What is Ujjain relation with time calculation: महाकाल की नगरी उज्जैन को कालगणना का केन्द्र माना जाता है। दरअसल, यहां पर कर्क रेखा और भूमध्य रेखा एक-दूसरे को काटती हैं। यही कारण है कि इसे पूर्व का 'ग्रीनविच' भी कहा जाता है। दूसरी ओर, देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन के महाकालेश्वर के नाम में 'काल' यानी समय शब्द मौजूद है। यही कारण है कि उज्जैन को कालगणना और ज्योतिष का भी महत्वपूर्ण केन्द्र माना जाता है। हालांकि वर्तमान में ब्रिटेन में स्थित ग्रीनविच शहर के आधार पर ही घड़ियों का मिलान किया जाता है।
समय का संबंध उज्जैन से : मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव का कहना है कि समय (Time) लंदन के ग्रीनविच शहर से नहीं बल्कि उज्जैन से शुरू होता है। उन्होंने कहा कि सरकार यूके के ग्रीनविच की जगह उज्जैन को वैश्विक प्रधान मध्याह्न रेखा के रूप में स्थापित करने की दिशा में काम कर रही है। जानकारी के मुताबिक राज्य के शहरी विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने बैठक के बाद बताया कि उज्जैन कभी प्रधान मध्याह्न रेखा का केंद्र था। हम इसे फिर से स्थापित करना चाहते हैं। इसके लिए वैज्ञानिक प्रमाण भी जुटाए जा रहे हैं। यादव के मुताबिक न सिर्फ 30 मार्च को पड़ने वाले गुड़ी पड़वा को पूरे प्रदेश में 'हिंदू नव वर्ष' के रूप में मनाया जाएगा साथ ही ऐतिहासिक विक्रम संवत कैलेंडर (57 ईसा पूर्व से प्रचलित) को भी बढ़ावा दिया जाएगा। ALSO READ: महाकाल दर्शन के लिए आ रहे हैं तो यह खबर आपके काम की है
क्या कहते हैं खगोल शास्त्री : दूसरी ओर, खगोल शास्त्रियों का मानना है कि यह उज्जैन शहर पृथ्वी और आकाश की सापेक्षता में ठीक मध्य में स्थित है। उज्जैन देश के मानचित्र में 23.9 अंश उत्तर अक्षांश एवं 74.75 अंश पूर्व रेखांश पर समुद्र सतह से लगभग 1658 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। भौगोलिक स्थिति के कारण ही इसे कालगणना का केंद्र बिंदु कहा जाता है। आमेर के राजा जयसिंह द्वारा स्थापित वेधशाला आज भी इस नगरी को कालगणना के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सिद्ध करती है।
स्कंदपुराण के अनुसार- कालचक्र प्रवर्तको महाकाल:। अर्थात महाकाल को कालचक्र का प्रवर्तक माना जाता है। उज्जैन में साढ़े तीन काल- महाकाल, कालभैरव, गढ़कालिका और अर्ध काल भैरव विराजमान हैं। इनकी पूजा का विशेष विधान है। यहीं से विश्व का काल निर्धारण होता है अर्थात मानक समय का केंद्र भी यहीं है। उज्जैन से ही ग्रह-नक्षत्रों की गणना होती है और यहीं से कर्क रेखा गुजरती है। ALSO READ: जापान में CM मोहन यादव का जोरदार स्वागत, लगे जय श्री महाकाल के नारे
भारतीय मान्यता के अनुसार जब उत्तर ध्रुव की स्थिति 21 मार्च से प्राय: 6 मास का दिन होने लगता है तब 6 मास के तीन माह व्यतीत होने पर सूर्य दक्षिण क्षितिज से बहुत दूर हो जाता है। उस दिन सूर्य ठीक उज्जैन के ऊपर होता है। उज्जैन का अक्षांश और सूर्य की परम कांति दोनों ही 240 अक्षांश पर मानी गई हैं। यह स्थिति पूरी धरती पर और कहीं निर्मित नहीं होती है।
काल के अधिष्ठाता महाकाल : उज्जैन 23.9 अंश उत्तर अक्षांश एवं 770 देशांतर पर समुद्र की सतरह से 1658 फुट की ऊंचाई पर बसी हुई है। वराह पुराण में उज्जैन को नाभि देश और महाकालेश्वर को काल का अधिष्ठाता कहा गया है। देशांतर रेखा और कर्क रेखा यहीं एक-दूसरे को काटती हैं। माना जाता है कि जहां यह रेखाएं एक दूसरे को काटती हैं, संभवत: वहीं महाकालेश्वर मंदिर स्थित है। यहां पर ऐतिहासिक नवग्रह मंदिर और वेधशाला की स्थापना से कालगणना का मध्य बिंदु होने के सबूत मिलते हैं। ALSO READ: उज्जैन महाकालेश्वर की आरती में भस्म होती आस्था, दर्शन और आरती घोटालों से भंग हो रहा भक्तों का मोह
समय का केन्द्र उज्जैन क्यों : भारतीय कालगणना के अनुसार एक दिन और रात सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक में पूर्ण होते हैं जबकि अंग्रेजी कालगणना के अनुसार रात के 12 बजे जबरन दिन बदल दिया जाता है, जबकि उस वक्त उस दिन की रात ही चल रही होती है। अत: समय की इस धारणा पूर्णत: वैज्ञानिक नहीं माना जा सकता। टाइम जोन को समान समय क्षेत्र कहते हैं। दुनिया की घड़ियों के समय का केंद्र वर्तमान में ब्रिटेन का ग्रीनविच शहर है। यहीं से संपूर्ण दुनिया की घड़ियों का समय तय होता है। इंडियन स्टैंडर्ड टाइम भी वहीं से तय होता है। आज के जमाने में घड़ियां स्थानीय स्टैंडर्ड टाइम के अनुसार चलती हैं, उसी हिसाब से सारे काम होते हैं। लेकिन क्या ये जरूरी है कि हर देश में एक ही टाइम जोन हो?
ब्रिटिश काल में बदली चीजें : 19वीं शताब्दी में भारतीय शहरों में विक्रमादित्य के समय से चले आ रहे स्थानीय समय को सूर्य के मुताबिक तय किया जाता था लेकिन ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में भारत में सबकुछ बदल गया। सम्राट विक्रमादित्य के शासनकाल में संपूर्ण भारत का समय उज्जैन से तय होता था। यह समय सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक एक दिन-रात पर आधारित था और उसे एक दिवस माना जाता था। ग्रीक, फारसी, अरबी और रोमन लोगों ने भारतीय कालगणना से प्रेरणा लेकर ही अपने अपने यहां के समय को जानने के लिए अपने तरीके की वेधशालाएं बनाई थीं। रोमन कैलेंडर भी भारत के विक्रमादित्य कैलेंडर से ही प्रेरित था।