मध्यप्रदेश चुनाव : शिव की नैया में रोड़ा है कमल का पंजा

राजनीति की दशा और केंद्रीय कद में निर्णायक भूमिका में रहने वाले राज्य मध्यप्रदेश में चुनाव आ चुके हैं। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव का आरंभ हो चुका है, जहां 230 सदस्यीय विधानसभा में कुल 65,341 पोलिंग बूथों पर 5,03,34,260 मतदाता मध्यप्रदेश के भाग्य का फैसला 28 नवंबर को करने वाले हैं। और इसी दिन की राह को ताकने वाले वर्ग में मतदाताओं के अतिरिक्त सत्तासीन भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी व सपाक्स भी शामिल हैं।
 
आजादी के बाद भाजपा को पहली बार मध्यप्रदेश में इतना लंबा शासनकाल मिला है, परंतु फिर भी वर्तमान में भाजपा की राजनीति का हाल एक चौराहे के जैसा होता जा रहा है, जहां हर विचारधारा के, चाहे वे बागी हों या चाहे रिश्तेदार हों, सबका स्वागत है। परंतु मतदाता सदा से ही इन्हीं 1 माह में निर्णायक भूमिका में होने का दंभ भरता है और फिर हमेशा की तरह वही मतदाता छला जाता है।
 
वर्तमान में मध्यप्रदेश सरकार के काम भी इतने प्रभावी नहीं रहे, जो कि मतदाताओं को लुभा सकें। व्यापमं, वनरक्षक, डम्पर घोटाले से लेकर किसानों की आत्महत्याएं, किसानों का आंदोलन, मंदसौर कांड, सूबे के विधायकों के बड़बोले बोल, अन्नदाताओं को अपमानित करना, गरीब, मजदूर, दलित और शोषित वर्ग को दरकिनार कर प्रभुत्व संपन्नों की सरकार कहलाना, बेटियों का राज्य में सबसे असुरक्षित रहना, आए दिन बेलगाम अफसरशाही का होना, जनमानस के बीच से विकास नाम के मिट्ठू का गायब होना, कृषि की नई तकनीकी सिखाने वाली विदेश यात्राओं में फर्जी किसानों को भेजना, माई के लाल बनकर एट्रोसिटी एक्ट का समर्थन करना और इसके अतिरिक्त भी हुए कई घोटालों के बावजूद सरकार की ओर से राहत तो नहीं बल्कि मुख्यमंत्री के तेजतर्रार तेवर से राजधानी की बौखलाहट साफतौर पर मुखिया के चेहरे पर दिखाई दे रही है।
 
रसूखदारों के कामों को करवाने के लिए पूरी अफसरशाही रास्ते पर बैठी है, पर गरीब केवल दफ्तरों के चक्कर लगा-लगाकर ही नीला होता जा रहा है। शिवराज के दंभ और टिकट वितरण से फैले असंतोष के कारण भी भाजपा के विरोध में मतदाताओं, अफसरशाही और अपनी ही पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ताओं को खड़ा कर दिया गया।
 
वैसे तो शिव का मुकाबला करने में कांग्रेस भी कहीं-न-कहीं गच्चा खा ही रही है। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी और टिकट वितरण के लिए किए सर्वे का आधार बने दीपक बावरिया ने भी कांग्रेस की जमीन हिला दी, क्योंकि लगभग 50 प्रतिशत विधानसभा सीटों पर टिकट वितरण को लेकर खूब असंतोष व्यक्त हुआ। कहीं सिंधिया की बुराई, तो कहीं दिग्गी का विरोध! उसके बाद हुए बागियों की फेहरिस्त ने कांग्रेस को हैरत में डाल दिया था। कई जगह डेमेज कंट्रोल करने में कांग्रेस सफल भी हुई, तो कही अंदरुनी कलह परिणाम को प्रभावित करेगा ही। युवा तुर्कों की अवहेलना दोनों ही पार्टियों के लिए मुसीबत बन सकती है। वर्तमान विधानसभा चुनाव में 28 प्रतिशत नए और युवा मतदाता मध्यप्रदेश के भाग्य को चुनेंगे।
 
चुनाव मैनेजमेंट के सर्वे और तर्कों की बात करें, तो ये तय है कि मध्यप्रदेश में शिव की राह में कमलनाथ बड़ा रोड़ा बनेंगे। गत 2 चुनावों में खुद की विधानसभा बुधनी में प्रचार के लिए वे जमीन पर नहीं उतरे तो इस वाकये ने शिवराज की भी नींद उड़ा दी और अपनी ही विधानसभा में शिवराज के विरोध के स्वर उठने लगे हैं। मतदाता कभी शिव की पत्नी साधना सिंह को भगाते हैं, तो कभी बेटे कार्तिकेय को भला-बुरा कहते हैं। इन्हीं के बाद शिव का प्रभाव प्रदेश में कम होता जा रहा है।
 
मध्यप्रदेश के मतदाताओं का पलटा हुआ नाराज मन किसी बड़े बदलाव की तरफ इशारा कर रहा है। शिवराज का दंभ भी कहीं भाजपा के लिए बड़ा रोड़ा न बन जाए। इन्हीं सब संदेह और संशयों के बीच मध्यप्रदेश में कांग्रेस के कद्दावर नेता और चुनाव के सर्वेसर्वा कमलनाथ के बढ़े हुए कद और मतदाताओं की गुड लिस्ट में शामिल होने के कारण भी खतरे की तलवार भाजपा के गले पर लटकी नजर आ रही है।
 
230 सदस्यीय विधानसभाओं के अंदरुनी सर्वे की मानें तो परिवर्तन की सुगबुगाहट तो तेज है ही, साथ ही बदलाव को लेकर कांग्रेस की तरफ उम्मीद करके देखने का माद्दा भी बढ़ा है। आदिवासियों को हितग्राही भी बनाया, पर वे मुख्यमंत्री आवास या प्रधानमंत्री आवास होने के बावजूद मतदाताओं को आकर्षित करने में कम सफल हो रहे हैं।
 
वैसे तो कई गैरजरूरी मुद्दे मध्यप्रदेश की राजनीति में घर करते जा रहे हैं। मूलत: यह चुनाव कांग्रेस विरुद्ध मोदी सरकार के कार्यों का ही हो रहा है। कहीं संघ का शासकीय कार्यालयों में शाखा लगाने पर प्रतिबंध लगाने का वचन हो, चाहे किसानों का कर्जा माफ करने का झूठा वादा हो, दोनों ही दल किसी भी तरह से मतदाताओं को लुभा नहीं पा रहे हैं, परंतु फिर भी कमलनाथ का उम्मीदभरा व्यक्तित्व और नीतियां मामा शिवराज के लिए मुसीबत खड़ी कर रहा है।
 
बाकी तो मध्यप्रदेश का भाग्य 28 नवंबर को ईवीएम मशीन में बंद हो ही जाएगा और मतदाता तो उसे ही चुनेगा, जो उसके दिल पर राज कर पाया होगा।

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