आरुषि हत्याकांड का दुखांत

विधिवेत्ताओं की यह बात सही हो सकती है कि आरुषि और हेमराज हत्या प्रकरण से बड़ा कौतूहल वाला मामला आज तक भारत में नहीं देखा गया। पूरी जांच पहले उत्तर प्रदेश पुलिस फिर सीबीआई की दो अलग-अलग टीमों द्वारा किए जाने के बावजूद इतनी खामियों भरी रहीं कि कानून का आम जानकार भी उनको आश्चर्य से देखता है। शून्य से आरंभ हुई जांच इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के बाद फिर शून्य पर ही पहुंच गई है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा तलवार दंपती यानी राजेश तलवार और नुपुर तलवार को बरी करने के आदेश के बाद यह प्रश्न स्वाभाविक उठता है कि आखिर अगर इन दोनों ने आरुषि और हेमराज की हत्या नहीं की तो किसने की? यह सवाल तब तक कायम रहेगा जब तक कि उनके हत्यारे पर तस्वीर साफ नहीं होती। इसमें दो राय नहीं कि तलवार दंपती का रिहा होना सीबीआई के लिए बहुत बड़ा धक्का है। इस बहुचर्चित हत्याकांड में देश की शीर्ष जांच एजेंसी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी। चार वर्ष पहले सीबीआई की विशेष न्यायालय द्वारा 28 नवंबर 2013 को तलवार दंपती को हत्याओं का दोषी मानने तथा उन्हें आजीवन कारावास के बाद जिन सीबीआई अधिकारियों ने अपनी पीठ खुद थपथपाई थी उनके पास अब क्या जवाब है। हालांकि उनके पास उच्चतम न्यायालय में जाने का विकल्प खुला हुआ है, पर इस समय तो उच्च न्यायालय ने सीबीआई की पूरी जांच और उसके निष्कर्ष को कठघरे में खड़ा कर ही दिया है। 
 
हालांकि यह प्रचार उचित नहीं है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तलवार दंपती को निर्दोष करार दिया है। वास्तव में न्यायालय ने साफ कहा है कि उन्हें संदेह का लाभ देते हुए बरी किया जा रहा है। न्यायालय के अनुसार यह संदेह का लाभ दिए जाने का फिट मामला है। सीबीआई न्यायालय ने जिन आधारों पर राजेश और नुपुर को सजा सुनाई थी उच्च न्यायालय ने केवल उसे अपर्याप्त माना है। इलाहाबाद उच्च न्यायायल का कहना है कि मौजूद सबूतों के आधार पर तलवार दंपती को दोषी ठहराना कठिन है। फैसले के अनुसार तलवार दंपती को दोषी ठहराने के लिए परिस्थितियां और साक्ष्य काफी नहीं हैं। ध्यान रखने की बात है कि इस मामले का कोई प्रत्यक्ष गवाह नहीं था। इसलिए सीबीआई के सामने केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्य का ही आधार था। परिस्थितिजन्य साक्ष्यों में उनसे जुड़ी एक-एक कड़ी एक दूसरे से मिलनी चाहिए तथा अपराध का इरादा भी साफ होना चाहिए। सीबीआई न्यायालय ने तलवार दंपती को सजा सुनाते वक्त परिस्थितिजन्य सबूतों का ही हवाला दिया था। तब न्यायालय ने माना था कि जब परिस्थितिजन्य साक्ष्य मौजूद हों तो इरादा का बहुत ज्यादा महत्व नहीं रह जाता। इसे ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पलट दिया है। उसका कहना है कि सीबीआई द्वारा प्रस्तुत परिस्थितिजन्य साक्ष्य अकाट्य नहीं हैं और उनकी जोड़ी गई कड़ियों में भी कई टूट हैं। 
 
