अंकल! मेरे डैडी ठीक तो हो जाएंगे ना... किसी मासूम के मुंह से निकले इस तरह के शब्द आपको भीतर तक छलनी कर देंगे, हो सकता है आप अपने आंसू भी न रोक पाएं, लेकिन कोरोनावायरस (Coronavirus) काल में ऐसे दृश्य आम हैं। किसी मासूम को अपने डैडी या मम्मा की चिंता है तो किसी को अपने पति या पत्नी की। सबका अपना दर्द है, नहीं है तो सिर्फ इस दर्द की दवा।
7-8 अस्पतालों में भटकने के बाद किसी को बेड नहीं मिल रहा है, तो कोई ऑक्सीजन के लिए इधर से उधर भटक रहा है, किसी को रेमडिसिविर इंजेक्शन की दरकार है, ताकि इंजेक्शन लगने के बाद परिजन के जीवन की 'गारंटी' मिल जाए।
दूसरी ओर, चुनावी राज्यों में बड़ी-बड़ी सभाएं, रैलियां, रोड शो... ऐसा लगता है कि मानो कोरोना इन्हें छू भी नहीं सकता। सबसे खास बात इन रैलियों में देश के 'बड़े जिम्मेदार' वादों की झड़ियां लगाते हुए नजर आ रहे हैं। बड़े-बड़े सपने दिखा रहे हैं, लेकिन नहीं दे पा रहे हैं तो ऑक्सीजन और रेमडिसिविर की कमी से तड़पते लोगों और उनके परिजनों को जीवन की आस।
अपने भीतर दर्द को समेटे ये दृश्य ऐसा नहीं किसी एक शहर या राज्य की बात हो। लगभग पूरे देश में एक जैसी स्थिति है। महाराष्ट्र चले जाएं, उत्तर प्रदेश चले जाएं, दिल्ली, पंजाब, छत्तीसगढ़ या फिर मध्यप्रदेश की बात करें, सब जगह हालात एक जैसे हैं। ऐसा लगता है कि हमारी 'व्यवस्था' ने पिछले साल की घटनाओं से कोई सबक ही नहीं लिया। यदि लिया होता तो स्थितियां इतनी विकट नहीं होतीं। इसमें कोई संदेह नहीं महामारी पर किसी का वश नहीं होता, लेकिन यदि समय पर तैयारियां कर ली गई होतीं तो शायद हालात इतने भयावह नहीं होते।
यहां सोशल मीडिया पर चल रहे एक मैसेज का जरूर उल्लेख करना चाहेंगे, जो बताता है कि लोगों का अपनी व्यवस्था पर कितना भरोसा है। कोरोना के लिए अब...PM ने अपना जिम्मा CM पर छोड़ दिया है। CM ने DM पर, DM ने नगर प्रशासन पर, नगर प्रशासन ने दुकानदारों पर, दुकानदारों ने लोगों पर और लोगों ने खुद को 'राम-भरोसे' छोड़ दिया है...!! और इस तरह कोरोना से मुकाबला करने के लिए भारत 'आत्मनिर्भर' हो गया है..!! ये मैसेज भले ही मजाक में लिखा गया हो, लेकिन व्यवस्था को 'आईना' जरूर दिखा रहा है।