No helmet no petrol campaign in Indore: सिर सलामत को पगड़ी हजार... अर्थात सिर सुरक्षित है तो जीवन भी सुरक्षित है। वाहन चालकों के लिए हेलमेट सिर्फ एक नियम नहीं, बल्कि काफी हद तक जीवन की गारंटी भी है। हर दिन सड़कों पर सैकड़ों दुर्घटनाएं होती हैं। हेलमेट न सिर्फ सिर को गंभीर चोटों से बचाता है, बल्कि यह परिवार के सपनों को भी टूटने से बचाता है। क्योंकि किसी का भी असमय जाना उसके परिवार पर किसी कहर से कम नहीं होता। इंदौर प्रशासन ने इसी को ध्यान में रखते हुए 'नो हेलमेट, नो पेट्रोल' अभियान की एक अगस्त से शुरुआत की है। हालांकि यह अभियान कितना सफल होगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन इस तरह का अभियान पहले भी चलाया गया था, जिसकी कुछ समय बाद ही उसकी हवा निकल गई थी। सवाल यह भी है कि कहीं इस अभियान का बुलबुला भी तो जल्द ही फूट नहीं जाएगा? यह भी तय है कि हेलमेट लगाने भर से शहर के बदहाल ट्रैफिक से लोगों को मुक्ति नहीं मिलने वाली है।
क्या कहते हैं इंदौरी : वेबदुनिया से बातचीत में इंदौरियों ने इस अभियान का समर्थन और स्वागत किया है। लॉ प्रैक्टिशनर खुशबू श्रीवास्तव कहती हैं कि बिना हेलमेट पेट्रोल नहीं देने का फैसला अच्छा है। इससे लोग जागरूक होंगे और हेलमेट लगाएंगे। सिविल इंजीनियर दीपक तिवारी कहते हैं कि सुरक्षा की दृष्टि से यह अनिवार्य होना चाहिए। यदि व्यक्ति आसपास भी जाता है तो उसकी डिक्की में हेलमेट होना चाहिए। एनजीओ कार्यकर्ता गोलू जाट ने कहा कि हेलमेट लोगों की सुरक्षा के लिए है। इसे स्वेच्छा से लगाना चाहिए। हम सुरक्षित रहेंगे तो हमारा परिवार भी सुरक्षित रहेगा। परिवार की खुशी के लिए ही हेलमेट लगाना चाहिए।
डॉ. योगेश मोरे ने कहा कि हेलमेट लगाने से हमारी सुरक्षा होती है। दुर्घटना की स्थिति में हमारा सिर बचा रहता है। सभी लोगों को हेलमेट जरूर लगाया चाहिए। अफजल खान कहते हैं कि हम इस फैसले का स्वागत करते हैं। यह बहुत ही अच्छी चीज है। सुरक्षा की दृष्टि से हेलमेट जरूर लगाना चाहिए। खान ने कहा कि पुलिस 2000 रुपए का चालान बनाने के बजाय हेलमेट लगाने वालों को 100-100 रुपए देना शुरू कर दे तो हेलमेट लगाने वालों की लाइन लग जाएगी।
पेट्रोल पंप संचालकों की चिंता : पेट्रोल पंप संचालक प्रशासन के फैसले के साथ तो हैं, लेकिन उनकी अपनी चिंता है। पेट्रोल पंप डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेन्दर सिंह वासू वेबदुनिया से बातचीत में कहते हैं कि हमारी सबसे बड़ी चिंता यह है कि पेट्रोल पंप पर तरह-तरह के लोग आते हैं, पेट्रोल नहीं देने की स्थिति में झगड़े की नौबत आ सकती है। ऐसे में हमें अपने कर्मचारियों की सुरक्षा को लेकर सबसे बड़ी चिंता है। हमने प्रशासन को अपनी चिंता से अवगत कराया है। हम इस संबंध में कलेक्टर को ज्ञापन भी देंगे। वहीं, डीसीपी ट्रैफिक अरविन्द तिवारी ने वेबदुनिया से बातचीत में कहा कि पुलिस पूरे मामले की निगरानी करेगी कि पेट्रोल पंपों पर बिना हेलमेट पेट्रोल नहीं दिया जाए। इसके साथ ही पेट्रोल पंप कर्मचारियों की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाएगा। संबंधित थानों को भी इस संबंध में निर्देशित किया। यदि कोई विवाद की घटना होती है, तो पुलिस वैधानिक कार्रवाई करेगी।
नो हेलमेट, नो एंट्री : इंदौर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने हेलमेट की अनिवार्यता पर वेबदुनिया से कहा कि किसी भी अभियान की शुरुआत अपने घर से होनी चाहिए। नो हेलमेट नो पेट्रोल अभियान सराहनीय है। हमने सरकारी दफ्तरों को लिखा है शासकीय परिसरों में बिना हेलमेट के एंट्री नहीं होनी चाहिए। यदि ऐसा होगा तो ही इस अभियान को सफलता मिलेगी। पेट्रोल बिना हेलमेट के नहीं मिल रहा है तो ऑफिस में भी बिना हेलमेट एंट्री नहीं मिलनी चाहिए। मैंने कहा है कि शासकीय कंपनियां अपने कार्यालयों में बोर्ड लगाएं कि 'नो हेलमेट नो एंट्री'। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में हम निजी कंपनियां जहां कर्मचारियों की संख्या 50 से ज्यादा उनको भी पत्र लिखेंगे कि बिना हेलमेट कर्मचारियों को परिसर में प्रवेश की अनुमति न दें।
क्या इन सवालों के जवाब देगा प्रशासन : हेलमेट की अनिवार्यता निश्चित ही सराहनीय कदम है, लेकिन क्या हेलमेट लगाने मात्र से इंदौर की ट्रैफिक व्यवस्था सुधर जाएगी। क्या इससे सुबह-शाम होने वाली ट्रैफिक की गुत्थम-गुत्था स्थिति से लोगों को निजात मिल पाएगी? शहर में गड्ढों और सीमेंट की सड़कों के बीच दरारों से हमेशा दुर्घटना का भय बना रहता, कई बार लोग गिरते भी हैं। सिर तो बच जाएगा, लेकिन हाथ-पांव तो लोगों के टूट ही जाएंगे। इस स्थिति से बचने का कोई उपाय है?
इस बीच, इंदौर प्रशासन के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है, इसमें कहा गया है कि बैटरी से चलने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों पर कैसे हेलमेट लागू किया जाएगा? दरअसल, ई-रिक्शा के कारण इन दिनों शहर में सबसे ज्यादा ट्रैफिक बर्बाद हो रहा है, इस ओर किसी का ध्यान नहीं है। उम्मीद करें कि लोगों के सिर तो बच जाएंगे, साथ ही उन्हें शहर की बदहाल ट्रैफिक व्यवस्था से भी निजात मिलेगी। क्या प्रशासन इस ओर ध्यान देगा? क्योंकि शहर का ट्रैफिक सुधारने की दावे तो बहुत किए जाते, लेकिन वे हमेशा 'ढाक के तीन पात' ही साबित होते हैं। (सभी फोटो : धर्मेन्द्र सांगले)