तो यह तलावार दंपती एवं उनके रिश्तेदारों के लिए राहत देने वाला फैसला भले हो, न्यायालय ने यह नहीं कहा है कि तलवार दंपती हत्या के दोषी नहीं है और उन्हें गलत तरीके से फंसाया गया। वस्तुतः जब तक इसका दोष दूसरे पर साबित नहीं होता न्यायालय द्वारा संदेह का लाभ देकर बरी किए जाने के बावजूद कानून के जानकारों की नजर में तलवार दंपती हमेशा संदेहों के घेरे में रहेंगे। 16 मई 2008 को नोएडा के जलवायु विहार स्थित घर में 14 साल की आरुषि आरुषि की हत्या गला रेत कर की गई थी। उस समय से ही देश भर में यह मामला छाया रहा है। पहले घरेलू नौकर हेमराज पर संदेह गया, क्योंकि वह गायब था। पुलिस ने आरंभ में जांच करते समय छत तक जाने की जहमत नहीं उठाई एवं नेपाल स्थित उसके घर के लिए पुलिस अधिकारी रवाना भी हो गए। दो दिन बाद अचानक छत पर हमराज का शव मिला। उसे बुरी तरह पीटा भी गया था। नोएडा पुलिस ने दावा किया था कि आरुषि-हेमराज का हत्यारा डॉक्टर राजेश तलवार हैं। पुलिस ने ऑनर किलिंग की दलील रखी। 23 मई, 2008 को पुलिस ने राजेश तलवार को गिरफतार भी कर लिया। 
 
इस पर इतना हंगामा हुआ कि तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने जांच सीबीआई को सौंपने की सिफारिश कर दी। उन्होंने तलवार दंपती को निर्दोष कहा तथा तीन नौकरों कंपाउडर कृष्णा तथा राजकुमार एवं विजय मंडल को संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया। इसके बाद सितंबर 2009 में सीबीआई की दूसरी टीम ने जांच शुरू की जिसने तलवार दंपती को फिर से मुख्य आरोपी मान लिया। हालांकि इसी टीम ने 29 दिसंबर, 2010 को विशेष न्यायालय को यह कहते हुए कि जांच किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा क्लोजर रिपोर्ट लगा दिया था। तो मामला उसी दिन समाप्त हो जाता, लेकिन न्यायालय ने क्लोजर रिपोर्ट को मानने से इन्कार करते हुए सीबीआई को फिर से जाचं करने के आदेश दिए। उसके बाद ही तलवार दंपती को फिर आरोपी बनाया गया और 26 नवंबर, 2013 को उन्हें उम्रकैद की सजा हुई। 
 
इस पूरे प्रकरण को संक्षेप में यहां उद्धृत करने का उद्देश्य केवल यह बताना था कि मामला किस तरह आरंभ से उलझा हुआ रहा। इससे इतना तो साफ हो जाता है कि अगर सीबीआई के विशेष न्यायालय ने डांट नहीं लगाया होता तो जांच एजेंसी ने 2010 में ही इस मामले को खत्म मान लिया था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के बाद क्या यह मान लिया जाए कि सीबीआई की टीम उसी समय सही थी? ऐसा कहना कठिन है। कारण, सीबीआई को हत्यारे या हत्यारों की तलाश करनी थी जिसमें उसने अपनी विफलता साबित की थी जिसे न्यायालय ने तब नकार दिया था। इस मामले में मुख्य बात यह है कि आरुषि और हेमराज की हत्या अगर घर के अंदर होती है, घर का दरवाजा बंद है तथा अंदर उन दोनों के अलावा केवल तलवार दंपती ही मौजूद हैं तो फिर हत्यारा या हत्यारे हैं कौन यह सवाल तो उठता है। सीबीआई न्यायालय ने कहा था कि घटना के वक्त की परिस्थिति और साक्ष्य बताते हैं कि बाहर से कोई घर में नहीं आया। न्यायालय ने कहा था कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य तलवार दंपती के खिलाफ हैं। 
 
