प्रिय आयशा !
तुम्हें ये पत्र लिख रही हूं किंतु जानती हूं कि तुम इसे नहीं पढ़ पाओगी ...पर तुम्हारे जैसी और कई आयशाएं होंगी और ऐसी ही मानसिक यंत्रणाओं और अवसादों से रूबरू हो रही होंगी उन्हें शायद आत्महत्या जैसे कदम उठाने से पहले रोक पाऊं ....मैं हमेशा से ये मानती आई हूं कि स्त्रियों में धारित्री का गुण जन्मजात होता है, उनमें बहुत जीवट होता है...बार-बार गिरकर भी उठ खड़ी हो जाती हैं...बार-बार दामन के तार-तार होने पर भी जिजीविषा की
जीवन को अंत कर लेने का निर्णय शायद तुम्हारे शौहर की बेरुख़ी,बदतमीज़ी,दूसरी स्त्री से संबंध और तुम्हें जो उसके द्वारा दी गई मानसिक यंत्रणा से उपजे अवसाद के कारण ही लिया होगा ..
पर प्यारी आयशा तुमने अपने अम्मी और अब्बू के बारे में क्यों नहीं सोचा..कभी गर सोचा होता तो शायद ये निष्ठुर क़दम तुम कभी नहीं उठा पाती ..तुमने अपने दोस्तों के बारे में क्यों नहीं सोचा ..कितनी मोहब्बत थी उन्हें तुमसे। अपनी निग़ाहों में दर्द का सैलाब समेटे तुम बार-बार यही कह रहीं थीं कि मैं बहुत ख़ुश हूं ..तुम्हारा मुस्कुराता हुआ ग़मगीन चेहरा तुम्हारे अंदर भरे खारेपन के एहसासात को बेसाख़्ता बयां कर रहा था...
सुनो हम सबकी आयशा
..कहते हैं कि मनुष्य जन्म बहुत पुण्य के बाद मिलता है तो अगले जन्म में भी किसी की बिटिया बनकर जन्मना और मेरी यही गुज़ारिश है की अपने जीवन को यूं जाया न जाने देना और बहुत ख़ुश रहना एवं ख़ुशियां लुटाना,ज़िन्दगी है तो मुसीबतें एवं परेशानियां तो आती रहती हैं तुम उनसे घबराना नहीं,डट कर संघर्ष करना तुम्हें विजय मिलेगी !एक नए रूप में हिम्मत और आत्मविश्वास से लबरेज़ एक नई आयशा का हमेशा इन्तज़ार रहेगा ....लाड़ो तुम आना हमारे देश!