'एक हम अकेले हैं, जो देश के लिए खाते हैं' टीवी पर उनके ये शब्द आम से लेकर खास तक, उनकी पहचान बन गए हैं। वे 40 साल से पत्रकारिता कर रहे हैं, सही शब्द का सही जगह पर इस्तेमाल करने में वे माहिर हैं। सवाल करने वालों का परिचय टीवी पर जिस अंदाज में कराते हैं, वो विविध भारती के उद्घोषकों की याद दिलाता है। भारत में वे टेलीविजन के जाने-माने चेहरे हैं, एक कुशल प्रसारक हैं, वे खुद को पत्रकार नहीं मानते, कम्युनिकेट या ब्रॉडकास्टर मानते हैं।
साल 2000 के पैदा हुए वे तमाम दर्शक, जिन्होंने 'दूरदर्शन' पर उनके जलवे और थोड़े वक्त के लिए ही सही, पर 'एनडीटीवी इंडिया' पर 'विनोद दुआ लाइव' देखा है, वे विनोद दुआ के पुराने लेकिन रिवाइव अंदाज से परिचित होंगे। उनके कार्यक्रमों में एक चुटकी अमूल सुरभि, एक रत्ती आकाशवाणी के फरमाइशी गीत और मौजूदा दौर के सोशल मीडिया से लेकर उन तमाम मंचों का पंचरंगा अचार है, जहां दर्शकों की मौजूदगी हो सकती है। टीवी पर दर्शकों के चेहरे, फेसबुक स्टेटस और ट्विटर अकाउंट दिखाकर न्यूज प्रोग्राम को रियलिटी शो महसूस कराने में विनोद दुआ माहिर हैं। यह विनोद दुआ का आकर्षण ही है कि भाषा और बॉडी लैंग्वेज को लेकर टीवी स्क्रीन एक ही साथ गंभीर और संजीदा होने लग जाता है। प्राइम टाइम में दिनभर की चिल्ल-पों और शोर के बाद डंके, नगाड़े और गोली की रफ्तार वाली पार्श्व ध्वनि नहीं, बल्कि इतमीनान परिवेश के साथ दर्शकों को खबर सुनने और समझने का मौका देना ही विनोद दुआ का अंदाज है। विनोद दुआ दिल्ली की एक शरणार्थी कॉलोनी में बड़े हुए। छठी क्लास में 'फणीश्वरनाथ रेणु' का मैला आंचल पढ़ लिया और तभी से भाषा, साहित्य, संगीत और थिएटर से जुड़ाव हो गया। 27 नवंबर 1974 को पहली बार 'दूरदर्शन' (तब दिल्ली टेलीविजन) में 'युवा मंच' पर दिखाई दिए।
इसके बाद तो सिलसिला शुरू हो गया। 1984 में टर्निंग प्वाइंट आया, जब टीवी पर चुनाव विशेषज्ञ के तौर पर एंकरिंग करते दिखाई दिए। उनके खास कार्यक्रमों में 'तस्वीर-ए-हिंद' (1997-98) डीडी 3, 'चुनाव चुनौती' (मार्च, 1998) सोनी टीवी, 'चुनाव विश्लेषण' (1999) जी न्यूज, 'प्रतिदिन' और 'परख' (2000-03) सहारा टीवी, 'कौन बनेगा मुख्यमंत्री' (2003) स्टार न्यूज, 'जायका इंडिया का' और 'विनोद दुआ लाइव' (एनडीटीवी इंडिया) और फिलवक्त आईबीएन 7 पर 'प्रश्नकाल' प्रमुख हैं। विनोद दुआ भारत के पहले टीवी पत्रकार हैं, जिन्हें पत्रकारिता में योगदान के लिए साल 1996 में बीडी गोयनका अवॉर्ड दिया गया। साल 2008 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। जिस जिम्मेदारी के साथ वो नेताओं को उनका रास्ता बताते रहे हैं, सरकार को चेताते आए हैं... वो लगातार जारी है। (मीडिया विमर्श में अंकुर विजयवर्गीय)