मामले को पूरी तरह समझने के लिए सीबीआई के आरोपों और प्रश्नों का तलवार दंपती की ओर से क्या जवाब दिया गया इसका उल्लेख भी जरुरी है। पहला, घर में सिर्फ चार लोग थे। घर का दरवाजा भी अंदर से बंद मिला था। फिर हत्या कैसे हुई? तलवार दंपती का जवाब था कि दरवाजे पर ऑटोमैटिक लॉक था, जो बाहर और अंदर से बंद किया जा सकता है। किसी ने हत्या के बाद मुख्य दरवाजे को बाहर से खींचकर लॉक किया। दूसरा, आरुषि के कमरे की चाबी राजेश के पास रहती थी। फिर कोई अंदर कैसे जा सकता है? तलवार दंपती का जवाब था कि नूपुर इंटरनेट का राउटर खोलने के लिए आरुषि के कमरे में गई थी। इसी दौरान आरुषि के कमरे की चाबी लॉक में फंसी रह गई। तीसरा, सभी सो रहे थे तो घर का राउटर बार-बार ऑन-ऑफ कैसे हो रहा था? इसका जवाब देते हुए तलवार दंपती ने कहा कि जांच टीम ने भी हत्या वाले दिन सुबह छह बजे से दोपहर एक बजे तक राउटर में ऑटोमैटिक ऑन-ऑफ की प्रक्रिया जारी रहने की बात पाई थी। जब पुलिस घर में थी, तब भी राउटर अपने आप ऑन-ऑफ हो रहा था। चौथा, आरुषि की मौत के बाद उसके माता-पिता ने उसे गले क्यों नहीं लगाया? राजेश-नूपुर के कपड़ों में खून भी नहीं लगा हुआ था। 
 
इसका जवाब यह था कि आरुषि का गला कटा हुआ था। ऐसे में वे अपनी बेटी को गले कैसे लगा सकते थे? यह कहना गलत है कि राजेश और नूपुर के कपड़ों में खून नहीं लगा था। पांच, सीढ़ियों की चाबी तलवार दंपती ने पहले दिन पुलिस को क्यों नहीं दी? तलवार दंपती का कहना था कि छत के दरवाजे की चाबी हेमराज के पास ही रहती थी। पुलिस ने चाबी का इंतजार क्यों किया? उसने छत में लगा छोटा-सा ताला तोड़ क्यों नहीं दिया? छठा, हत्या के बाद शराब पी गई। शराब की बोतलों पर खून के निशान कैसे मिले? इसके जवाब में कहा गया कि जांच में बोतल पर राजेश के फिंगर प्रिंट नहीं मिले। नौकर के कमरे से भी शराब की बोतल मिली। सातवां, हेमराज की लाश खींचकर छत पर कैसे ले जाई गई? इसका जवाब यह दिया गया कि हो सकता है हेमराज को छत पर ले जाकर मारा गया हो। आठ, यदि हेमराज को उसी कमरे में मारा गया होता तो तकिया, बेड शीट और कालीन पर हेमराज के खून के निशान क्यों नहीं मिले? तलवार दंपती का जवाब क्या उनके लिए मुमकिन था कि वह बेडशीट, तकिया और कालीन से हेमराज-आरुषि के खून को अलग कर सकते थे?
 
जाहिर है, सीबीआई न्यायालय ने तलवार दंपती की दलीलों को जहां खारिज किया वहीं इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इन्हें न खारिज किया और न स्वीकार किया। अगर सीबीआई उच्चतम न्यायालय जाती है तो देश उसके फैसले की प्रतीक्षा करेगा। अगर वहां भी यही फैसला आता है जो इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दिया है तो फिर सीबीआई की जांच के तौर-तरीकों पर सवाल कायम रहेगा। साथ ही यह प्रश्न भी बना रहेगा कि आखिर आरुषि और हेमराज की हत्या किसने या किनने की?

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