निन्यानबे पास में थे, सौ करने में देर ही क्या थी। उसने सोचा सिर्फ एक दिन दु:ख उठाना है। अब कोई खाना-पीना या मोज-मस्ती नहीं। उसने दूसरे दिन खुद भी उपवास किया और परिवार के लोगों को भी करवा दिया। मित्रों को इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ा। परंतु जब दूसरे दिन वह गया सम्राट के पैर दबाने, मालिश करने तो उसके चेहरे पर वो प्रसन्नता नहीं थी। वह मस्ती न थी, उदास था, चिंता में पड़ा था, दिमाग में कोई गणित चल रहा था। सम्राट ने पूछा, आज बड़े चिंतित मालूम होते हो? मामला क्या है?