बदलती भी क्यों...? हिन्दी पत्रकारिता ने समाज के अपने अक्स को ही तो खुद में उतारा और उभारा है आज तक...। एक स्थान पर बैठे-बैठे ही संसार की सैर भी पत्रकारिता ने ही दुनिया को करवाई और देश-विदेश की उफनती नब्ज से लेकर दहकते मुद्दों और तमाम तरह की नवीनतम जानकारियों को जुटाकर अपने पाठकों के सामने पेश भी किया...।
एक कलम और उसके पहरेदारों ने पत्रकारिता के अब तक के इस सफर में सबसे खास भूमिका निभाई...। आज के दौर में मीडिया, इंटरनेट के जरिए जो वैश्वीकरण हो रहा है निश्चित रूप से पत्रकारिता को अमरत्व प्रदान कर रहा है। लेकिन अब उस कलम की जगह टाइपराइटर और की-बोर्ड ने ले ली है..।
अखबारों की जगह कम्प्यूटर और मोबाइल स्क्रीन ने ले ली है, भले ही कुछ न बदला हो... भले ही सब कुछ आगे बढ़ रहा हो... लेकिन इस दौड़ में अगर कुछ पीछे छूट गया है तो वह है... दम तोड़ती कलम... जिसने कभी इसी पत्रकारिता को जन्म दिया था... लेखन को जन्म दिया था... मॉडर्न वैश्वीकरण के इस हाईटेक युग में वह कलम आज प्रौढ़ हो गई है और दम तोड़ रही है।