ऐसे रूठती की बड़ी मुश्किल से टूटती,
तब कहीं मिठास का एहसास दिलाती।
मां, रबड़ी की मोटी मलाई
जब सिरपर रखे प्यार भरा हाथ,
मिले सुकून और भरोसा, जैसे स्वादिष्ट समोसा
होवे मन में संचार आत्मविश्वास का।
कभी घेवर तो कभी फेनी, कभी जीरावन कभी गरम मसाला
उसका तो हर स्वाद मनभावन निराला।
रसोई से बैठक तक मां का रुतबा, उसके बिना घर लागे सूना सूना,
मां तो हैं नवरसों से भरा प्याला,
ये अमृत धारा बनाती सेहत को हरियाला...
रचनाकार : सुजाता देशपांडे