महाभारत में धृतराष्ट्र की भूमिका बहुत ही अजब थी। कई पाप किए जिसका परिणाम भी छेलना पड़ा। सबसे बड़ा परिणामय यह कि प्रारब्ध के चलते अंधा पैदा होना पड़ा। दरअसल धृतराष्ट्र ऋषि वेद व्यास के पुत्र थे। आप सोच रहे होंगे ऐसा कैसे? तो आओ जाने हैं धृतराष्ट्र के जन्म और मृत्यु की कहानी:
जन्म : शांतनु और सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य की 2 पत्नियां अम्बिका और अम्बालिका थीं। दोनों को कोई पुत्र नहीं हो रहा था तो सत्यवती के पुत्र वेदव्यास (ऋषि पराशर से जन्में पुत्र) की सहायता से पुत्रों को जन्म दिया। अम्बिका से धृतराष्ट्र, अम्बालिका से पांडु और दासी से विदुर का जन्म हुआ।
अम्बिका जब ऋषि वेद व्यास के सामने गई तो उनके तेज और रूप को देखकर उसने आंखें बंद कर ली जिसके चलते उनका पुत्र अंधा पैदा हुआ। अम्बालिका को बुखार जैसे आ गया तो उनका पुत्र पांडु रोग से ग्रसित पैदा हुआ। इस बीच जब दूसरी बार अम्बिका को भेजा जाने था तो उसने अपनी जगह अपनी दासी को भेज दिया। दासी से विदुर का जन्म हुआ। तीनों ही ऋषि वेदव्यास की संतान थीं। इन्हीं तीन पुत्रों में से एक धृतराष्ट्र के यहां जब कोई पुत्र नहीं हुआ तो वेदव्यास की कृपा से ही 99 पुत्र और 1 पुत्री का जन्म हुआ।
धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे थे। उनका विवाह गांधार प्रदेश की राजकुमारी गांधारी से हुआ। कहते हैं कि गांधारी का विवाह भीष्म ने जबरदस्ती धृतराष्ट्र से करवाकर उसके संपूर्ण परिवार को बंधक बनाकर रखा था। गांधारी के लिए यह सबसे दुखदायी बात थी। गांधारी के लिए आंखों पर पट्टी बांधने का एक कारण यह भी था।
धृतराष्ट्र और गांधारी के दुर्योधन सहित 100 पुत्र और एक पुत्री थी। युयुत्सु भी उनका ही पुत्र था, जो एक दासी से जन्मा था। संजय और विदुर धृतराष्ट्र के मंत्री थे। दोनों ने धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती के साथ उन्होंने भी संन्यास ले लिया था। बाद में धृतराष्ट्र की मृत्यु के बाद वे हिमालय चले गए, जहां से वे फिर कभी नहीं लौटे। धृतराष्ट्र का दामाद जयद्रथ था जिसका वध अर्जुन करते हैं।
धृतराष्ट्र के अंधा होने के कारण राज्य के अयोग्य ठहरा और तब पांडु के प्रौढ़ होते ही पांडु को राज्य मिला। लेकिन पांडु एक श्राप के चलते राज्य छोड़कर अपनी पत्नी कुंती और माद्री के साथ जंगल चले गए जहां उनकी मृत्यु हो गई। उस दौरान धृराष्ट्र को ही भीष्म ने राजा नियुक्त कर शासन किया। बाद में कुंती और समर्थकों के कहने पर धृतराष्ट्र और गांधारी को पांडवों को पांडु का पुत्र मानना पड़ा और उन्हें महल में आने की अनुमति देना पड़ी। बस यही से महाभारत प्रारंभ होती है।
मृत्यु : महाभारत युद्ध के 15 वर्ष बाद धृतराष्ट्र, गांधारी, संजय और कुंती वन में चले जाते हैं। तीन साल बाद एक दिन धृतराष्ट्र गंगा में स्नान करने के लिए जाते हैं और उनके जाते ही जंगल में आग लग जाती है। वे सभी धृतराष्ट्र के पास आते हैं। संजय उन सभी को जंगल से चलने के लिए कहते हैं, लेकिन दुर्बलता के कारण धृतराष्ट्र वहां से नहीं जाते हैं, गांधारी और कुंती भी नहीं जाती है। जब संजय अकेले ही उन्हें जंगल में छोड़ चले जाते हैं, तब तीनों लोग आग में झुलसकर मर जाते हैं। संजय उन्हें छोड़कर हिमालय की ओर प्रस्थान करते हैं, जहां वे एक संन्यासी की तरह रहते हैं। बाद नारद मुनि युधिष्ठिर को यह दुखद समाचार देते हैं। युधिष्ठिर वहां जाकर उनकी आत्मशांति के लिए धार्मिक कार्य करते हैं।