अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त, हिन्दी या हिंग्लिश भी बना सकती है डॉक्टर
गुरुवार, 13 सितम्बर 2018 (18:33 IST)
इंदौर। मध्यप्रदेश में चिकित्सा पाठ्यक्रमों की परीक्षाओं के दौरान करीब 40,000 विद्यार्थियों के लिए भाषा अब कोई बाधा नहीं रह गई है। सूबे में हिन्दी में पर्चा देकर भी एमबीबीएस और अन्य पाठ्यक्रमों की प्रतिष्ठित डिग्री हासिल की जा सकती है।
यह बात मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के इसी साल से लागू अहम फैसले से मुमकिन हो सकी है। फैसले के बाद हिन्दी पट्टी के इस प्रमुख राज्य में एमबीबीएस के अलावा नर्सिंग, डेंटल, यूनानी, योग, नेचुरोपैथी और अन्य चिकित्सा संकायों के पाठ्यक्रमों की परीक्षाएं हिन्दी में दिए जाने का सिलसिला शुरू हुआ है।
जबलपुर स्थित विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. रविशंकर शर्मा ने गुरुवार को बताया कि परीक्षाओं के दौरान हमारे लिए यह जांचना जरूरी होता है कि किसी विद्यार्थी को संबंधित विषय का ज्ञान है या नहीं? इस सिलसिले में भाषा की कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। यही सोचकर हमने अपने सभी पाठ्यक्रमों की परीक्षाओं में अंग्रेजी के विकल्प के रूप में हिन्दी या अंग्रेजी मिश्रित हिन्दी के इस्तेमाल को अनुमति देने का फैसला किया है।
उन्होंने बताया कि इस साल सूबे के 10 चिकित्सा महाविद्यालयों के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब एमबीबीएस पाठ्यक्रम के विद्यार्थियों को हिन्दी या अंग्रेजी मिश्रित हिन्दी में परीक्षा देने की आजादी मिली। इस बार एमबीबीएस प्रथम वर्ष पाठ्यक्रम के कुल 1,228 में से 380 विद्यार्थियों यानी लगभग 31 प्रतिशत उम्मीदवारों ने हिन्दी या अंग्रेजी मिश्रित हिन्दी में परीक्षा दी है।
शर्मा ने कहा कि इस परीक्षा का नतीजा एकाध महीने में घोषित होने की उम्मीद है। हमें भरोसा है कि यह परिणाम गुजरे वर्षों की तुलना में बेहतर होगा, क्योंकि इस बार परीक्षार्थियों को हिन्दी या अंग्रेजी मिश्रित हिन्दी में पर्चा देने का मददगार विकल्प भी मिला है। उन्होंने यह भी बताया कि मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के सभी पाठ्यक्रमों के करीब 40,000 विद्यार्थी केवल सैद्धांतिक परीक्षा ही नहीं, बल्कि प्रायोगिक और मौखिक परीक्षा (वाइवा) में भी हिन्दी या अंग्रेजी मिश्रित हिन्दी का इस्तेमाल कर सकते हैं।
बहरहाल, चिकित्सा पाठ्यक्रमों में हिन्दी में पढ़ाई की डगर विद्यार्थियों के लिए उतनी आसान भी नहीं है। खासकर एमबीबीएस पाठ्यक्रम के लिए हिन्दी की स्तरीय पुस्तकों का गंभीर अभाव है। इंदौर के शासकीय महात्मा गांधी स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय के सह-प्राध्यापक (एसोसिएट प्रोफेसर) डॉ. मनोहर भंडारी ने इस बात की पुष्टि की और कहा कि चिकित्सा पाठ्यक्रमों के विद्यार्थियों के लिए हिन्दी की अच्छी किताबें बेहद जरूरी हैं।
वर्ष 1992 में हिन्दी में शोध प्रबंध (थीसिस) लिखकर एमडी (फिजियोलॉजी) की उपाधि प्राप्त करने वाले विद्वान ने कहा कि चिकित्सा पाठ्यक्रमों के लिए हिन्दी की कुछ किताबें तो ऐसी हैं जिन्हें पढ़कर सिर पीट लेने का मन करता है। खासकर तकनीकी शब्दों के अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद के समय इन पुस्तकों में अर्थ का अनर्थ कर दिया गया है।