तुम परेशाँ हो इसके रोने से,
दिल तो बच्चे के जैसा है अपना,
ये बहल जायेगा खिलौने से
हमारे मुल्क में इंसान अब घर में नहीं रहते,
कहीं हिन्दू कहीं मुस्लिम कहीं ईसाई लिखा है - मुनव्वर रान
जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा,
मैं अपनी माँ का आख़िरी जेवर बना रहा - मुनव्वर राना
अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की 'राना'
माँ की ममता मुझे बाँहों में छुपा लेती है - राना
तू कभी देख तो रोते हुए आकर मुझको
, रोकना पड़ता है पलकों से समंदर मुझको ...
सर्द हवा में उसके बदन पे आँचल उड़ते देखा है,
पानी वाला बादल जैसे सैर करे कोहसारों पर - अज़ीज़ अंसार
ग़मे-दुनिया भी ग़मे-यार में शामिल कर लो,
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें - फ़राज़
अहमद फ...
इस ख़ौफ़ से वह साथ निभाने के हक़ में है,
खोकर मुझे ये लड़की कहीं दुख से मर न जाए - परवीन शाक़िर
तुम्हारी याद सरे शब जब भी आती है,
मेरे सुकूँ मेरी तन्हाइयों को खाती है।
तुम्हारी याद कभी आसरा थी ज...
मैंने चाहा जो तुम्हें उसका गुनहगार तो हूँ,
मगर इतना भी समझ लो कि वफ़ादार तो हूँ - दाग़
वह समझते ही नहीं हैं मेरी मजबूरी को,
इसलिए बच्चों पे गुस्सा भी नहीं आता है - मुनव्वर राना
रहूँ सितम से मरहूम, यह सितम क्या है,
वो देखकर मुझे कहते हैं, इसमें दम क्या है - दाग़
यह तो नहीं कि तुमसा जहाँ में हसीं नहीं,
इस दिल का क्या करूँ, यह बहलता कहीं नहीं - दाग़
बहुत अहम है मेरा काम नामाबर1 कर दे
मैं आज देर से घर जाऊँगा ख़बर कर दे
ज़माना ख़ुद के सिवा सबको भूल जाता है,
मैं चाहता हूँ मुझे ख़ुद से बेख़बर कर दे - अज़ीज़ अंसारी
बहुत अहम है मेरा काम नामाबर कर दे,
मैं आज देर से घर जाऊँगा ख़बर कर दे - अज़ीज़ अंसारी
नामाबर - ख़