तेरे पापा ने ब्याहा तुझको,
जब बचपन छोड़ ना पाई थी।
तेरे पापा के घर का वो वैभव,
पापा के घर की वो बेफ़िक्री !
पापा के घर की देहरी पर ही ,
उसे छोड़ तू आई थी।
हम सब की मां बनी थी तू,
जो कह जाती संघर्ष तेरे,
जो संघर्ष तेरे,हम पढ़ लेते।
तो, संघर्ष हमें नहीं चुनते,वरन,
अपने संघर्षों को हम चुनते।
फिर, दूर बैठ, न फ़िक्र तुझे,
न तेरी फ़िक्र ही हम करते।
तब हर दिवस तेरा ही होता,
और तेरे हर दिन में हम होते।