दाग़ दामन पे जो लग जाए

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011
आदमियत पे लगा दाग़ मिटेगा कैसे, दाग़ दामन पे जो लग जाए तो कोई धोले।

बेच डाली हर एक शै मैंने

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011
बेच डाली हर एक शै मैंने, अपना बेचा मगर ज़मीर नहीं - अज़ीज़ अंसारी

मैंने बनाया घर तो वह

शुक्रवार, 28 जनवरी 2011
मैंने बनाया घर तो वह, पानी में बह गया, मैंने लगाया बाग़ तो बारिश नहीं हुई - अज़ीज़ अंसारी

अब खुदा ही चाहे तो

मंगलवार, 25 जनवरी 2011
अब खुदा ही चाहे तो हमको बचा ले ऐ अज़ीज़, हर तरफ़ तूफान और काग़ज़ की हैं सब कश्तियाँ - अज़ीज़ अंसार

सिर्फ़ पूजा नहीं वतन तुझको

मंगलवार, 25 जनवरी 2011
सिर्फ़ पूजा नहीं वतन तुझको, तुझपे ये जान भी ‍फ़िदा की है - अज़ीज़ अंसारी

वो झूठ बोल रहा था

बुधवार, 19 जनवरी 2011
वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से, मैं ऐतबार न करता तो और क्या करता - वसीम बरेलवी

दूर से देखो तो बस्ती में

बुधवार, 19 जनवरी 2011
दूर से देखो तो बस्ती में दिवाली, खुशहाली है, आग लगी हो शोर मचा हो, ये भी तो हो सकता है - अज़ीज़ अंसा

ग़र ये खेल ही दोबारा होगा

सोमवार, 10 जनवरी 2011
ऐ ज़िन्दगी! अब के ना शामिल करना मेरा नाम, ग़र ये खेल ही दोबारा होगा।

जीत ही लूँगा किसी दिल को

सोमवार, 10 जनवरी 2011
काम मुश्किल है मगर जीत ही लूँगा किसी दिल को, मेरे खुदा का अगर ज़रा भी सहारा होगा।

जंग है तबाही का नाम

सोमवार, 10 जनवरी 2011
जंग है तबाही का नाम दूसरा यारों, तुम भी अपने घर जाओ, हम भी अपने घर जाएँ।

हम आज भी दुनिया में बस

शुक्रवार, 7 जनवरी 2011
दौलत पे न ललचाएँ, ताक़त से न घबराएँ, हम आज भी दुनिया में बस प्यार के मारे हैं - अज़ीज़ अंसारी

जग को जी लो

बुधवार, 5 जनवरी 2011
चलो उठो तुम खुद से निकलो बाहर, जग को जी लो, जग में आकर - नामालूम

कोई निशान लगाते चलो

मंगलवार, 4 जनवरी 2011
कोई निशान लगाते चलो दरख़्तों पर, के इस सफ़र में तुम्हें लौट कर भी आना है ----रऊफ़ ख़ैर
सिर्फ ज़र्रा हूँ अगर देखिए मेरी जानिब, सारी दुनिया में मगर रोशनी कर जाऊँगा - अज़ीज़ अंसारी

हज़ारों खुशियाँ कम है

मंगलवार, 28 दिसंबर 2010
हज़ारों खुशियाँ कम है, एक ग़म भुलाने के‍ लिए, एक ग़म काफी है ज़िंदगी भर रूलाने के लिए।

चैन से तुझको जीना है

मंगलवार, 28 दिसंबर 2010
बस्ती-बस्ती फैल चुकी है बेचैनी की आग, चैन से तुझको जीना है तो वीराने में भाग।

ज़ख़्म खा के भी हमको तो

गुरुवार, 23 दिसंबर 2010
ग़मों की भीड़ में आँसू किसे बहाना है, के ज़ख़्म खा के भी हमको तो मुस्कुराना है - अज़ीज़ अंसारी

सरों पे माँ की दुआओं

गुरुवार, 23 दिसंबर 2010
सरों पे माँ की दुआओं का शामियाना है, हमारे पास तो अनमोल ये ख़ज़ाना है। शामियाना = छत्र, मंडप

तो घर काट रहा है

शनिवार, 18 दिसंबर 2010
हरसू मिले बाज़ार में अल्फाज़ के नश्तर, घर आके जो बैठा हूँ तो घर काट रहा है। नश्तर = खंजर-चाकू
हमारे बाद नहीं आएगा तुम्हें चाहत का ऐसा मज़ा फ़राज़, तुम लोगों से कहते फिरोगे, मुझे चाहो उसकी तरह -