।
बताया जा रहा है कि यह पूरा इलाका अत्यधिक दुर्गम है तथा यहां का जंगल भी बेहतरीन है। यही वजह है कि इस विशाल व दुर्गम वन क्षेत्र में पन्ना के बाघ अपने को बचाने में कामयाब हो सके हैं।
बाघों के संरक्षण और उनकी सुरक्षा में मौजूदा प्रबंधन को यदि आम जनता का भी रचनात्मक सहयोग मिल जाय तो पन्ना की धरती एक बार फिर बाघों से आबाद हो सकती है और मप्र फिर टाइगर स्टेट का दर्जा प्राप्त कर सकता है।
मूर्ति के अनुसार दहलान चौकी व लखनपुर सेहा के जंगल में बाघ के पगमार्क मिले हैं। राज्य वन्यप्राणी बोर्ड के सदस्य हनुमंत सिंह सहित वन अधिकारियों ने पगमार्क देखे हैं। वन्य जीव संस्थान देहरादून और पन्ना टाइगर रिजर्व की टीम बाघ की तलाश में जुटी है।