गांधारी के शाप के चलते भगवान श्री कृष्ण के कुल के लगभग सभी पुरुष और स्त्रियों का नाश हो गया था। मात्र एक व्यक्ति बचा था जो था भगवान श्रीकृष्ण का प्रपोत्र वज्र। अर्जुन ने इसे इंद्रप्रस्थ का राजा बना दिया था। आधुनिक शोध के अनुसार 3112 ईसा पूर्व श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इस युद्ध के 35-36 वर्ष पश्चात भगवान कृष्ण ने देह छोड़ दी थी तभी से कलियुग का आरंभ माना जाता है।
भगवान श्रीकष्ण ने आठ महिलाओं से विधिवत विवाह किया था। इन आठ महिलाओं से उनको 80 पुत्र मिले थे। इन आठ महिलाओं को अष्टा भार्या कहा जाता था। इनके नाम हैं:- अष्ट भार्या : कृष्ण की 8 ही पत्नियां थीं यथा- रुक्मणि, जाम्बवन्ती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा। इन सभी महिलाओं से 10-10 पुत्रों का जन्म हुआ था। एक पुत्री भी थी जिसका नाम चारूमिता था।
कृष्ण कुल का नाश : गांधारी के शाप के चलते भगवान श्री कृष्ण के कुल का नाश हो गया था। उल्लेखनीय है कि गांधारी ने यदुकुल या यदुवंश के नाश का शाप नहीं दिया था। मथुरा अंधक संघ की राजधानी थी और द्वारिका वृष्णियों की। ये दोनों ही यदुवंश की शाखाएं थीं। यदुवंश में अंधक, वृष्णि, माधव, यादव आदि वंश चला। श्रीकृष्ण वृष्णि वंश से थे। वृष्णि ही 'वार्ष्णेय' कहलाए, जो बाद में वैष्णव हो गए।
मौसुल युद्ध की भूमिका :
महाभारत युद्ध के बाद जब 36वां वर्ष प्रारंभ हुआ तो राजा युधिष्ठिर को तरह-तरह के अपशकुन दिखाई देने लगे। विश्वामित्र, असित, दुर्वासा, कश्यप, वशिष्ठ और नारद आदि बड़े-बड़े ऋषि द्वारका के पास पिंडारक क्षेत्र में निवास कर रहे थे। एक दिन सारण आदि किशोर जाम्बवती नंदन साम्ब को स्त्री वेश में सजाकर उनके पास ले गए और बोले- ऋषियों, यह कजरारे नैनों वाली बभ्रु की पत्नी है और गर्भवती है। यह कुछ पूछना चाहती है लेकिन सकुचाती है। इसका प्रसव समय निकट है, आप सर्वज्ञ हैं। बताइए, यह कन्या जनेगी या पुत्र।
ऋषियों से मजाक करने पर उन्हें क्रोध आ गया और वे बोले, 'श्रीकृष्ण का पुत्र साम्ब वृष्णि और अर्धकवंशी पुरुषों का नाश करने के लिए लोहे का एक विशाल मूसल उत्पन्न करेगा। केवल बलराम और श्रीकृष्ण पर उसका वश नहीं चलेगा। बलरामजी स्वयं ही अपने शरीर का परित्याग करके समुद्र में प्रवेश कर जाएंगे और श्रीकृष्ण जब भूमि पर शयन कर रहे होंगे, उस समय जरा नामक व्याध उन्हें अपने बाणों से बींध देगा।' मुनियों की यह बात सुनकर वे सभी किशोर बहुत डर गए। उन्होंने तुरंत साम्ब का पेट (जो गर्भवती दिखने के लिए बनाया गया था) खोलकर देखा तो उसमें एक मूसल मिला। वे सब बहुत घबरा गए और मूसल लेकर अपने आवास पर चले गए। उन्होंने भरी सभा में वह मूसल ले जाकर रख दिया।
उन्होंने राजा उग्रसेन सहित सभी को यह घटना बता दी। उन्होंने उस मूसल का चूरा-चूरा कर डाला तथा उस चूरे व लोहे के छोटे टुकड़े को समुद्र में फिंकवा दिया जिससे कि ऋषियों की भविष्यवाणी सही न हो। लेकिन उस टुकड़े को एक मछली निगल गई और चूरा लहरों के साथ समुद्र के किनारे आ गया और कुछ दिन बाद एरक (एक प्रकार की घास) के रूप में उग आया।
मछुआरों ने उस मछली को पकड़ लिया। उसके पेट में जो लोहे का टुकडा था उसे जरा नामक ब्याध ने अपने बाण की नोंक पर लगा लिया। मुनियों के शाप की बात श्रीकृष्ण को भी बताई गई थी। उन्होंने कहा- ऋषियों की यह बात अवश्य सच होगी। एकाएक उन्हें गांधारी के शाप की बात याद आ गई। वृष्णिवंशियों को दो शाप- एक गांधारी का और दूसरा ऋषियों का। श्रीकृष्ण सब कुछ जानते थे लेकिन शाप पलटने में उनकी रुचि नहीं थी।
