था हृदय दग्ध, धू-धू करके,
उसमें, ज्वालाएं उठती थीं।
भारत मां के, पवित्र तन पर,
था चमन हमारा धन्य हुआ।
दुबला-पतला, छोटा मोहन,
पढ़-लिखकर, वीर जवान बना।
था सत्य, अहिंसा, देशप्रेम,
उसकी रग-रग में, भिदा-सना।
उसके इक-इक आवाहन पर,
सौ-सौ जन दौड़े आते थे।
सत्य-अहिंसा दो शब्दों के,
गांधी का नाम, उछलता था।
वह मौन, 'सत्य का आग्रह' था,
जिसमें हिंसा, और रक्त नहीं।
मानवता के, अधिकारों की,
थी बात, शांति से कही गई।
गोलों, तोपों, बंदूकों को,
चुप सीने पर, सहते जाना।
सच की ताकत के, आगे थी,
गोरों की सत्ता, कांप रही।
हट गया ब्रिटिश ध्वज अब फिर से,