व्याथ गीता में मार्कण्डेय ऋषि युधिष्ठिर को ज्ञान देते हैं। यह गीता में महाभारत का हिस्सा है। दरअसल, इस गीता में एक शिकारी या कहें कि बहेलिया एक ब्राह्मण संन्यासी को शिक्षा देता है। यह कथा हमें महाभारत के वन पर्व में पढ़ने को मिलती है। यह कथा मार्कण्डेय ऋषि युधिष्ठिर को सुनाते हैं।
कथा के अनुसार सुदर्शन नाम का ब्राह्मण तपस्या हेतु वन में चला जाता है। वन में एक चिड़ा उसके उपर बीट कर देता है। बीट के उसके उपर गिरने से ब्राह्मण उस चिड़े की ओर देखता है और चिड़ा भस्म होकर नीचे गिर जाता है। यह देखकर वह ब्राह्मण समझता है कि तपस्या सफल हो रही है। वह सोचता है कि उसे सिद्धि मिल गई। फिर वह एक बस्ती में गया और वहां एक घर के सामने भिक्षा मांगने के लिए आवाज लगाई- 'भिक्षां देहि।' अंदर से आवाज आई की ठहरिये महाराज मैं अभी आती हूं। कुछ देर बाद उसने फिर आवाज लगाई- 'भिक्षां देहि।' परंतु इस बार भी वहीं जवाब मिला।
उसके सब्र का बांध टूटने लगा था और तपस्या का घमंड भी था। वह कहने लगा कि तुम्हें पता नहीं मैं कौन हूं। मेरी अवहेलना कर रही है तू? यह सुनकर अंदर से आवाज आई कि मुझे पता है लेकिन आप मुझे चिड़ा मत समझना जिसको आप देखेंगे और वह जल जाएगा। चुपचाप वहीं खड़े रहो अभी आई।... यह उत्तर सुनकर वह तपस्वी ब्राह्मण आश्चर्य करने लगा कि इसको घर बैठे कैसे पता चल गई ये बात। मैं तो अभी अभी जंगल से आया हूं। वह ब्रह्मण चुपचाप खड़ा रहा।
थोड़ी देर बाद वह महिला भिक्षा लेकर आई। तब ब्रह्मण ने डरते हुए पूछा देवी! हमें बताओ की तुम्हें कैसे पता चला कि मैंने चिड़े को भस्म कर दिया। उसने कहा, मेरे पास इतना समय नहीं है कि आपको बताऊं। आप अपनी भिक्षा लीजिए और यदि आपको इस विषय में जानना है तो अमुक शहर में चले जाइए, वहां पर एक वैश्य रहते हैं, वह आपको बता देंगे।
वह ब्राह्मण उस वैश्य के पास गया। वह वैश्य अपने व्यवसाय में लगा था। उस वैश्य ने कहा पंडितजी बैठ जाइये। थोड़ी देर बाद उस ब्राह्मण ने कहा कि मैं आपसे से कुछ पूछना चाहता हूं। यह सुनकर वैश्य ने कहा कि जी हां मैं जानता हूं कि आपको उस स्त्री ने मेरे पास भेजा है क्योंकि आपने देखकर ही चिड़े को भस्म कर दिया था। परंतु अभी मेरे पास समय नहीं है तो आप एक काम करिये कि यदि बहुत जरूरी हो जानना तो आप अमुक नगर में एक व्याध रहता है वह आपको सारी बात समझा देगा और यदि मेरे से ही समझना हो तो दुकान मंगल होने तक इंतजार करना होगा।
परंतु उस ब्राह्मण से रहा नहीं गया। वह वहां से उठकर चला गया और व्याध से मिला। व्याध को मांस का व्यापार करता था। मांस काट काट कर बेचता था। उसने ब्राह्मण को देखा और कहा आइये पंडितजी बैठिए। आपको सेठजी ने भेजा है। कोई बात नहीं, विराजिए। अभी मैं अपना काम कर रहा हूं, बाद में आपसे बात करूंगा।
ब्राह्मण यह सुनकर बड़ा हैरान हुआ कि इसे कैसे पता चल गया। ब्राह्मण ने सोचा अब कहीं नहीं जाऊंगा। इसी से सारी बात समझूंगा। सायंकाल जब हो गयी तो व्याध ने अपनी दुकान मंगल की और पण्डित जी को लेकर अपने घर की ओर चल दिया।
ब्राह्मण रास्ते में व्याध से पूछने लगा कि भाई आप किस देव की उपासना करते हैं जो आपको इतना बोध हो चला है। व्याध ने कहा कि चलो वह देव मैं आपको दिखा रहा हूं। ब्राह्मण बड़ी उत्सुकता के साथ उसके घर पहुंचे तो देखा व्याध के वृद्ध माता और पिता एक पलंग पर बैठे हुए थे।
व्याध ने जाते ही उनको दण्डवत् प्रणाम किया। उनके चरण धोए, उनकी सेवा की और भोजन कराया। ब्राह्मण कुछ कहने लगा तो व्याध बोला- आप बैठिए, पहले मैं अपने देवताओं की पूजा कर लूं, बाद में आपसे बात करूंगा। पहले मातृदेवो भव फिर पितृदेवो भव और आचार्यदेवो भव तब अतिथिदेवो भव, आपका तो चौथा नम्बर है भगवन्!
यह सुनकर ब्राह्मण विचार करने लगा कि अरे यह तो शास्त्रों का भी ज्ञाता है। जब ब्राह्मण ने पूछा कि आप इतने बड़े ज्ञानी ध्यानी होकर के इतना निकृष्ट कर्म क्यों करते हैं तो उसने कहा- भगवन्! कर्म कोई निकृष्ट नहीं होता। हम व्याध के यहां पैदा हुए हैं, मेरे बाप भी मांस बेचते थे, उनके बाप भी और यह धंधा हमें अपने पूर्वजों से मिला है, इसलिए हमें इससे कोई घृणा नहीं है क्योंकि जब तक इस दुनिया में कोई मांस खाने वाला होगा तो उसके लिए बेचने वाला भी होगा। इस तरह व्याघ गीता का ज्ञान प्रारंभ हुआ।
व्याध का शाब्दिक अर्थ शिकारी होता है। इस कथा में घमण्डी संन्यासी को व्याध ने धर्म की सही शिक्षा दी है। व्याध की मुख्य शिक्षा यह है कि कोई भी काम छोटा नहीं होता है। कोई भी काम नीच या अशुद्ध नहीं है। वास्तव में काम कैसे किया जाता है उसी से उसका महत्व कम या अधिक होता है।