महाभारत और पुराणों में यवनों का उल्लेख मिलता है। ये यवन कौन थे इस संबंध में पुराण, महाभारत में कुछ और ही उल्लेख मिलता है जबकि भारतीय इतिहास के जानकार कुछ और ही कहते हैं। यहां प्रस्तुत है पुराण और महाभारत के अनुसार यवन के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
1.ययाति के पुत्र तुर्वसी के वंशज थे यवन : हजारों वर्ष पहले हुए राजा ययाति के पांच पुत्र थे- 1.पुरु, 2.यदु, 3.तुर्वस, 4.अनु और 5.द्रुहु। इन्हें वेदों में पंचनंद कहा गया है। तुर्वसु के वंश में भोज (यवन) हुए। ययाति के पुत्र तुर्वसु का वह्नि, वह्नि का भर्ग, भर्ग का भानुमान, भानुमान का त्रिभानु, त्रिभानु का उदारबुद्धि करंधम और करंधम का पुत्र हुआ मरूत। मरूत संतानहीन था इसलिए उसने पुरु वंशी दुष्यंत को अपना पुत्र बनाकर रखा था, परंतु दुष्यंत राज्य की कामना से अपने ही वंश में लौट गए।
गर्ग ऋषि दो हुए हैं। यहां दूसरे ऋषि की बात है। एक गर्ग ऋषि महाभारत काल में भी हुए थे, जो यदुओं के आचार्य थे जिन्होंने 'गर्ग संहिता' लिखी। कहते हैं कि कोई एक ऋषि यवनी थे। बाद में ये मथुरा से जाकर उड़िसा में बस गए थे। गर्ग ऋषि को पुराणों में कहीं कहीं यवनाचार्य लिखा गया है।
3.अन्य तथ्य : हिमालय निकलकर बहने वाली नदियों के तटों पर कुरु, पांचाल, पुण्ड्र, कलिंग, मगध, दक्षिणात्य, अपरान्तदेशवासी, सौराष्ट्रगण, तहा शूर, आभीर एवं अर्बुदगण, कारूष, मालव, पारियात्र, सौवीर, सन्धव, हूण, शाल्व, कोशल, मद्र, आराम, अम्बष्ठ, शाक्य और पारसी गण रहते हैं। इसके पूर्वी भाग में किरात और पश्चिमी भाग में यवन बसे हुए हैं। अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कार्कोटक और पिंगला- उक्त पांच नागों के कुल के लोगों का भारत में वर्चस्व था। यह सभी कश्यप वंशी थे और इन्ही से नागवंश चला। यह सभी आर्य थे।
महाभारत अनुसार में प्राग्ज्योतिष (असम), किंपुरुष (नेपाल), त्रिविष्टप (तिब्बत), हरिवर्ष (चीन), कश्मीर, अभिसार (राजौरी), दार्द, हूण हुंजा, अम्बिस्ट आम्ब, पख्तू, कैकेय, गंधार, कम्बोज, वाल्हीक बलख, शिवि शिवस्थान-सीस्टान-सारा बलूच क्षेत्र, सिंध, सौवीर सौराष्ट्र समेत सिंध का निचला क्षेत्र दंडक महाराष्ट्र सुरभिपट्टन मैसूर, चोल, आंध्र, कलिंग तथा सिंहल सहित लगभग 200 जनपद महाभारत में वर्णित हैं, जो कि पूर्णतया आर्य थे या आर्य संस्कृति व भाषा से प्रभावित थे। इनमें से आभीर अहीर, तंवर, कंबोज, यवन, शिना, काक, पणि, चुलूक चालुक्य, सरोस्ट सरोटे, कक्कड़, खोखर, चिन्धा चिन्धड़, समेरा, कोकन, जांगल, शक, पुण्ड्र, ओड्र, मालव, क्षुद्रक, योधेय जोहिया, शूर, तक्षक व लोहड़ आदि आर्य खापें विशेष उल्लेखनीय हैं।
मलेच्छ और यवन लगातार आर्यों पर आक्रमण करते रहते थे। हालांकि ये दोनों ही आर्यों के कुल से ही थे। आर्यों में भरत, दास, दस्यु और अन्य जाति के लोग थे। वेदों में उल्लेखित पंचनंद अर्थात पांच कुल के लोग ही यदु, कुरु, पुरु, द्रुहु और अनु थे। इन्हीं में से द्रहु और अनु के कुल के लोग ही आगे चलकर मलेच्छ और यवन कहलाए।