आदमियत पे लगा दाग़ मिटेगा कैसे,
दाग़ दामन पे जो लग जाए तो कोई धोले।
बेच डाली हर एक शै मैंने, अपना बेचा मगर ज़मीर नहीं - अज़ीज़ अंसारी
मैंने बनाया घर तो वह, पानी में बह गया,
मैंने लगाया बाग़ तो बारिश नहीं हुई - अज़ीज़ अंसारी
अब खुदा ही चाहे तो हमको बचा ले ऐ अज़ीज़,
हर तरफ़ तूफान और काग़ज़ की हैं सब कश्तियाँ - अज़ीज़ अंसार
सिर्फ़ पूजा नहीं वतन तुझको,
तुझपे ये जान भी फ़िदा की है - अज़ीज़ अंसारी
वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से,
मैं ऐतबार न करता तो और क्या करता - वसीम बरेलवी
दूर से देखो तो बस्ती में दिवाली, खुशहाली है,
आग लगी हो शोर मचा हो, ये भी तो हो सकता है - अज़ीज़ अंसा
ऐ ज़िन्दगी! अब के ना शामिल करना मेरा नाम,
ग़र ये खेल ही दोबारा होगा।
काम मुश्किल है मगर जीत ही लूँगा किसी दिल को,
मेरे खुदा का अगर ज़रा भी सहारा होगा।
जंग है तबाही का नाम दूसरा यारों,
तुम भी अपने घर जाओ, हम भी अपने घर जाएँ।
दौलत पे न ललचाएँ, ताक़त से न घबराएँ,
हम आज भी दुनिया में बस प्यार के मारे हैं - अज़ीज़ अंसारी
चलो उठो तुम खुद से निकलो बाहर,
जग को जी लो, जग में आकर - नामालूम
कोई निशान लगाते चलो दरख़्तों पर,
के इस सफ़र में तुम्हें लौट कर भी आना है ----रऊफ़ ख़ैर
सिर्फ ज़र्रा हूँ अगर देखिए मेरी जानिब,
सारी दुनिया में मगर रोशनी कर जाऊँगा - अज़ीज़ अंसारी
हज़ारों खुशियाँ कम है, एक ग़म भुलाने के लिए,
एक ग़म काफी है ज़िंदगी भर रूलाने के लिए।
बस्ती-बस्ती फैल चुकी है बेचैनी की आग,
चैन से तुझको जीना है तो वीराने में भाग।
ग़मों की भीड़ में आँसू किसे बहाना है,
के ज़ख़्म खा के भी हमको तो मुस्कुराना है - अज़ीज़ अंसारी
सरों पे माँ की दुआओं का शामियाना है,
हमारे पास तो अनमोल ये ख़ज़ाना है।
शामियाना = छत्र, मंडप
हरसू मिले बाज़ार में अल्फाज़ के नश्तर,
घर आके जो बैठा हूँ तो घर काट रहा है।
नश्तर = खंजर-चाकू
हमारे बाद नहीं आएगा तुम्हें चाहत का ऐसा मज़ा फ़राज़,
तुम लोगों से कहते फिरोगे, मुझे चाहो उसकी तरह -