1. पौंड्रक की नगरी को उजाड़ना : पौंड्र नगरी का राजा पौंड्रक खुद को वासुदेव भगवान कहता था और श्रीकृष्ण को अपना शत्रु समझता था। एक बार श्रीकृष्ण की माया से उसके महल में एक कमल का फूल गिरा और उसने अपने मित्र काशीराज और वानर द्वीत से पूछा कि ये कहां मिलेगा तो काशीराज ने कहा कि गंधमादन पर्वत पर और वानर द्वीत ने कहा कि मैं लेकर आता हूं। हनुमानजी उसी दिव्य कमल सरोवर के पास रहते थे। श्रीकृष्ण के आदेश पर हनुमानजी खुद ही वानर द्वीत के बंदी बनकर पौंड्र नगरी पहुंच गए और उन्होंने वहां पौंड्रक को चेतावनी दी की यदि तुने खुद को भगवान मानना नहीं छोड़ा और धर्म के मार्ग पर नहीं आया तो मेरे प्रभु तेरा वध कर देंगे। फिर हनुमानजी उसके महल को और उसकी नगरी को नष्ट करने पुन: गंधमादन पर्वत चले जाते हैं। बाद में बलरामजी वानर द्वीत का और श्रीकृष्ण पौंड्रक का वध कर देते हैं।
2. भीम का घमंड किया चूर : एक बार द्रौपदी के कहने पर भी में गंधमादन पर्वत के उस कमल सरोवार के पास पहुंच गया था जहां हनुमानजी रहते थे। हनुमानजी रास्ते में लेटे थे तो भीम ने उन्हें वहां से हटने का कहा। तब हनुमानजी ने कहा कि तुम तो बलशाली हो तो तुम खुद ही मेरी पूंछ हटाकर अपना मार्ग बना लो। परंतु भीम उनकी पूंछ हिला भी नहीं पाया। बाद में भीम को जब यह पता चला की वे तो पवनपुत्र हनुमान हैं तो उन्होंने उनसे क्षमा मांगी।
3. अर्जुन का घमंड किया चूर : इसी तरह एक बार अर्जुन को नदी पार करना थी तो उसने अपनी धनुर्विद्या से बाणों का एक सेतु बनाया और रथ सहित नदी पार की। नदी से उसे पर उसकी हनुमानजी से भेंट हुई। उनसे हनुमाजी से कहा कि भगवान राम यदि इतने ही बड़े धनुर्धारि थे तो मेरे जैसे बाणों का पुल बना सकते थे। तब हनुमामनजी ने कहा कि उसे काल में मुझसे भी शक्तिशाली वानर होते थे। यह बाणों का सेतु उनके भार से ढह जाता और तुम्हारा बाणों का सेतु तो मेरा ही भार सहन नहीं कर सकता। अर्जुन कहता है कि यदि तुम्हारे चलने से मेरे बाणों का सेतु टूट गया तो मैं खुद को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर मानना छोड़ दूंगा। तब हनुमानजी उसे सेतु पर अपना एक ही पग रखते हैं कि तभी सेतु टूट जाता है।
4. बलरामजी के घमंड किया था चूर : बलरामजी ने जब विशालकाय वानर द्वीत को अपनी एक ही मुक्के से मार दिया था तो उन्हें अपने बल पर घमंड हो चला था। तब श्रीकृष्ण के आदेश पर हनुमानजी द्वारिका की वाटिका में घुस गए और वहां फल खाकर उत्पात मचाने लगे। यह सुनकर बलरामजी खुद उन्हें एक साधारण वानर समझकर अपनी गदा लेकर वाटिका से भगाने के लिए पहुंच गए। वहां उनका हनुमानजी से गदा युद्ध हुआ और वे हांफने लगे तब उन्होंने कहा कि सच कहो वानर तुम कौन हो वर्ना में अपना हल निकाल लूंगा। तब वहां श्रीकृष्ण और रुक्मिणी प्रकट होकर बताते हैं कि ये पवनपुत्र हनुमानजी हैं। इसी तरह हनुमानजी ने गरूढ़देव और सुदर्शन चक्र का भी अभिमान तोड़ दिया था।
5. महाभारत युद्ध और हनुमान : श्रीकृष्ण के ही आदेश पर हनुमानजी कुरुक्षेत्र के युद्ध में सूक्ष्म रूप में उनके रथ पर सवार हो गए थे। यही कारण था कि पहले भीष्म और बाद में कर्ण के प्रहार से उनका रथ सुरक्षित रहा, अन्यथा कर्ण ने तो कभी का ही रथ को ध्वस्त कर दिया होता।