ऐसा नहीं है कि स्त्रियों का सदा ही सम्मान होते रहा है या सदा ही अपमान होता रहा है। जैसे ही नवरात्रि आती है भक्तों की श्रद्धा सारी सीमाएं पार करती हुई नौ स्वरूपों की आराधना में सारी सिद्धि प्राप्तियों के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देती हैं।
कहीं कोई कमी न रह जाए, माता रुष्ट न हो जाए। सिर्फ इस बात पर ध्यान ही नहीं जाता कि घर में विराजित पत्नी भी तो उसी माता का अंश है, उसी का एक जीता जागता रूप पर उसका सार्वजनिक रूप से, पत्नी के रूप में मखौल जरुर बनता रहा है।
पत्नी सेवा सहयोगिनी के रूप में जीवन के सारे कामों में हाथ बंटा सकती है, पर जैसे ही आप उसे सार्वजनिक रूप से मजाक, खिल्ली, मखौल उड़ाने की वस्तु समझ कर इस्तेमाल करते हैं तो खुद को ही गहरी प्रताड़ना व प्रवंचना में डालते हैं, यह मार्ग स्त्री की सार्थकता या समाज की समृद्धि और कृतार्थता का कभी नहीं माना जा सकता।
विष्णु पुराण (3/12/30) में भी कहा है- योषितो नावमन्येत
अर्थात नारियों का अपमान कभी न करें.
इस संदर्भ में ये पौराणिक कथा हमें बताती है कि त्रिलोकीनाथ प्रभु शिव भी अपने अर्धनारीश्वर स्वरूप को श्रेष्ठ मानते हैं-
सप्तऋषियों में एक ऋषि भृगु थे, वो स्त्रियों को तुच्छ समझते थे। वो शिवजी को गुरुतुल्य मानते थे, किन्तु मां पार्वती को वो अनदेखा करते थे।
एक तरह से वो मां को भी आम स्त्रियों की तरह साधारण और तुच्छ ही समझते थे। जैसा कि अधिकतर पुरुषों में ये भाव होता है। महादेव भृगु के इस स्वभाव से चिंतित और खिन्न थे।
एक दिन शिव जी ने माता से कहा, आज ज्ञान सभा में आप भी चले। मां ने शिव जी के इस प्रस्ताव को स्वीकार किया और ज्ञान सभा में शिव जी के साथ विराजमान हो गईं। सभी ऋषिगण और देवताओं ने मां और परमपिता को नमन किया और उनकी प्रदक्षिणा की और अपना-अपना स्थान ग्रहण किया.. किन्तु भृगु मां और शिव जी को साथ देख कर थोड़े चिंतित थे, उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वो शिव जी की प्रदक्षिणा कैसे करें। बहुत विचारने के बाद भृगु ने महादेव जी से कहा कि वो पृथक खड़े हो जाए। शिव जी जानते थे भृगु के मन की बात. वो मां को देखें, माता ने उनके मन की बात पढ़ ली और वो शिव जी के आधे अंग से जुड़ गईं और अर्धनारीश्वर रूप में विराजमान हो गईं अब तो भृगु और परेशान, कुछ पल सोचने के बाद भृगु ने एक राह निकाली।
भवरें का रूप लेकर शिवजी के जटा की परिक्रमा की और अपने स्थान पर खड़े हो गए।
माता को भृगु के ओछी सोच पर क्रोध आ गया. उन्होंने भृगु से कहा- भृगु तुम्हें स्त्रियों से इतना ही परहेज है तो क्यों न तुम्हारे में से स्त्री शक्ति को पृथक कर दिया जाए..और मां ने भृगु से स्त्रीत्व को अलग कर दिया। अब भृगु न तो जीवितों में थे न मृत थे. उन्हें अपार पीड़ा हो रही थी..वो मां से क्षमा याचना करने लगे.. तब शिव जी ने मां से भृगु को क्षमा करने को कहा।
मां ने उन्हें क्षमा किया और बोलीं - संसार में स्त्री शक्ति के बिना कुछ भी नहीं। बिना स्त्री के प्रकृति भी नहीं पुरुष भी नहीं। दोनों का होना अनिवार्य है और जो स्त्रियों को सम्मान नहीं देता वो जीने का अधिकारी नहीं। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।
नारी बिन नर मौन खड़ा है, नर बिन जीवन बहुत कड़ा है.
एक पंख के साथ, कहो कब, विहग भला उड़ सका गगन में.
आज संसार में अनेक ऐसी सोच वाले लोग हैं। उन्हें इस प्रसंग से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है। वो पत्नी से उनका सम्मान न छीने। खुद जिएं और पत्नियों के लिए भी सुखद संसार की व्यवस्था चलने दें।
जबसे ये सोशल मीडिया, व्हॉटस-एप्प, अन्य कई आसान पहुंच वाले साधन जुटे हैं मखौल तिरस्कार और जलालत की सीमा पार करने लगा है।
अफ़सोस उस पर यह है कि कथित विद्वानजन, पढ़े-लिखे, प्रतिष्ठित लोग भी इसमें अपनी भूमिका कुत्सित तरीके से निभा रहे हैं। यदि आप सच्चे अर्थों में मां का पूजन करना चाहते हैं तो उसके हर स्वरूप को मान-सम्मान देना होगा।
पत्नी खिलवाड़ या उपेक्षा की वस्तु नहीं है। आप उसे आप कमजोर न मानें मन से वह ब्रह्मास्त्र से भी अधिक शक्तिशालिनी है क्योंकि मां पार्वती का अंश है।
डॉ.राजकुमार वर्मा ने भी कहा है- नारी की भृकुटियों में ही संसार भर की राजनीतियों की लिपि है। जब उसकी पलकें झुक जातीं हैं तो न जाने कितने सिंहासन उठ जाते हैं,जब उसकी पलकें उठतीं हैं तो न जाने कितने राजवंश गौरव के शिखर से गिर जाते हैं।
तो फिर हम तो फिर सामान्य जन हैं जिनके घरों की धुरी ही नारी है। मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति। यदि आप हमारे नए युग के साथ कदमताल का मजाक उड़ाते हैं तो सुनो-
हम प्रीतिशिखा,अति आधुनिका.
हम पढ़ी लिखी नव नगरियां, गो रस न सूरा की गगरियां,
हम नहीं गृहों की चाकरियां,हम नित्य निपुण गुण आगरियां,
हम प्रीतिशिखा.
नवरात्रि आराधना की सार्थकता इसी बात में है कि मूर्ति पूजा और भक्ति के आडंबर को छोड़ साक्षात् गृहस्वामिनी के रूप में आपकी दुनिया संवारती पत्नी को अपने हृदय से, अंतर्मन से मान दें, उनके सम्मान की रक्षा करें। क्योंकि जहां नारियां पूजी जाती हैं वहां ही देवताओं का वास होता है।