ये जो है हुक्म, मेरे पास न आए कोई, इसलिए रूठ रहे हैं कि मनाए कोई - दाग़
बड़ी मुश्किल से समझ में आते हैं लखनऊ वाले, दिलों में फासले लब पर मगर आदाब रहता है - राना
मुझको हँसते हुए इस दुनिया से रुखसत कीजे, कोई रोता है भला जब कोई घर जाता है - मुनव्वर राना
मैं उसकी चाहतों को नाम कोई दे नहीं पाया, कि जाने से बिगड़ता है न जाने से बुलाता है।
किसी की याद को दिल में बसाना ठीक है लेकिन, ये ऐसा ज़ख़्म है जो उम्र भर अच्छा नहीं होता।
मैं ज़िंदगी तुझे कब तक बचा के रक्खूँगा, ये मौत रोज़ निवाले बदलती रहती है - मुनव्वर राना
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया।
बचा लिया मुझे तूफ़ाँ की मौज ने वरना, किनारे वाले सफ़ीना मेरा डुबो देते।
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन, दिल के ख़ुश रखने को ग़ालिब ये ख़्याल अच्छा है।
इश्क ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के।
ग़ालिब बुरा न मान जो ज़ाहिद बुरा कहे, ऐसा भी कोई है के सब अच्छा कहें जिसे।
जिसने दानिस्ता किया हो नज़रअंदाज़ 'वसीम' उसको कुछ याद दिलायें, तो दिलायें कैसे - वसीम बरेलवी
मुझे फूँकने से पहले, मेरा दिल निकाल लेना, ये किसी की है अमानत, मेरे साथ जल न जाए - अनवर मिर्जा़
जो देखने में बहुत ही क़रीब लगता है, उसी के बारे में सोचो, तो फ़ासिला निकले - वसीम बरेलवी
ना सुनो, गर बुरा कहे कोई ना कहो, गर बुरा करे कोई - ग़ालिब
जाने क्या एहसास-सा इस दिल के तारों में है, जिनको छूते ही मेरे ‍नग़मे रसीले हो गए - शाहिद कबीर
अशआर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं, कुछ शे'र फ़क़त उनको सुनाने के लिए हैं - जांनिसार अख़्तर
आग़ाजे़-आशिक़ी का मज़ा आप जानिये, अंजामे-आशिक़ी का मज़ा हमसे पूछिये - खुमार बाराबंकवी
मैं ज़िंदगी तो कहीं भी गुज़ार सकता हूँ, मगर बग़ैर तुम्हारे नहीं गुज़रती है - मुनव्वर राना
जितने लिखे थे गीत, वो अश्कों में ढल गए, सारा जहाँ बदल गया, तुम क्या बदल गए - ओंकार गुलशन