तो बिना उसको पहने भी स्वामी लोग प्रवचन दे सकते हैं लेकिन ये वैसी बात हुई कि एक पुलिसमैन बिना वस्त्रों के भी पुलिसमैन है। लेकिन जब वह वस्त्र पहनता है तो दूसरों को भी इस बात का बोध रहता है कि भई इसकी बात का एक वजन है, हमें सुनना पड़ेगा। इसी प्रकार से गेरुआ वस्त्र पहनने से दूसरों को भी पता चलता है कि भई, इसने संसार को छोड़ा हुआ है और व्यक्ति को भी स्मृति रहती है कि भई, मैं भगवान का आदमी हूं और मुझे अपने आचरण को उसी प्रकार और उसी के अनुसार करते चले जाना है।