2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में वंचित बहुजन अघाड़ी का प्रदर्शन भले ही शानदार न रहा हो लेकिन प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी ने चुनाव में 4.57% वोटों के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, 236 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए। पार्टी ने कांग्रेस और एनसीपी के वोट बैंक में सेंध लगाई, जिससे महाविकास अघाड़ी के लिए एक गंभीर चुनौती पैदा हो गई।
हालांकि VBA ने विधानसभा चुनावों में सीटें नहीं जीतीं, लेकिन उनके अलग लड़ने का असर कांग्रेस-एनसीपी पर पड़ा। इस प्रदर्शन से यह साफ हुआ कि प्रकाश आंबेडकर और उनकी पार्टी महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया समीकरण बनाने में सक्षम हैं। आगामी चुनावों में VBA के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए, MVA को इससे गंभीर खतरा हो सकता है।
लोकसभा चुनाव 2019: लोकसभा चुनावों में प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी ने 38 सीटों पर चुनाव लड़ा। हालांकि, पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिली, लेकिन इसके बावजूद उनके अलग लड़ने का असर MVA के प्रदर्शन पर पड़ा। कम से कम 7 ऐसी सीटें थीं जहां VBA ने कांग्रेस-एनसीपी का खेल बिगाड़ दिया। इन सीटों पर VBA के उम्मीदवारों ने कांग्रेस-एनसीपी के मतों में सेंधमारी की, जिससे कई जगहों पर दोनों पार्टियों के उम्मीदवार हार गए।
उल्लेखनीय है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में वंचित को जहां 41 लाख 32 हजार 446 वोट मिले थे। वहीं 2024 चुनाव में ये आंकड़ा घटकर 14 लाख 15 हजार 76 वोट पर पहुंच गया।
इससे साफ हुआ कि लोकसभा चुनाव 2024 में उनका प्रभाव उतना बड़ा नहीं था, लेकिन उनकी पार्टी ने MVA के प्रदर्शन को नुकसान जरूर पहुंचाया। 38 सीटों पर लड़ी वंचित बहुजन अघाड़ी को 2019 की तुलना में क़रीब 27 लाख वोट कम पड़े, लेकिन नौ सीटों पर वंचित को जीत के अंतर से ज़्यादा वोट मिले, ऐसे में वंचित पार्टी ने सीटों के नतीजों को कहीं ना कहीं प्रभावित किया।
अकोला सीट पर तीसरे स्थान पर रहे प्रकाश अंबेडकर को 2,76,747 वोट मिले और कांग्रेस के अभय पाटिल महज 40,626 वोटों से हार गए। अगर अंबेडकर महाविकास अघाड़ी से खड़े होते या कांग्रेस को समर्थन करते तो उनकी जीत होती। इसी तरह बुलढाणा में भी ठाकरे गुट के नरेंद्र खेडेकर 29 हजार 479 वोटों से हार हारे, यहां वंचित के वसंतराव मगर को 98 हजार 441 वोट मिले।
उत्तर पश्चिम मुंबई में ठाकरे समूह के उम्मीदवार अमोल कीर्तिकर महज 48 वोटों से हार गए, जबकि इस क्षेत्र में वंचित के उम्मीदवार परमेश्वर रंशुर को 10 हजार 52 वोट मिले। आंकड़ों में साफ दिख रहा है कि महाविकास आघाडी के 4 उम्मीदवार वंचित के कारण हारे। वंचित बहुजन अघाड़ी अगर महाविकास अघाड़ी में शामिल हो जाती, तो महाराष्ट्र में महायुति सरकार और भी परेशानी में पड़ जाती।
