वेबदुनिया ने शब्द उल्लास की सार्थक श्रृंखला आरंभ की है जिसमें हम हर हफ्ते किसी एक सुंदर, सकारात्मक और सार्थक शब्द को लेकर उसकी सरल विवेचना करते हैं। समाज में फैली नकारात्मकता को चुनौती देते हुए हमारा छोटा सा प्रयास है कि अगर अच्छे शब्द, अच्छे विचार निरंतर समाज को दिए जाए तो वही हमारे वातावरण को पॉजिटीव बनाते हैं। इस श्रंखला का उद्देश्य यह भी है कि लोग अपने प्रति, हमने साथियों के प्रति, अपने परिवार और परिवेश के प्रति अच्छा सोचें, अच्छा महसूस करें... ताकि अवसाद और निराशा के कण उनसे झड़ जाए और खुशी, उल्लास और उमंग के सुनहरे कण उन पर दमकने लग जाए।
इसी श्रृंखला में आज का शब्द है विजय.... विजया दशमी का पर्व हम मनाते हैं पर इस शब्द का असली अर्थ हम तक आ ही नहीं पाता...क्योंकि हम विजय के बारे में सोचने से ज्यादा पराजय के बारे में सोचते हैं, पराजय से डरते हैं और लॉ ऑफ अट्रेक्शन कहता है कि जो सोचोगे वही तो आएगा चलकर ...
विजय का अर्थ है जीत, जीतना, विजय, शत्रु पर विजय पाना, रणविजय आदि...विजय, वास्तव में एक संस्कृत नाम है, जिसका अर्थ है "जीत प्राप्त करना" या "विजय होना "। पौराणिक ग्रंथों की मानें तो विजय विष्णु के घर का द्वारपाल था। उनके प्रतीक अक्सर विष्णु मंदिरों में पाए जाते हैं।
जब भी कोई खुशी का मौका हो या आने वाला हो। वह जय है। 'जय' के लिए प्रतिद्वंदी की आवश्यकता नहीं होती 'जय' के लिए कोई लड़ाई-झगड़ा, युद्ध, अहम, प्रतियोगिता, स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करना, प्रूव करना आदि की जरूरत नहीं होती। जबकि 'विजय' का अर्थ है कम से कम दो प्रतिद्वंद्वियों का होना और फिर उनमें युद्ध होना और अंत में किसी एक का किसी एक को हराकर जीतना होता है। जय में पछाड़ने का दंभ नहीं है, पिछड़ने का भय भी नहीं है लेकिन विजय में है पर जीवन इन्हीं दो शब्दों पर चलता है....
बस एक सफलता पर गाना, रो पड़ना झट निष्फलता पर, सचमुच यह तो है नीति नहीं, सच्चे खिलाड़ियों की सुंदर.... इस निखिल सृष्टि के जीवन का स्वाभाविक क्रम है प्रलय सृजन, है विजय पराजय स्वाभाविक, क्या होगा बिखरा आंसू कण....
कहना सिर्फ यह है कि आप विजय शब्द को किस भाव से लेते हैं। असफलता भी कहीं न कहीं विजय की प्रेरणा लिए होती है, हर हार में, पराजय में भी विजय होने के संकेत होते हैं। पूरे मन से पूरी आशा से पूरे मनोयोग से जब हम किसी से जीतना चाहते हैं, किसी को जीतना चाहते हैं तो विजय शब्द को पूरे अर्थ के साथ निरंतर सोचना समझना होगा पूरा फोकस ही विजय शब्द पर करना होगा तब विजय होकर रहेगी, विजय को फिर आना ही होगा... फिर भी अगर नहीं आती है तो निराश नहीं होना है सबक और सीख लेनी है कहां चूक हुई इस पर ध्यान देना है।
विजय शब्द उसके अर्थ के साथ अपनी आदत बना लीजिए। सफल लोगों के रास्ते को देखिए, जानिए और आत्मसात कर के आगे बढ़ जाइए....रास्ते के कांटे, अंधेरा और एकांत आपको डिगा नहीं सकते अगर आपके भीतर विजयी होने का उजाला है, रोशनी है फिर पूरी सृष्टि आपको विजयी बना देती है। राह में सहयोग और सहगामी मिल जाते हैं।
भगवान श्रीराम से विजयी होने का संदेश ग्रहण करें। उनके मैनेजमेंट को समझें। पूरी रामायण में श्रीराम रावण पर विजय पाने के लिए किस तरह रणनीति अपनाते हैं। राह में कैसे उन्हें सहयोग-असहयोग मिलता है पर वे खुद को हारने नहीं देते हैं हर परिस्थिति में...
किसी के आने का इंतजार क्यों, खुद लड़ो अपनी लड़ाई, तुम्हीं में हार छुपी है, तुम्हीं में जीत....
तो विजय शब्द को पूरे भाव से अंगीकार कीजिए, विजयी होना पूरी तरह से आपकी सोच पर ही निर्भर करता है। विजयी होना आपके समर्पण भाव में छुपा है, आपके मनोबल, साहस और हौसलों में छुपा है।
सी ए आर....C-A-R का मतलब कहीं पढ़ा था कि कमिटमेंट, अफर्मेटिव, रिस्पेक्ट यानी विजयी होने के लिए आपको समर्पित होना है। सकारात्मक रहना है और अपनी जीत के भरोसे का सम्मान करना है। अपने आप का, अपनी सोच का सम्मान करना है। लेकिन विजया दशमी पर्व पर यह भी हमें ही समझना है कि विजयी किससे होना है...गलत पर सही की विजय, अन्याय पर न्याय की विजय, बुराई पर अच्छाई की विजय... अब बन जाइए अपने अपने राम और अपने ही मन में छुपे रावण का कर दीजिए दहन... विजयी भव: आज का शब्द उल्लास बार-बार कहता है आपसे विजयी भव...विजयी भव...
इस दुनिया को जीतेगा वो, जो हारे न अपनी दुनिया को....