36वां वर्ष चल रहा था। उन्होंने यदुंवशियों को तीर्थयात्रा पर चलने की आज्ञा दी। वे सभी प्रभास में उत्सव के लिए इकट्ठे हुए और किसी बात पर आपस में झगड़ने लगे। झगड़ा इतना बढ़ा कि वे वहां उग आई घास को उखाड़कर उसी से एक-दूसरे को मारने लगे। उसी 'एरका' घास से यदुवंशियों का नाश हो गया। हाथ में आते ही वह घास एक विशाल मूसल का रूप धारण कर लेती। श्रीकृष्ण के देखते-देखते साम्ब, चारुदेष्ण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध की मृत्यु हो गई।
मौसुल युद्ध : इस आपसी झगड़े को मौसुल युद्ध कहा जाता है। इस युद्ध के कई रहस्य हैं। झगड़े की शुरुआत कृतवर्मा के अपमान से हुई। सात्यकि ने मदिरा के आवेश में उनका उपहास उड़ाते हुए कहा कि अपने को क्षत्रिय मानने वाला ऐसा कौन वीर होगा, जो रात में मुर्दे की तरह सोए मनुष्यों की हत्या करेगा। तूने जो अपराध किया है, यदुवंशी उसे कभी माफ नहीं कर सकते। उसके ऐसा कहने पर प्रद्युम्न ने भी कृतवर्मा का अपमान करते हुए उनकी बात का समर्थन किया।
कृतवर्मा ने महाभारत का युद्ध लड़ा था और वे युद्ध में जीवित बचे 18 योद्धाओं में से एक थे। कृतवर्मा यदुवंश के अंतर्गत भोजराज हृदिक का पुत्र और वृष्णि वंश के 7 सेनानायकों में से एक था। महाभारत युद्ध में इसने एक अक्षौहिणी सेना के साथ दुर्योधन की सहायता की थी। कृतवर्मा कौरव पक्ष का अतिरथी योद्धा था।
कृतवर्मा को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने एक हाथ उठाकर सात्यकि का तिरस्कार करते हुए कहा, 'भूरिश्रवा की बांह कट गई थी और वे मरणांत उपवास का निर्णय कर युद्ध भूमि में बैठ गए थे, उस अवस्था में भी तुमने वीर कहलाकर भी उनकी नृशंसतापूर्वक हत्या क्यों कर दी थी। यह तो नपुंसकों जैसा कृत्य था। इस बात पर सात्यकि को क्रोध आ गया। उन्होंने तलवार से कृतवर्मा का सिर धड़ से अलग कर दिया। बात बढ़ती चली गई और सब काल-कवलित हो गए। मूसल के प्रहार से उन सबने एक-दूसरे की जान ले ली।
बाद में जब श्रीकृष्ण का प्रभाष क्षेत्र में देहांत हुआ तो द्वारिका डूबने लगी। उस वक्त अर्जुन उपस्थित थे। कृष्ण वंश में बस वज्र नामक उनका पोता ही बचा था। अर्जुन सभी यदुवंशी महिलाओं और वज्र को लेकर हस्तिनापुर की ओर चले। रास्ते में भयानक जंगल आदि को पार करते हुए वे पंचनद देश में पड़ाव डालते हैं। वहां रहने वाले लुटेरों को जब यह खबर मिलती है कि अर्जुन अकेले ही इतने बड़े जनसमुदाय को लेकर हस्तिनापुर जा रहे हैं, तो वे धन के लालच में वहां धावा बोल देते हैं। अर्जुन चीखकर लुटेरों को चेतावनी देते हैं, लेकिन लुटेरों पर उनकी चीख का कोई असर नहीं होता है और वे लूट-पाट करने लगते हैं। वे सिर्फ स्वर्ण आदि ही नहीं लूटते हैं बल्कि सुंदर महिलाओं को भी लूटते हैं। चारों ओर हाहाकार मच जाता है।
जैसे-तैसे अर्जुन यदुवंश की बची हुईं स्त्रियों व बच्चों को लेकर कुरुक्षेत्र पहुंचते हैं। यहां आकर अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण के पोते वज्र को इन्द्रप्रस्थ का राजा बना देते हैं। बूढ़ों, बालकों व अन्य स्त्रियों को अर्जुन इन्द्रप्रस्थ में रहने के लिए कहते हैं। लेकिन कहते हैं कि रुक्मिणी, शैब्या, हेमवती तथा जाम्बवंती आदि रानियां अग्नि में प्रवेश कर जाती हैं व शेष वन में तपस्या के लिए चली जाती हैं।