कोविड-19 के काल में यदि हो गए हैं बर्बाद तो अपनाएं महाभारत के ये 5 उपाय

इस वक्त संपूर्ण विश्व चायनीज वायरस कोरोना या कोविड-19 से जूझ रहा है। लॉकडाउन के दौरान कई लोगों की नौकरी चली गई तो कई लोग कोरोना संक्रमण से जूझ रहे हैं। बहुतों के व्यापार-व्यवसाय ठप हो चले हैं। परिवार ही नहीं संपूर्ण देश आर्थिक संकट से भी जूझ रहा है। ऐसे में कई लोगों ने जीवन से हार मान ली है तो कई लोग इससे उभरकर बाहर निकल आएं हैं और कई लोग अभी भी संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में महाभारत की ये 5 बातें जीवन को बर्बादी से बचा सकती है।
 
 
1.जैसी सोच वैसा भविष्य : महाभारत के अनुसार व्यक्ति जैसा सोचता है वैसा ही हो जाता है। यदि आप सबकुछ खो बैठे हैं तो निश्‍चित हो जाइये क्योंकि आप सबकुछ पाने की क्षमता रखते हो। यह ब्रह्मांड उल्टे वृक्ष की भांति है। अर्थात इसकी जड़ें ऊपर की ओर हैं। आपको नीचे कुछ भी नहीं मिलेगा। ऊपर ही मिलेगा। जिस तरह आपके शरीर की जड़ें भी आपके मस्तिष्क में है उसी तरह आसमान में है अदृश्य जड़ें। विश्वास करो और आसमान से मांगो। सोचो कि मुझे ये चाहिए और वह मिलेगा। नकारात्मक सोच को बाहर निकालकर फिर से शुरुआत करो।
 
हिन्दू धर्म मानता है दृश्य जगत का आधार है अदृश्य जगत। अदृश्य जगत के अस्तित्व को नहीं मानना आसान है क्योंकि उसे समझना कठिन है। यह जान लें कि व्यक्ति के जीवन पर प्राकृतिक वातावरण, सामाजिक माहौल, ग्रह-नक्षत्र, देवी-देवताओं और प्रेत आदि अदृश्य गतिविधियों का भी प्रभाव पड़ता है। इसे समझना जरूरी है। महाभारत में युद्ध में गीता का ज्ञान देते वक्त श्रीकृष्ण अर्जुन से यही कहते हैं कि तुझे देखने के लिए आकाश में तेरे पिता सहित देवता भी मौजूद हैं। देवताओं को पूजने वाले देवताओं को और राक्षसों को पूजने वाले राक्षसों को प्राप्त होते हैं। तुझे तय करना है कि तू किस ओर है। तेरी सोच सकारात्मक है तो सभी कुछ सही होगा परंतु राक्षसों के समान है तो वे ही तेरी मदद करेंगे।
 
 
2.संयम रखना जरूरी है :
 
प्राप्यापदं न व्यथते कदाचि-
दुद्योगमन्विच्दति चाप्रमत्त:।
दु:खं च काले सहते महात्मा
धुरन्धरस्तस्य जिता: सपत्ना:।। -महाभारत
 
सरल भावार्थ : बुरे हालात या मुसीबतों के वक्त जो इंसान दु:खी होने की जगह पर संयम और सावधानी के साथ पुरुषार्थ, मेहनत या परिश्रम को अपनाए और सहनशीलता के साथ कष्टों का सामना करे, तो उससे शत्रु या विरोधी भी हार जाते हैं। आपकी और हमारी जिंदगी में भी ऐसे तमाम मौके आते हैं जबकि हमें मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है। कुछ लोग इस दौरान घबरा जाते हैं, कुछ दुखी हो जाते हैं और कुछ शुतुरमुर्ग बन जाते हैं और कुछ लोग अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं। मानसिक रूप से दृढ़ व्यक्ति ही ऐसे हालात में शांतचित्त रहकर धैर्य और संयम से काम लेकर सभी को ढांढस बंधाने का कार्य करता है और इन मुश्किल हालात से सभी को बाहर निकाल लाता है। परिवार, समाज या कार्यक्षेत्र में आपसी टकराव, संघर्ष और कलह होते रहते हैं लेकिन इन सभी में संयम जरूरी है।

