अमीरे शहर को तलवार करने वाला हूँ,
मैं जी हुज़ूरी से इंकार करने वाला हूँ - मुनव्वर राना
जब भी देखा मेरे किरदार पे धब्बा कोई,
देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई - मुनव्वर राना
मैंने रोते हुए पोछे थे किसी दिन आँसू,
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुप्पट्टा अपना।
तू कभी देख तो रोते हुए आकर मुझको,
रोकना पड़ता है पलकों से समंदर मुझको - मुनव्वर राना
दिल किसी शै को कब तरसता है,
लाख मुझ में बुराइयाँ लेकिन,
फिर भी तेरा करम बरसता है - अज़ीज़ अंसारी
गहरी ठोकर भी खानी पड़ती है,
मुफ्त में तजुरूबा नहीं होता,
ज़िंदगी भी लुटानी पड़ती है - अज़ीज़ अंसा
बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर,
माँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है।
खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव से,
बासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही।
कोई दुख हो तो कभी कहना नहीं पड़ता उससे,
वो जरूरत को तलबगार से पहचानती है - मुनव्वर राना
फिर उसको मर के भी ख़ुद से जुदा होने नहीं देती,
यह मिट्टी जब किसी को अपना बेटा मान लेती है - मुनव्व
लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है,
मैं ऊर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ और हिन्दी मुस्कुराती है -
मेरे बाद वफ़ा का धोखा और किसी से मत करना,
गाली देगी दुनिया तुझको सर मेरा झुक जाएगा - क़तील शिफाई
जो हुक्म देता है वो इल्तिजा भी करता है,
ये आसमान कहीं पर झुका भी करता है ...
हमको मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं,
हमसे ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं - जिगर मुरादाबादी
अगर न ज़ोहरा जबीनों के दरमियाँ गुज़रे,
तो फिर ये कैसे कटे ज़िन्दगी कहाँ गुज़रे---------- जिगर मुरादाबाद
खंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम अमीर,
सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है -----------अमीर मीनाई
तुम्हें मैं भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन,
तुम्हीं को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ - डॉ. कुम