महाभारत की कथा में कई अंतरकथाएं हैं और कई कथाएं जनश्रुति या मान्यता के आधार पर भी हैं। उन्हीं में से एक कथा है एकलव्य की। सभी जानते हैं कि एकलव्य को गुरु द्रोण ने शिक्षा नहीं दी थी और बाद में उन्होंने दक्षिणा के रूप में एकलव्य का अंगूठा मांग लिया था। क्योंकि गुरु द्रोण नहीं चाहते थे कि अर्जुन के अलावा कोई भी श्रेष्ठ धनुर्धर हो। दूसरा यह कि उन्होंने भीष्म पितामह को वचन दिया था कि मैं कौरवपुत्रों के अलावा किसी को शिक्षा नहीं दूंगा।
2. ऐसा भी कहा जाता है कि यादव सेना के सफाया होने के बाद यह सूचना जब श्रीकृष्ण के पास पहुंचती है तो वे भी एकलव्य को देखने को उत्सुक हो जाते हैं। दाहिने हाथ में महज चार अंगुलियों के सहारे धनुष बाण चलाते हुए एकलव्य को देखकर वे समझ जाते हैं कि यह पांडवों और उनकी सेना के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। तब श्रीकृष्ण का एकलव्य से युद्ध होता है और इस युद्ध में एकलव्य वीरगति को प्राप्त होता है। हालांकि यह भी कहा जाता है कि युद्ध के दौरान एकलव्य लापता हो गया था। अर्थात उसकी मृत्यु बाद में कैसे हुई इसका किसी को पता नहीं है।
3. पौराणिक कथाओं के अनुसार एकलव्य पूर्व जन्म में भगवान कृष्ण के चचेरे भाई थे। वह श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव के भाई देवश्रवा के पुत्र थे। एक दिन देवश्रवा जंगल में खो जाते हैं, जिन्हें हिरान्यधाणु खोजते हैं, इसलिए एकलव्य को हिरान्यधाणु का पुत्र भी कहा जाता है। यह भी कहा जाता है कि एकलव्य भगवान श्रीकृष्ण के पितृव्य (चाचा) के पुत्र थे जिसे बाल्यकाल में ज्योतिष के आधार पर वनवासी भीलराज निषादराज हिरण्यधनु को सौंप दिया गया था।
4. ऐसी मान्यता है कि एकलव्य की मृत्यु कृष्ण के हाथों रुकमणि हरण के दौरान हुई थी। इस दौरान वह पिता की रक्षा करते हुए मारे गए थे, परंतु तब श्री कृष्ण ने उन्हें द्रोण से बदला लेने के लिए फिर जन्म लेने का वरदान दे दिया था।