MVA को कैसे खतरा हो सकता है VBA से: महाविकास अघाड़ी में कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) शामिल हैं। ये तीनों पार्टियां मिलकर महाराष्ट्र की राजनीति में प्रमुख गठबंधन हैं, लेकिन VBA की बढ़ती लोकप्रियता और इसके समर्थक वर्गों की बढ़ती भागीदारी से MVA को कई मोर्चों पर चुनौती मिल सकती है। वंचित बहुजन अघाड़ी की वजह से प्रदेश में दलित और मुसलमानों का वोट बंटा, कई जगह महा विकास अघाड़ी का गेम बिगड़ा। अकोला, बुलढाणा, हातकणंगले और उत्तर पश्चिम मुंबई में वंचित बहुजन के कारण महाविकास अघाड़ी को हार का सामना करना पड़ा।
ये तो साफ है कि प्रकाश आंबेडकर का नेतृत्व दलित और वंचित समुदायों के बीच प्रभावी है। वंचित बहुजन अघाड़ी का नाम ही इस बात का संकेत है कि यह पार्टी हाशिए पर खड़े समाज के लिए लड़ाई लड़ती है। दलित मतदाता MVA के लिए लंबे समय से एक महत्वपूर्ण वोट बैंक रहा है, लेकिन VBA के उदय से यह वोट बैंक विभाजित हो सकता है, जिससे कांग्रेस और एनसीपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
VBA केवल दलित वोटों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) और वंचित समुदायों के लिए भी एक मजबूत विकल्प बनकर उभरी है। OBC वोट महाराष्ट्र में चुनावों का महत्वपूर्ण हिस्सा है, और अगर यह वोट बैंक VBA की ओर झुकता है, तो MVA को गंभीर नुकसान हो सकता है।
VBA के चुनावी मैदान में उतरने से मतों का विभाजन हो सकता है, खासकर दलित और वंचित समुदायों में। इससे सीधी टक्कर वाले चुनाव क्षेत्रों में MVA के उम्मीदवारों के लिए कठिनाइयाँ पैदा हो सकती हैं। यदि प्रकाश आंबेडकर की पार्टी 2024 के विस चुनावों में प्रमुख स्थानों पर मजबूत उम्मीदवार खड़े करती है, तो कांग्रेस और एनसीपी के कई उम्मीदवार हार का सामना कर सकते हैं।
VBA और MVA के बीच गठबंधन की संभावना: हालांकि 2019 के लोकसभा चुनावों के समय VBA और MVA के बीच गठबंधन की बातचीत अंतिम चरण तक पहुंची थी, लेकिन किसी भी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका था, लेकिन 2024 में वंचित अघाड़ी ने सांगली, कोल्हापुर, बारामती और नागपुर जैसे चार निर्वाचन क्षेत्रों में महाविकास अघाड़ी का समर्थन किया था। इनमें से कोल्हापुर, बारामती और सांगली में महाविकास अघाड़ी को जीत मिली है।
प्रकाश आंबेडकर की पार्टी बहुजन वोट को अपने पक्ष में करने की क्षमता रखती है, और अगर VBA और MVA के बीच गठबंधन नहीं होता है, तो इसका सीधा असर MVA के वोट बैंक पर पड़ेगा। यदि VBA फिर से स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने का निर्णय लेती है, तो यह MVA के लिए एक खतरा साबित हो सकता है। विशेष रूप से उन सीटों पर जहां VBA का जनाधार मजबूत है, वहां MVA को हार का सामना करना पड़ सकता है।
वंचित बहुजन अघाड़ी ने 2019 के चुनावों में अपने प्रभाव से यह साबित कर दिया था कि वह महाराष्ट्र की राजनीति में एक मजबूत खिलाड़ी है। हालांकि, लोकसभा चुनाव में पार्टी को बहुत बड़ी सफलता नहीं मिली थी, लेकिन उसके अलग चुनाव लड़ने का असर MVA पर पड़ा। इसलिए, MVA के नेताओं को VBA के बढ़ते प्रभाव को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति तैयार करनी होगी। गठबंधन की संभावना को खुला रखना और दलित एवं OBC मतदाताओं को अपने पक्ष में रखने के लिए उचित कदम उठाने होंगे।