 
3. जीवन हो योजनाओं से भरा : भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार जीवन का बेहतर प्रबंधन करना जरूरी है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में बेहतर रणनीति आपके जीवन को सफल बना सकती है और यदि कोई योजना या रणनीति नहीं है तो समझो जीवन एक अराजक भविष्य में चला जाएगा जिसके सफल होने की कोई गारंटी नहीं। भगवान श्रीकृष्ण के पास पांडवों को बचाने का कोई मास्टर प्लान नहीं होता तो पांडवों की कोई औकात नहीं थी कि वे कौरवों से किसी भी मामले में जीत जाते। उनकी जीत के पीछे श्रीकृष्ण की रणनीति का बहुत बड़ा योगदान रहा। यदि आपको जीवन के किसी भी क्षे‍त्र में जीत हासिल करना हो और यदि आपकी रणनीति और उद्देश्य सही है तो आपको जीतने से कोई रोक नहीं सकता।
 
 
जिंदकी भाग्य से नहीं चलती। भाग्य भी तभी चलता है जब कर्म का चक्का घुमता है। इंसान की जिंदगी जन्म और मौत के बीच की कड़ी-भर है। यह जिंदगी बहुत छोटी है। कब दिन गुजर जाएंगे, आपको पता भी नहीं चलेगा इसलिए प्रत्येक दिन का भरपूर उपयोग करना चा‍हिए। कुछ ऐसे भी कर्म करना चाहिए, जो आपके अगले जीवन की तैयारी के हों। अत: इस जीवन में जितना हो सके, उतने अच्छे कर्म कीजिए। एक बार यह जीवन बीत गया, तो फिर आपकी प्रतिभा, पहचान, धन और रुतबा किसी काम नहीं आएंगे। 
 
4.समय को व्यर्थ ना गवाएं : बहुत से लोग हैं जो कभी भी उठ जाते है और कभी भी सो जाते हैं। कभी भी खा लेते हैं और कभी भी कहीं भी घूमने निकल जाते हैं। उनके जीवन में समय का कोई प्रबंधन नहीं होता है। वे बेतरतीब भरा जीवन जीते हैं। जिसके जीवन में समय का प्रबंधन नहीं है वह बस अच्छे भविष्‍य के सपने ही देखा करता है। अत: जीवन में उठने का, पूजा करने का, खाने का, कार्य करने का सोने का और लक्ष्य को भेदने का नियम जरूर बनाएं। समय को व्यर्थ ना बहाएं क्योंकि जीवन है बहुत छोटा सा।
 
 
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धोलोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः ।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः ॥
भावार्थ : श्री भगवान बोले- मैं लोकों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ महाकाल हूं। इस समय इन लोकों को नष्ट करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूं। इसलिए जो प्रतिपक्षियों की सेना में स्थित योद्धा लोग हैं, वे सब तेरे बिना भी नहीं रहेंगे अर्थात तेरे युद्ध न करने पर भी इन सबका नाश हो जाएगा॥32॥
 
किसी भी कार्य को ठीक समय पर करने से ही उस कार्य का महत्व है। गीता में काल और परिस्थिति का विस्तार से वर्णन मिलता है। यदि अर्जुन उस समय युद्ध नहीं लड़ता तो भी ये सभी तो मारे जाने वाले थे आज नहीं कल कभी भी। लेकिन यदि अर्जुन नहीं मारता तो अपयश को प्राप्त होता और संसार में उसकी कीर्ती भी नहीं होती। जब सामने युद्ध खड़ा हो तो युद्ध करना चाहिए। ऐसा ही जब जीवन में जो भी अवसर सामने खड़ा हो तो उसको भूना लेना चाहिए। वर्ना तो उस अवसार का नाश ही होने वाला है या उस अवसार को कोई और प्राप्त करने वाला होगा।
 
 
5.लड़ाई से डरने वाले मिट जाते हैं : जिंदगी एक उत्सव है, संघर्ष नहीं। यदि आप अपने जिंदगी को संघर्ष समझते हैं तो निश्चित ही वह संघर्षमय होने वाली है। हालांकि जीवन के कुछ मोर्चों पर व्यक्ति को लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। जो व्यक्ति लड़ना नहीं जानता, युद्ध उसी पर थोपा जाएगा या उसको सबसे पहले मारा जाएगा। उसी के जीवन में संघर्ष भी होगा।
 
महाभारत में पांडवों को यह बात श्रीकृष्ण ने अच्‍छे से सिखाई थी। पांडव अपने बंधु-बांधवों से लड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन श्रीकृष्ण ने समझाया कि जब किसी मसले का हल शांतिपूर्ण, किसी भी तरीके से नहीं होता तो फिर युद्ध ही एकमात्र विकल्प बच जाता है। कायर लोग युद्ध से पीछे हटते हैं। इसीलिए अपनी चीज को हासिल करने के लिए कई बार युद्ध करना पड़ता है। अपने अधिकारों के लिए कई बार लड़ना पड़ता है। जो व्यक्ति हमेशा लड़ाई के लिए तैयार रहता है, लड़ाई उस पर कभी भी थोपी नहीं जाती है।

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