मनुष्य हर क्षण परमपिता पररमेश्वर द्वारा दिए गए इस जीवन को एक पहेली समझ इसे सुलझाने के प्रयास में लगा रहता है- सुख-दुख सदा निर्बाध गति से आते हैं, लेकिन उसे सुख का जाना और दुख का आना सदा आश्चर्य लगता है।
मनुष्य के लिए आवश्यक है कि वह नियति का फलादेश सम्मान के साथ स्वीकार कर अपने कार्यों में रत रहे और कर्मशील रहे, क्योंकि कर्म ही प्रत्येक लक्ष्य तक पहुंचने का एकमात्र रास्ता है। (साभार : धर्मादित्य टाइम्स)