फिर एक दिन जब वह भिखारी आया तो दफ्तर के क्लर्क ने कहा- इस महीने से तुम्हें पचास डॉलर ही मिलेंगे। भीखारी ने पूछा- ऐसा क्यों, क्या तुम्हारी तनख्वाह में भी कुछ कमी हुई है? क्लर्क ने कहा- नहीं। तब भिखारी ने गुस्से से कहा- तो ऐसा हमारे साथ ही क्यों हो रहा है।
क्लर्क ने कहा- मालिक की लड़की की शादी है। इसलिए उन्होंने सभी के दान को आधा कर दिया है। वह भिखारी एकदम आग बबूला हो गया। उसने कहा- बुलाओ मालिक को, मैं बात करना चाहता हूं। मेरे पैसे को काटकर अपनी बेटी की शादी में लगाने वाला वह कौन होता है।
इस कहानी से में यह शिक्षा मिलती है कि व्यक्ति मुफ्त की वस्तु या धन पर भी अपना अधिकार जताने लगता है जबकि उसे तो कृतज्ञ होना चाहिए कि भगवान ने मुझे यह दिया या अब तक इतना दिया। कोई भी व्यक्ति यह नहीं सोचता है कि मुझ अब तक क्या क्या मिला और मैं कितना खुश रहा, सभी यह सोचते हैं कि मुझे अब तक क्या क्या नहीं मिला और मैं जीवन में कितना दु:खी रहा।