इंदौर। तीन तलाक पर उच्चतम न्यायालय के फैसले ने बात करने की ताकत दी है। यह फायदा या नुकसान का विषय नहीं है। समाज बदलेगा तो कानून बदलेगा और कानून बदलेगा तो समाज बदलेगा। यह फैसला देर से आया है, मगर दुरुस्त है।
'तीन तलाक : परंपरा, स्वाभिमान और संविधान' विषय पर इंदौर प्रेस क्लब में आयोजित परिसंवाद में विभिन्न वक्ताओं ने उक्त विचार व्यक्त किए। उपमहाधिवक्ता पुष्यमित्र भार्गव ने कहा कि एक ऐसा कानून बने जहां समाज हक मुस्लिम महिला और पुरुषों को तलाक का समान अधिकार मिले। तलाक एक कॉन्ट्रेक्ट है। तमाम मुस्लिम देशों में 'तलाक-ए-बिदअत' खत्म हो चुका है। समाज बदलेगा तो कानून बदलेगा और कानून बदलेगा तो समाज बदलेगा।
वेबदुनिया के संपादक जयदीप कर्णिक ने कहा कि तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को धर्म के चश्मे से नहीं देखना चाहिए। यह ऐसी नजीर है इसे बहुत पहले कायम हो जाना चाहिए था। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि जब यह कुरीति मुस्लिम मुल्कों में खत्म हो सकती है तो भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में क्यों खत्म नहीं हो सकती? यह हमारी धर्मनिरपेक्षता को चुनौती देने वाली परंपरा है।
शहर कांग्रेस अध्यक्ष प्रमोद टंडन ने कहा कि लोग धर्म के ठेकेदार हो गए हैं, कट्टरपंथी हो गए हैं। कोई बात कहीं लिखी है या नहीं लिखी, उन्हें तो बस थोपना है। इस देश के पुरुषों का दुर्भाग्य है, जिन्होंने इस मामले में समझ नहीं दिखाई। दरअसल, यह फायदे और नुकसान का विषय नहीं है। दूसरी ओर पार्षद रूबीना खान ने कहा कि यह सिर्फ चंद महिलाओं का मामला है। इसे ज्यादा तूल देने की जरूरत नहीं है।
मध्यप्रदेश के भाजपा प्रवक्ता उमेश शर्मा ने कहा कि यह हिन्दू या मुस्लिम की बात नही है। यह बात अलग होने के तरीके की है। यह फैसला बहुत पहले हो जाना चाहिए था। मीना कुमारी का उदाहरण देते हुए शर्मा ने कहा कि उनका स्वाभिमान तलाक से ज्यादा हलाला के द्वारा हरा गया। शिक्षाविद डॉ. निशा खान सिद्दीकी और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के महामंत्री रोनित राय ने भी परिसंवाद में अपने विचार रखे।