विश्वनाथ सचदेव : सशक्त हस्ताक्षर

रविवार, 5 अक्टूबर 2014 (10:47 IST)
हिन्दी पत्रकारिता और बेहतर संपादकों की जब बात चलती है तो अहम हस्ताक्षर विश्वनाथ सचदेव को हर कोई बरबस याद करता है। पाकिस्तान के साहीवाल में 2 फरवरी 1942 को जन्मे सचदेव ने एमए अंग्रेजी साहित्य में राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से किया और पत्रकारिता की डिग्री नागपुर विश्वविद्यालय से ली।

पत्रकारिता की शुरुआत 1962 में बीकानेर (राजस्‍थान) से छपने वाली साहित्यिक पत्रिका 'वातायन' के संपादन से की। हालांकि, विश्वनाथजी ने पत्रकारिता की शुरुआत शौक के तौर पर की, लेकिन अंतत: यही आजीविका भी बन गई।

वर्ष 1967 में टाइम्स ऑफ इंडिया समूह से जुड़े और वर्ष 1987 में नवभारत टाइम्स, मुंबई के संपादक बने एवं वर्ष 2003 में इस पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्हें हिन्दी की अहम पत्रिका 'धर्मयुग' का भी संपादन करने का मौका मिला।

इन दिनों आप भारती विद्या भवन की पत्रिका 'नवनीत' के संपादक हैं। विश्वनाथजी के प्रमुख प्रकाशनों में काव्यक संकलन- 'मैं गवाही देता हूं', 'मैं जो हूं'। लेख संकलन- 'तटस्‍थता ‍के विरुद्ध', 'सवालों के घेरे' और 'आधी सदी का फासला' प्रमुख हैं।

विश्वनाथजी ने साहित्यकार 'नेहरू, गांधी पुनर्मूल्यांकन', 'हिन्दी साहित्य का एक दशक', 'समता का दर्शन और विषमता' पुस्तकों का संपादन किया। इन्होंने जिन कृतियों का अनुवाद किया, उनमें 'पटेल और भारतीय मुसलमान' (डॉ. रफीक जकारिया की पुस्तक का अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद) शामिल है। अब तक इन्हें जो पुरस्कार-सम्मान मिले उनमें भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत काव्य संकलन 'मैं गवाही देता हूं' हैं।

इसके अलावा श्रेष्ठ पत्रकारिता के लिए सहयोग पुरस्कार। पत्रकारिता के क्षेत्र में की गई सेवाओं के लिए मारवाड़ी सम्मेलन, मुंबई द्वारा दुर्गाबाई सराफ पुरस्कार। वर्ष 1997 का सांप्रदायिक सौहार्द के लिए, लेखन के लिए मौलाना अब्दुल कलाम आजाद सम्मान। आचार्य तुलसी सम्मान 2000 में। इसी साल परिवार पुरस्कार।

श्रेष्ठ पत्रकारिता के लिए जायंट इंटरनेशनल सम्मान 2002 में। उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा सौहार्द सम्मान। वरिष्ठ साहित्यकार सम्मान, राजस्थान साहित्य अकादमी से। रेडियो, टीवी पर 30 वर्ष से लगातार अनेक कार्यक्रम। दूरदर्शन पर 'सच की परछाई' एवं स्टार टीवी पर 'अर्धशताब्दी' काफी चर्चित रहे।
टाइम्स ऑफ इंडिया का वह जमाना जब इलेस्ट्रेट वीकली, धर्मयुग, माधुरी सहित अनेक पत्र-पत्रिकाएं थीं और जिनके जाने-माने संपादक जब रिटायर हो रहे थे, तब विश्वनाथ सचदेव का जमाना शुरू हो रहा था। हिन्दी और पत्रकारिता के वे विश्व हैं और उसे नाथ कहते हैं, जो सबसे ऊपर उठ जाता है। उनमें राग-द्वेष नहीं है और उन्होंने अपने आपको सार्थक किया इसीलिए उनको 'विश्वनाथ' सही नाम मिला। (मीडिया विमर्श में कमल शर्मा)

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