हिन्दू धर्म के अनुसार पृथ्वी पर साक्षात देवता माने जाने वाले सूर्यदेव का अत्यंत महत्व है, इसलिए इनके विभिन्न राशियों में भ्रमण को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। वैसे तो यह एक खगोलीय घटना है, परंतु सूर्यदेव के इस राशि परिवर्तन को आध्यात्मिक दृष्टि से भी खास माना गया है। मकर संक्रांति भी सूर्य के राशि परिवर्तन का ही पर्व है, जब सूर्य 6 माह दक्षिणायन में रहने के बाद, राशि परिवर्तन कर उत्तरायन होता है। हम इसे पर्व के रूप में मनाते हैं।
मकर संक्रांति पर्व का उल्लेख हमारे पुराणों में भी विशेष रूप से मिलता है। मत्स्य पुराण में जहां संक्रांति की व्रत विधि के बारे में बताया गया है, वहीं स्कंद पुराण में संक्रांति में दिए गए दान का महत्व समझाया गया है।
खगोल विज्ञान के अनुसार 14 या 15 जनवरी को प्रतिवर्ष सूर्य धनु राशि का भ्रमण पूर्ण करता है और मकर राशि में प्रवेश करता है। वैसे संक्रांति का अर्थ होता है संक्रमण काल या बदलाव का समय। अर्थात, संक्रांति उस काल या तिथि को कहते हैं जिस दिन सूर्य एक राशि में भ्रमण पूर्ण कर दूसरी राशि में प्रवेश करता है।
सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है, उसे उस राशि की संक्रांति माना जाता है। उदाहरण के लिए यदि सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तो मेष संक्रांति कहलाती है, धनु में प्रवेश करता है तो धनु संक्रांति कहलाती है और 14 या 15 जनवरी को जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो इसे मकर संक्रांति के रूप में जाना जाता है। इसे पुण्यकाल माना जाता है और आध्यात्मिक उपलब्धियों एवं ईश्वर के भजन,पूजन, नाम स्मरण के लिए इस संक्रांति काल को विशेष फलदायी माना गया है।